Birthday Special: पाकिस्तान से आया एक कार मैकेनिक, जो संपूर्ण सिंह से बन गया गुलजार

Birthday: Gulzar का असली नाम भले ही बहुत कम लोग जानते हैं लेकिन उनके गाने हर दिन हर पल कोई न कोई गुनगुनाता रहता है. आज भी 88 की उम्र में उनकी फिल्मों और शायरी का सफर जारी है.

Written by - Kamna Lakaria | Last Updated : Aug 18, 2022, 09:36 AM IST
  • गुलजार मीना कुमारी के लिए रोजा रखते थे
  • राखी से पहली मुलाकात में हार बैठे थे दिल
Birthday Special: पाकिस्तान से आया एक कार मैकेनिक, जो संपूर्ण सिंह से बन गया गुलजार

नई दिल्ली: 'हमको 'गालिब' ने यूं दुआ दी थी 'तुम सलामत रहो हजार बरस' यह बरस तो बस दिनों में गया.' साल 1936 में संपूर्ण सिंह का जन्म हुआ. मोटर मैकेनिक होने की जगह वो आज गुलजार (Gulzar) बनकर फिल्म इंडस्ट्री में जाने जाते हैं. इस चलती-फिरती दुनिया में गुलजार की लिखावट में दर्द है, अकेलापन है, जिसे पढ़ने-सुनने-देखने के बाद हर किसी के मन में एक टीस सी उठती है. 'कोई होता जिसको अपना, हम अपना कह लेते ए यारों'.

'मुसाफिर हूं यारों न घर है न ठिकाना'

अपनी शायरियों के दम पर एक के बाद एक सीढ़ी गुलजार चढ़ते रहे. लोगों ने उनकी लिखावट को अपनी दिल की आवाज बना लिया और साथ में गाते रहे कि 'इस मोढ़ से जाते हैं कुछ सुस्त कदम रस्ते कुछ तेज कदम राहें'. उन्होंने अपनी संजीदगी से 'मिर्जा गालिब' को भी पर्दे पर जिंदा कर दिया. कोई उनका दर्द देख आज कह दे उन्हें कि 'तुझसे नाराज नहीं है जिंदगी.'

कार मैकेनिक का स्ट्रगल

गुलजार एक्सीडेंट की कारों को पेंट किया करते थे. उस वक्त उन्हें रोजगार की जरूरत थी. इस काम के बीच में उन्हें थोड़े से फुरस्त के दो पल मिल जाते जिसमें वो या तो किताब पढ़ लेते या कुछ लिख लेते. गुलजार हमेशा से एक लेखक बनना चाहते थे. कहते हैं कि 'मैं कविताए लिखना चाहता था कभी-कभी नज्म भी लिख लेता. फिल्मों में मेरे बहुत से दोस्त थे बस उसी ग्रुप ने मुझे गीत लिखने के लिए प्रेरित किया. साहित्य हमेशा से मेरी रुह का हिस्सा रहा है'. गुलजार अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर पाए. वो बंटवारे के बाद भारत आए थे. कहते हैं कि 'मेरे अंदर आज भी एक कॉम्पलैक्स है कि मैं कॉलेज ज्वाइन करने के बाद भी अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर पाया'.

मीना कुमारी के दुख के साथी

मीना कुमारी भी कमाल की शायरा थीं. गज़लें व नज्म लिखने का हुनर उनमें पहले से ही मौजूद था ऐसे में उनकी दोस्ती गुलजार से हुई. मीना कुमारी लिखती हैं- 'टुकड़े-टुकड़े दिन बीता, धज्जी-धज्जी रात मिली..जिसका जितना आँचल था, उतनी ही सौगात मिली.' शराब को मीना कुमारी ने अपनी जिंदगी बना लिया था.

एक बार रोजे के दौरान गुलजार मीना से मिले वो बीमार लग रही थीं. पूछने पर मीना कहतीं हैं कि इस बार बीमारी की वजह से वो रोजा नहीं रख पाएंगी और इस बात का उन्हें बहुत अफसोस है. गुलजार साहब ने अपनी उस दोस्त के लिए पूरे रोजे रखे. रोज मीना कुमारी के घर पर इफ्तार होती और उनके सामने रोजा खोला जाता. जब मीना कुमारी ने दुनिया से विदा लिया तो अपनी सारी डायरियां गुलजार को सौंप दीं. जिसे बाद में गुलजार ने 'मीना कुमारी की शायरी' को नाम से छपवाया और दुनिया तक पहुंचाया.

गुलजार को मिलीं राखी

संगीतकार हेमंत कुमार के घर पर गुलजार को राखी मिली वो उन्हें मीना कुमारी जैसी ही लगीं. दोनों ने बिना देरी के शादी कर ली. दोनों की एक बेटी है मेघना, जिसे गुलजार 'बोस्की' बुलाते हैं. शादी के कुछ वर्षों बाद किसी अनबन के चलते राखी उनसे दूर हो गईं. गुलजार ने बेटी की परवरिश का जिम्मा अपने ऊपर ले लिया. मेघना मानती हैं कि उनके सबसे अच्छे दोस्त उनके पापा हैं.

गुलजार आज 88 साल के हो गए साहित्य अकादमी से लेकर पद्म भूषण के सम्मानित गुलजार आज भी अपनी आवाज और क्रिएटिविटी से सबको हैरान करते हैं. 'मासूम सी नींद में जब कोई सपना चले, हम को बुला लेना तुम पलकों के पर्दे तले.'

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