बासमती चावल की खुशबू को रखना होगा बरकरार, सरकार ने बनाए ये नियम

बासमती चावल की खुशबू और प्रतिष्ठा को बनाए रखने के लिए फूड रेगुलेटरी संस्था ने पहली बार रेगुलेटरी स्टैंडर्ड लागू किए हैं.

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Jan 12, 2023, 08:07 PM IST
  • बासमती चावल की खुशबू को बरकरार रखना होगा
  • भारत सरकार बासमती के नियम क्यों बना रही है?
बासमती चावल की खुशबू को रखना होगा बरकरार, सरकार ने बनाए ये नियम

नई दिल्ली: फूड रेगुलेटरी संस्था भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण- Food Safety and Standards Authority of India (FSSAI) ने बासमती चावल की खुशबू और प्रतिष्ठा को बनाए रखने के लिए पहली बार रेगुलेटरी स्टैंडर्ड लागू किए हैं. ये नए नियम 1 अगस्त 2023 से प्रभावी हो जाएंगे.  

सरकार ने बासमती चावल पर बनाए ये नियम
नियमों के मुताबिक बासमती चावल की खुशबू को बरकरार रखना होगा. किसी भी तरह के आर्टिफिशियल रंग पॉलिश और नकली खुशबू को बासमती चावल में प्रयोग नहीं किया जा सकेगा. ये नियम देश में बिकने वाले और निर्यात होने वाले दोनों तरह के चावलों के लिए लागू होंगे.

ब्राउन बासमती चावल, मिल वाले बासमती और आधे उबले बासमती पर ये नियम लागू रहेंगे. इसके अलावा बासमती चावल का औसत साइज, पकने के बाद चावल की स्थिति, चावल में नमी यूरिक एसिड की मात्रा और बासमती में इत्तेफाक से नॉन बासमती की कितनी मात्रा हो सकती है- ये भी तय कर दिया गया है.

बासमती के नियम क्यों बना रही है सरकार?
अब आपको जानना चाहिए कि भारत सरकार बासमती के नियम क्यों बना रही है. दरअसल, भारत बासमती चावल का सबसे बड़ा निर्यातक देश है. अमेरिका, ईरान, यमन समेत अन्य देशों में भारत से चावल भेजा जाता है. इस साल भारत का निर्यात बढ़कर 126 लाख टन हो गया. दूसरे नंबर पर वियतनाम आता है जो भारत का आधा ही निर्यात करता है.

थाइलैंड, पाकिस्तान, चीन, यूएसए और बर्मा भी चावल एक्सपोर्ट करते हैं लेकिन भारत का कब्जा चावल के निर्यात के दो तिहाई बाजार पर है. भारत हर साल तकरीबन 30 हजार करोड़ रुपये के बासमती चावल का एक्सपोर्ट करता है और क्वालिटी इसकी बड़ी वजह है. लेकिन हाल ही में बाजार के मुनाफे को बढ़ाने के लिए व्यापारियों के स्तर पर बासमती में दूसरे चावल की मिलावट और चावल की चमक और खुशबू बढ़ाने के लिए पॉलिश और केमिकल की मिलावट की शिकायतें मिल रही थी. ये भारत के निर्यात को प्रभावित कर सकता है, इसलिए fssai को मानक तय करने पड़े.

हिमालय की तलहटी के मैदानी इलाकों में बासमती चावल का उत्पादन होता है. पंजाब, हरियाणा, हिमाचल, उत्तराखंड, दिल्ली, पश्चिम उत्तर प्रदेश और जम्मू-कश्मीर में चावल उगाया जाता है. गंगा के मैदानी इलाकों में पानी, मिट्टी, हवा और तापमान की वजह से बासमती की क्वॉलिटी दूसरे चावल के मुकाबले बेहतर मानी जाती है. बासमती को क्वीन ऑफ राइस भी कहा जाता है. देहरादून के बासमती चावल का सिक्का दुनिया भर में बोलता है.

भारत और पाकिस्तान की बासमती पर भी है लड़ाई  
भारत ने यूरोपियन यूनियन में बासमती के GI टैग के लिए आवेदन किया हुआ है. हालांकि पाकिस्तान चावल को अपने देश का मानता है और उसने भी जीआई टैग का आवेदन लगाया है.

जनवरी 2021 में पाकिस्तान ने आनन-फानन में अपने देश में जीआई इंडिकेशन एक्ट लाकर पहले स्वदेशी जीआई टैग हासिल किया और फिर यूरोपिय यूनियन में भारत के दावे को चुनौती दे दी.

जीआई टैग क्या है?
जीआई टैग की शुरुआत 19वीं सदी में कुछ यूरोपिय देशों ने ये सोचकर की कि अगर कोई चीज उनके देश में उगती है तो वो उस देश की पहचान और पेटेंट दोनों बन सके. फिर 20वीं सदी में फ़्रांस ने अपनी वाइन को जीआई टैग दिया.

कई देश पहले खुद अपने देश की चीज को जीआई टैग देते हैं और फिर (WTO) के माध्यम ये यूरोपियन यूनियन से इंटरनेशनल टैग के लिए आवेदन करते हैं. जीआई टैग का मकसद है चीजों की क्वालिटी बनाए रखना और फर्जी दावों को रोकना.

तमाम दावों के बीच बासमती चावल में दूसरे चावलों के मिलावट की खबरें आती रहती हैं और इससे किसी भी देश की छवि खराब होती है और इंटरनेशनल मार्केट में उसकी साख गिरती है. इसी से बचने के लिए भारत ने ये कदम उठाया है.

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