PM Modi ने न्याय में देरी पर जताई चिंता, बताया देश की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक

देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि न्याय में देरी देश की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है. इस दौरान उन्होंने कहा कि त्वरित न्याय व्यवस्था बहुत ही आवश्यक है.

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Oct 15, 2022, 02:20 PM IST
  • नए कानून को लेकर पीएम मोदी की बड़ी टिप्पणी
  • न्याय में देरी पर प्रधानमंत्री मोदी ने जताई चिंता
PM Modi ने न्याय में देरी पर जताई चिंता, बताया देश की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक

नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (Narendra Modi) ने न्याय में देरी को देश की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक बताते हुए शनिवार को कहा कि आत्मविश्वास से भरे समाज और देश के विकास के लिए भरोसेमंद और त्वरित न्याय व्यवस्था बहुत ही आवश्यक है.

संवैधानिक संस्थाओं पर पीएम मोदी की टिप्पणी
यहां आयोजित विधि मंत्रियों और विधि सचिवों के अखिल भारतीय सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को ऑनलाइन माध्यम से संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि जब न्याय मिलते हुए दिखता है तो संवैधानिक संस्थाओं के प्रति देशवासियों का भरोसा मजबूत होता है और उनका आत्मविश्वास भी उतना ही बढ़ता है.

उन्होंने कहा, 'न्याय में देरी एक ऐसा विषय है, जो भारत के नागरिकों की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है. हमारी न्यायपालिकाएं इस दिशा में काफी गंभीरता से काम कर रही हैं. अब अमृतकाल में हमें मिलकर इस समस्या का समाधान करना होगा.'

भारत की आजादी के 75 साल पूरे हो गए हैं और इस सफर के सौ साल पूरा होने के कालखंड को प्रधानमंत्री अक्सर 'अमृतकाल' कहकर संबोधित करते हैं. मोदी ने न्याय में देरी होने के मामलों के समाधान के तौर पर वैकल्पिक विवाद समाधान को बहुत सारे प्रयासों में से एक बताया और राज्यों से इसे बढ़ावा देने की अपील की.

पीएम ने किया 'इवनिंग' अदालतों की सफलता का जिक्र
उन्होंने कहा कि भारत के गांवों में इस तरह की व्यवस्था बहुत पहले से काम करती रही है, ऐसे में राज्यों को स्थानीय स्तर पर इस व्यवस्था को समझना होगा और इसे कानूनी तंत्र का हिस्सा बनाने की दिशा में काम करना होगा. गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में 'इवनिंग' अदालतों की शुरुआत करने और फिर उसकी सफलता का उल्लेख करते हुए मोदी ने कहा कि इससे लोगों का समय भी बचता था और मामले की सुनवाई भी तेजी से होती थी.

उन्होंने कहा कि लोक अदालतें भी देश में त्वरित न्याय का एक और माध्यम बनी हैं और कई राज्यों में इसे लेकर बहुत अच्छा काम भी हुआ है. उन्होंने कहा, 'लोक अदालतों के माध्यम से देश में बीते वर्षों में लाखों मामलों को सुलझाया गया है. इनसे अदालतों का बोझ भी बहुत कम हुआ है और खासतौर पर गांव में रहने वाले लोगों को, गरीबों को न्याय मिलना भी बहुत आसान हुआ है.'

आम नागरिकों को उठाना पड़ता है बड़ा खामियाजा
प्रधानमंत्री ने कहा कि कानून बनाने का मकसद कितना ही अच्छा हो लेकिन अगर उसमें ही भ्रम और स्पष्टता का अभाव होगा तो इसका बहुत बड़ा खामियाजा भविष्य में आम नागरिकों को उठाना पड़ता है और इस चक्कर में आम नागरिकों को बहुत सारा धन खर्च करके न्याय प्राप्त करने के लिए इधर-उधर दौड़ना पड़ता है.

उन्होंने कहा, 'कानून जब सामान्य जन की समझ में आता है तो उसका प्रभाव ही कुछ और होता है. इसलिए कानून बनाते समय हमारा ध्यान इस बात पर होना चाहिए कि गरीब से गरीब भी नए बनने वाले कानून को अच्छी तरह समझ पाएं.'

उन्होंने कहा, 'किसी भी नागरिक के लिए कानून की भाषा बाधा न बने, हर राज्य इसके लिए भी काम करे. युवाओं के लिए मातृभाषा में अकादमिक प्रणाली (एकेडमिक सिस्टम) भी बनानी होगी, कानून से जुड़े पाठ्यक्रम मातृभाषा में हो, हमारे कानून सरल एवं सहज भाषा में लिखे जाएं, उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय के महत्वपूर्ण मामलों की डिजिटल लाइब्रेरी स्थानीय भाषा में हो, इसके लिए हमें काम करना होगा.'

प्रधानमंत्री ने कई देशों का हवाला देते हुए कहा कि भारत में भी कानूनों के प्रभावी रहने की एक समयसीमा होनी चाहिए और देश को इसी भावना से आगे बढ़ना होगा. इस अवसर पर प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि पिछले कुछ सालों के भीतर देश में डेढ़ हजार से अधिक पुराने और अप्रासंगिक कानूनों को समाप्त किया गया है और आजादी के अमृतकाल में राज्यों को भी इस मुहिम को आगे बढ़ाते हुए गुलामी के समय से चले आ रहे तथा अप्रासंगिक हो चुके कानूनों को खत्म करना चाहिए.

'नए कानून आज की तारीख के हिसाब से बनाए जाने चाहिए'
प्रधानमंत्री ने कहा कि गुलामी के समय के कई पुराने कानून अभी भी राज्यों में चल रहे हैं और आजादी के अमृतकाल में गुलामी के समय से चले आ रहे इन कानूनों को समाप्त करके नए कानून आज की तारीख के हिसाब से बनाये जाना जरूरी है.

उन्होंने सम्मेलन में शामिल कानून मंत्रियों एवं सचिवों से कहा, 'मेरा आप सबसे आग्रह है कि सम्मेलन में इस तरह के कानूनों की समाप्ति का रास्ता बनाने पर विचार करना चाहिए. इसके अलावा राज्यों के जो मौजूदा कानून हैं, उसकी समीक्षा भी बहुत मददगार साबित होगी.'

इस दो दिवसीय सम्मेलन की मेजबानी गुजरात के विधि एवं न्याय मंत्रालय द्वारा की जा रही है. इस सम्मेलन का उद्देश्य नीति निर्माताओं को भारतीय कानूनी और न्यायिक प्रणाली से संबंधित मुद्दों पर चर्चा करने के लिए एक साझा मंच प्रदान करना है. इस सम्मेलन के माध्यम से राज्य और केंद्र शासित प्रदेश अपनी सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करने, नए विचारों का आदान-प्रदान करने और अपने आपसी सहयोग में सुधार करने में सक्षम होंगे.

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