ब्रांड मोदी का असर बरकरार, फिर चला 'नेशन' के 'इमोशन' का जादू

देश के 5 राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों के परिणाम से एक बार फिर ये साफ हो गया है कि देश की जनता के जेहन में 'ब्रांड मोदी' का जादू बरकरार है. 

Written by - Animesh Nath | Last Updated : Mar 15, 2022, 12:57 PM IST
  • मुद्दों पर भारी पड़ा ब्रांड मोदी का जादू
  • नया वोट बैंक बना 'लाभार्थी वर्ग'
ब्रांड मोदी का असर बरकरार, फिर चला 'नेशन' के 'इमोशन' का जादू

नई दिल्ली: देश के 5 राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव कई मायनों में बीते चुनावों से अलग हैं, लेकिन बीते चुनावों से मौजूदा चुनाव में जो एक चीज बरकरार रही, वह है 'ब्रांड मोदी'. देशभर में कोरोना महामारी में हुई लाखों लोगों की मौत, देश की अर्थव्यवस्था का पटरी से उतरना, महंगाई से परेशान जनता और बेरोजगारी से परेशान युवा इस बार के विधानसभा चुनावों में सबसे प्रमुख मुद्दे थे. लेकिन इन सब पर मोदी के 'राष्ट्रवाद' का नारा और देश की मजबूती का संकल्प हावी रहा. 

मुद्दों पर भारी पड़ा ब्रांड मोदी का जादू

उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में जहां बेरोजगारी एक बड़ा मुद्दा था, तो वहीं जातीय समीकरण भी कहीं न कहीं भाजपा के खिलाफ नजर आ रहे थे. सवर्णों की पार्टी का ठप्पा लेकर चुनाव में उतरी भाजपा ने गैर मुस्लिम-यादव ओबीसी को साधने में कामयाबी हासिल की. देश के प्रधानमंत्री के 'नेशनलिज्म' का नारा जातीय समीकरणों  की राजनीति पर हावी दिखाई दिया. चुनाव में बहुजन समाज पार्टी की असक्रियता ने भी भाजपा को लाभ पहुंचाया और चुनावी परिणाम ये बताते हैं कि उन्होंने मोदी के राष्ट्रवाद के नारे पर भरोसा जताया है. 

प्रदेश में विकास दुबे हत्याकांड के बाद ब्राह्मण वर्ग में भाजपा के प्रति खासा विरोध देखने को मिल रहा था. चुनाव से पहले भाजपा का शुद्ध वोट कहे जाने वाले ब्राहमण और ठाकुर दो धड़ों में बंटे नजर आ रहे थे, पर मतदान के परिणाम ये बताते हैं कि मोदी एक बार फिर उन्हें एक धागे में पिरोने में कामयाब रहे. पुरानी पेंशन और रोजगार जैसे मुद्दों को दरकिनार कर गैर मुस्लिम-यादव ओबीसी वर्ग मोदी के 'राष्ट्रवाद' के नारे के साथ खड़ा नजर आया. 

धामी को मिला मोदी का सहारा

उत्तराखंड की राजनीति में बीते 5 साल का कार्यकाल भाजपा के लिए बड़ा उथल-पुथल भरा रहा. 5 सालों में तीन बार मुख्यमंत्रियों के बदलते चेहरे ने जनता के बीच जहां भाजपा के लिए अविश्वास पैदा किया, वहीं कांग्रेस का चुनावी अभियान हरीश रावत के हाथों में आने के बाद भाजपा के लिए कड़ी टक्कर का माहौल बना. धामी जो सिर्फ आखिरी 6 महीनों के लिए राज्य के मुख्यमंत्री रहे, उन्होंने कहीं न कहीं भाजपा की छवि सुधारने में अच्छा योगदान दिया. पर चुनाव में धामी को अपनी ही सीट पर मिली हार ये साफ जताती है कि राज्य की जनता का भरोसा धामी से कहीं अधिक मोदी पर रहा. भाजपा ने उत्तराखंड में 'धामी-मोदी' की जोड़ी के नारे को ही अपना 'एक्स-फैक्टर' बनाया. 

इसी तरह गोवा में मनोहर पर्रिकर की मौत के बाद भाजपा के लिए चुनाव जीतना एक बड़ी चुनौती बन गया. चुनाव से ठीक पहले पर्रिकर के बेटे उत्पल पर्रिकर के निर्दलीय पणजी सीट से पर्चा भरने से भाजपा के खिलाफ की आवाजें उठी. पर गोवा की जनता के 'ब्रांड मोदी' में विश्वास ने इन विरोधी आवाजों को दबा दिया और सबसे ऊपर राष्ट्रवाद की आवाज को बुलंद किया. 

नया वोट बैंक बना 'लाभार्थी वर्ग'

कोरोना काल में शुरू हुई 'फ्री राशन योजना' ने देशभर में एक नए लाभार्थी वर्ग को जन्म दिया. फ्री राशन योजना के तहत हर घर पहुंचे अनाज और पीएम आवास योजना के तहत एक बड़े वर्ग को घरों के तोहफे ने लोगों के मोदी पर भरोसे को और मजबूत किया. इस बार के चुनावी परिणाम ये साफ बताते हैं कि मोदी इस लाभार्थी वर्ग को अपने नए 'वोट बैंक' में तब्दील करने में कामयाब रहे. 

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