Mission Majnu Movie Review: सिद्धार्थ मल्होत्रा ने फिर खेला देशभक्ति पर दांव, मिशन के नाम पर फिल्ममेकर्स ने किया भद्दा मजाक

Mission Majnu Review: 20 जनवरी को ओटीटी पर 'मिशन मजनू' को रिलीज किया गया. फिल्म का ट्रेलर देखने के बाद से इसे लगातार 'राजी' का मेल वर्जन बताया जा रहा था लेकिन यकीन कीजिए कि ये 'राजी' के आगे कुछ भी नहीं है.

Written by - Kamna Lakaria | Last Updated : Jan 24, 2023, 01:58 PM IST
  • फिल्म- मिशन मजनू
    रेटिंग- 2.5/5
    निर्देशक- शांतनु बागची
    स्टारकास्ट- सिद्धार्थ मल्होत्रा, रश्मिका मंदाना, शरीब हाशमी, कुमुद मिश्रा
Mission Majnu Movie Review: सिद्धार्थ मल्होत्रा ने फिर खेला देशभक्ति पर दांव, मिशन के नाम पर फिल्ममेकर्स ने किया भद्दा मजाक

Mission Majnu OTT release: कुछ फिल्में ऐतिहासिक होती हैं कुछ इतिहास रचती हैं और फिर आती हैं Mission Majnu जैसी फिल्में जो इतिहास के नाम पर मजाक करती हैं. Shershah के बाद से मानो सिद्धार्थ मल्होत्रा को देशभक्ति का चस्का सा लग गया है. पहले Major और अब Mission Majnu. ऐसा लग रहा कि सिद्धार्थ अपने कंफर्ट जोन में ही रहना चाहते हैं. चलिए सिद्धार्थ मल्होत्रा और Mission Majnu को ओटीटी पर फेल करती हर गलती पर खुलकर बात करेंगे.

फिल्म की कहानी औसत, एक्टिंग में जहां कुछ किरदार आपका दिल जीत लेंगे, वहीं कुछ की एक्टिंग देख आप खुद माथा पीट लेंगे. कुल मिलाकर मूवी देखते हुए लगेगा कि किस बात की जल्दी है भाई. हर सीन में भगदड़, भागम-भाग. अभी एक सस्पेंस डाइजेस्ट नहीं तब तक दूसरा परोस दिया जाता है. फिल्म को देखने के बाद दिमाग का दही और अपच जैसी समस्याएं हो सकती हैं. कृपया अपने रिस्क पर ही देखें.

कहानी

Ek tha Tiger से जारी RAW एजेंट के ट्रेंड को Mission Majnu ने भी कायम रखा. कहानी बेस्ड है पाकिस्तान के परमाणु परीक्षण पर जिसे चोरी छिपे 1974 में शुरू किया गया. ऐसे में तारिक जिनका असली नाम अमनदीप सिंह है एक दर्जी के रूप में रावलपिंडी में काम कर रहा है. वो RAW का खूफिया एजेंट है और लगातार पाकिस्तानी आर्मी के हर कदम पर नजर रखता है.

जहां कहानी में एक्शन सीक्वेंस और सस्पेंस आपको अच्छा लगेगा. वहीं रश्मिका मंदाना को 1974 के दौर में अपने पिता से अपनी ही शादी के लिए लड़ता देख एक बार को तो आपका दिमाग भी चकरा जाएगा कि इतना प्रोग्रेसिव पाकिस्तान. रश्मिका पूरी फिल्म में बिना बुर्के के दिखाई दी हैं. 1974 के पाकिस्तान में ये बात लगभग असंभव दिखाई देती है. कुल मिलाकर रिसर्च विभाग ने इस बारीकी की ओर ध्यान नहीं दिया.

फिल्म की शुरुआत ठीक ठाक है लेकिन बीच में आकर इजरायल का पाकिस्तान पर हमला और भारत के पाकिस्तान के साथ रिलेशन कहानी में ज्यादा दम नहीं ला पाते. एक पल के लिए तो आप भी कनफ्यूज हो जाएंगे कि वो कब, किस शहर की बात कर रहे हैं और कौन, किस पर हमला कर रहा है. तेजी से आगे बढ़ती कहानी आपके कई सवालों के जवाब नहीं देती. अमनदीप सिंह के पिता ने सुसाइड क्यों किया? अमन पाकिस्तान कैसे पहुंचा और कबसे वहां है? वैसे जिस तरह से खुल्लम खुला प्यार करते सिद्धार्थ और रश्मिका 1974 में दिखाई दे रहे हैं वो तो आज के दौर में भी समाज ना पचा पाए.

सिद्धार्थ का मिशन क्या है? वो मिशन में कैसे कामयाब होता है? इंडिया से उसे कितना सपोर्ट मिलता है और वो पकड़ा जाता है या नहीं? रश्मिका पत्नी के तौर पर क्या उसकी हकीकत जान पाएंगी? इन सभी सवालों के जवाब जानने के लिए फिल्म जरूर देखें.

डायरेक्शन

शांतनु बागची ने पाकिस्तानी परिवेश को दिखाने के चक्कर में कई गलतियां कर दी. हां वहां के लोग बातुनी और मिलनसार होते हैं. खातिरदारी और मेहमान नवाजी करने में एकदम कमाल. वहीं इस चक्कर में सिद्धार्थ कुछ ज्यादा ही ओवरएक्टिंग करते दिखाई दे रहे हैं. रश्मिका मंदाना को अंधी लड़की के किरदार में रखा गया है लेकिन पूरी फिल्म में वो अपना दिमाग इस्तेमाल करती ही नहीं दिखाई दे रही हैं. बुर्के का इस्तेमाल, पाकिस्तान में महिलाएं इन सब बारीकियों को शांतनु पकड़ नहीं पाए. इमोशनल सीन्स को शांतनु ने जहां काफी अच्छे से उकेरा. वहीं फिल्म में एक के बाद एक जज्बातों का इतना सैलाब आ गया है कि आप भी देख कर कह देंगे कि 'ये दुख खत्म क्यों नहीं होता है बे!'

टेक्निकल

VFX फिल्म में काफी कमजोर दिखाई दिए. फिल्म में एक सीन है जहां सिद्धार्थ की अपनी टीम से पुल पर बहस होती है साथ ही ट्रेन से भागने का सीन और परमाणु रिसर्च सेंटर ये तीनों देखने में काफी फेक लग रहे हैं. अगर सिनेमैटोग्राफी पर थोड़ा और ध्यान दिया जाता तो मामुली से सीन्स भी ओटीटी पर छा जाते.

एक्टिंग

सिद्धार्थ मल्होत्रा की ओवरएक्टिंग, रश्मिका मंदाना का सुपरकूल एटीट्यूड आप को भले ही ना जमे लेकिन दो किरदार आपको जरूर भाएंगे. शरीब हसन और कुमुद मिश्रा. दोनों की डायलॉगबाजी और एक्टिंग पर कमाल की पकड़ आपको हंसाएगी भी और रुलाएगी भी. बाकि कई छोटे-छोटे किरदारों ने कमाल का काम किया है. परमीत सेठी काफी लंबे समय के बाद पर्दे पर दिखाई दिए. आर्मी चीफ जनरल का किरदार काफी रिएलिस्टिक लगा. कुल मिलाकर मेन लीड की एक्टिंग भले ही पसंद ना आए लेकिन सपोर्टिंग रोल्स ने जमकर साथ निभाया है.

वैसे फिल्म में दिखाए गए ज्यादातर पाकिस्तानी महकमे के बड़े लोग Raazi की स्टारकास्ट से ही उठा लिए गए हैं. चाहे शिशिर शर्मा हों या रजित कपूर. दोनों को 'मिशन मजनू' में देख आपको लगेगा कि भाई स्टारकास्ट तो अलग कर लेते.

फिल्म क्यों देखें और ना देखें

अगर आपको एक्शन पसंद है और पाकिस्तान का मिनी टूर करना चाहते हैं तो फिल्म जरूर देखें. रश्मिका मंदाना के फैंस को उनकी एक्टिंग प्रभावित नहीं करेगी लेकिन सिद्धार्थ मल्होत्रा की औसत एक्टिंग और फिर एक बार इंडिया की रक्षा में तैनाती आपको अच्छी लगेगी. देश के लिए एक एजेंट क्या करता है वो तो पूरी फिल्म में है लेकिन फिल्म का आखिरी आधा घंटा आपको बांध कर रखता है. प्यार की खातिर कैसे एक एजेंट मजनूं हो जाता है जरूर देखें.

जिनको फिल्म में गलतियां ढूंढने, बारीकियां नोटिस करने, अच्छी एक्टिंग, क्लासिक स्टोरी देखनी है वो ये फिल्म ना देखें. फिल्म एक एवरेज ड्रामा फिल्म है. फिल्म की एंडिग आप जैसे लोगों को एकता कपूर के सीरियल की तरह ही लगेगी जहां एक राज से पर्दा उठने में कई सदियां बीत जाती हैं. फिलहाल बोर हो रहे हैं और टाइम पास करना है तो फिल्म देख ही डालें.

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