Oscar 2023: रेसुल पुकुट्टी के लिए ऑस्कर अवॉर्ड बना अभिशाप, 'स्लमडॉग मिलियनेयर' Oscar विजेता ने बयां किया दर्द

Oscar 2023: रेसुल पुकुट्टी ने फिल्म 'स्लमडॉग मिलियनेयर' के लिए ऑस्कर अवॉर्ड जीता था. उन्हें साउंड डिजाइन के लिए अवॉर्ड मिला था.  लेकिन उनका ये अवॉर्ड उनके लिए अभिशाप बन गया. आइए जानते हैं रेसुल पुकुट्टी की कहानी.  

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Mar 12, 2023, 09:27 PM IST
  • क्या है 'ऑस्कर श्राप'
  • रेसुल पुकुट्टी ने बयां किया दर्द
Oscar 2023: रेसुल पुकुट्टी के लिए ऑस्कर अवॉर्ड बना अभिशाप, 'स्लमडॉग मिलियनेयर' Oscar विजेता ने बयां किया दर्द

नई दिल्ली Oscar 2023: एक और ऑस्कर नाइट का इंतजार हमें लगभग 14 साल पहले यानी 2009 में वापस ले जाता है, जब रेसुल पुकुट्टी 'स्लमडॉग मिलियनेयर' में साउंड डिजाइन के लिए ऑस्कर जीत कर लाए थे.पुकुट्टी ने इयान टैप और रिचर्ड प्राइके के साथ अवॉर्ड साझा किया. उस वक्त वो 37 साल के थे. पुकुट्टी देश में एक अनजाना नाम था, लेकिन ऑस्कर के बाद हर कोई उन्हें जानने लगा.

साल 2009 में मिला था अवॉर्ड 
सबसे खास बात यह थी, उस वक्त वी.एस. अच्युतानंदन के नेतृत्व वाली वामपंथी सरकार ने उनका भव्य स्वागत करने का फैसला किया और इसका नेतृत्व तत्कालीन संस्कृति मंत्री एम.ए. बेबी ने किया, जो वर्तमान में सीपीआई-एम पोलित ब्यूरो के सदस्य हैं. 2009 में उस दिन, कोल्लम जिले में उनके छोटे से गांव आंचल में उनका भव्य स्वागत हुआ.जल्द ही पुकुट्टी केरल में सबसे लोकप्रिय व्यक्ति बन गए. उनके बचपन की कहानियां कि कैसे उन्होंने मिट्टी के दीपक के नीचे पढ़ाई की, स्कूल में लगभग 10 किलोमीटर की पैदल दूरी तय की, यह सब खबरें बनने लगीं.

पुकुट्टी  ने बयां किया दर्द 
पुकुट्टी का बयान ऑस्कर विजेता कंपोजर एआर रहमान को शेखर कपूर के ट्वीट के बाद आया, जिसमें उन्होंने कहा था कि हिंदी फिल्म इंडस्ट्री ने उन्हें काम देने से इनकार कर दिया, क्योंकि उन्होंने एक एकेडमी अवॉर्ड जीता था, जिसने साबित किया कि आपके पास बॉलीवुड की तुलना में अधिक टैलेंट है.

हिंदी इंडस्ट्री में नहीं मिला काम 
अपने संघर्षों के बारे में बोलते हुए, पुकुट्टी ने अपना दर्द बयां किया.उन्होंने लिखा, डियर शेखर कपूर, इस बारे में मुझसे पूछिए. मैं ब्रेकडाउन के करीब चला गया था क्योंकि ऑस्कर जीतने के बाद हिंदी फिल्मों में कोई मुझे काम नहीं दे रहा था, फिर रीजनल सिनेमा ने मेरा हाथ थामा. कुछ प्रोडक्शन हाउस ने मेरे मुंह पर कह दिया कि 'हमें आपकी जरूरत नहीं' लेकिन फिर भी मैं अपनी इंडस्ट्री से प्यार करता हूं.साउंड इंजीनियर ने कहा कि वह हॉलीवुड जा सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया.

उन्होंने कहा, भारत में मेरे काम ने मुझे ऑस्कर दिलाया. मैंने एमपीएसई के लिए छह बार नॉमिनेट हुआ और जीता भी. आपको बहुत से लोग मिलेंगे जो आपको नीचे गिराना चाहते हैं, लेकिन मेरे पास मेरे लोग हैं, जिनपर मैं भरोसा करता हूं. पुकुट्टी ने 'ऑस्कर अभिशाप' के चलते अपने अनुभव के बारे में बताया.

और बहुत समय बाद मैंने अपने एकेडमिक सदस्यों से इस बारे में बात की और उन्होंने मुझे ऑस्कर के अभिशाप के बारे में बताया. ये सभी के साथ होता है. मुझे उस फेज से गुजरने में मजा आया, जब आप दुनिया में अपने आप को सबसे आगे महसूस करते हो और फिर जब आपको पता चलता है कि लोग आपको रिजेक्ट कर देंगे, यही आपके लिए सबसे बड़ा रियलिटी चेक होता है.

ऑस्कर जीतने के बाद से पुकुट्टी ने 9 मलयालम फिल्मों में भी काम किया है. उन्हें 2010 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया और उसी साल राज्य में संस्कृत के श्री शंकराचार्य विश्वविद्यालय ने उन्हें डॉक्टरेट की मानद उपाधि प्रदान की थी. साल बीतने के साथ, पुकुट्टी का नाम अब हर ऑस्कर की पूर्व संध्या पर सामने आता है.

वर्कफ्रंट
साउंड डिजाइन में उनकी शुरूआत 1997 की फिल्म 'प्राइवेट डिटेक्टिव' से हुई और उसके बाद रजत कपूर द्वारा निर्देशित 'टू प्लस टू प्लस वन' आई.2005 में संजय लीला भंसाली द्वारा निर्देशित फिल्म 'ब्लैक' में उन्होंने इंडस्ट्री में अपना नाम मजबूती से स्थापित किया और तब से वह आगे बढ़ते चले गए.इसके बाद 'मुसाफिर' (2004), 'जिंदा' (2006), 'ट्रैफिक सिग्नल' (2007), 'गांधी, माई फादर' (2007), 'सांवरिया' (2007), 'दस कहानियां', 'केरल वर्मा पजहस्सी', राजा' (2009), और 'एंथिरन' (2010) आईं.

इनपुट-आईएएनएस

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