Navratri 2022: नवरात्रि के पांचवें दिन स्कंदमाता की पूजन, जानें पूजा विधि और मंत्र

Navratri 2022: पौराणिक कथाओं के अनुसार स्कंदमाता को पहाड़ों पर रहकर दुनिया के जीवों में नवचेतना का निर्माण करने वाली देवी कहा जाता है. जो भी सच्चे मन से मां की पूजा और आराधना करता है तो माता उसे प्रसन्न होकर मनवांछित फल देती हैं. 

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Sep 30, 2022, 09:31 AM IST
  • ये है मां स्कंदमाता की पूजा विधि
  • मां स्कंदमाता को लगाएं शहद का भोग
Navratri 2022: नवरात्रि के पांचवें दिन स्कंदमाता की पूजन, जानें पूजा विधि और मंत्र

नई दिल्ली: नवरात्रि के पांचवे दिन मां स्कंदमाता की पूजा की जाती है. स्कंदमाता शब्द ही दो शब्दों से मिलकर बना है स्कंद और माता. स्कंद कार्तिकेय भगवान का नाम है, जो कार्तिकेय की माता हैं, वो स्कंदमाता कहलाती हैं.  इसलिए माता के इस स्वरूप को स्कंदमाता पुकारा जाता है. पौराणिक कथाओं के अनुसार स्कंदमाता को पहाड़ों पर रहकर दुनिया के जीवों में नवचेतना का निर्माण करने वाली देवी कहा जाता है. जो भी सच्चे मन से मां की पूजा और आराधना करता है तो माता उसे प्रसन्न होकर मनवांछित फल देती हैं. संतान प्राप्ति के लिए भी माता की आराधना करना लाभकारी माना गया है.

ये है 'मां स्कंदमाता' के अन्य नाम
कार्तिकेय को देवताओं का कुमार सेनापति भी कहा जाता है. कार्तिकेय को पुराणों में सनत-कुमार, स्कन्द कुमार आदि नामों से भी जाता है. मां अपने इस रूप में शेर पर सवार होकर अत्याचारी दानवों का संहार करती हैं. पर्वतराज की बेटी होने के कारण इन्हें पार्वती भी कहते हैं और भगवान शिव की पत्नी होने के कारण इनका एक नाम माहेश्वरी भी है. इनके गौर वर्ण के कारण इन्हें गौरी भी कहा जाता है.

स्कंदमाता का स्वरूप
स्कंदमाता की स्वरूप हर व्यक्ति के मन को मोह लेता है. मां के चार भुजा हैं, जिसमें दो हाथों में कमल लिए हैं, एक हाथ में कार्तिकेय बाल रूप में बैठे हैं और वह हाथ में तीर लिए हुए नजर आ रहे हैं और देवी मां ने चौथे हाथ से आशीर्वाद देते हुए नजर आ रही हैं. मां कमल में विराजमान है. इसके साथ ही मां स्कंदमाता का वाहन सिंह है.

पौराणिक मान्यता
पौराणिक मान्यता के अनुसार तारकासुर नाम के एक राक्षस ने भगवान ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की. उसकी कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने उसे दर्शन दिए. तारकासुर ने ब्रह्मा जी से अमरता का वरदान मांगा. इस पर ब्रह्मा जी ने तारकासुर को समझाया कि जिसने जन्म लिया है उसको मरना ही पड़ेगा. इस पर तारकासुर ने शिवजी के पुत्र के हाथों मृत्यु का वरदान मांगा क्योंकि वह सोचता था कि शिवजी का कभी विवाह नहीं होगा और विवाह नहीं से पुत्र भी नहीं होगा. ऐसे में उसकी मृत्यु भी नहीं होगी. वरदान मिलने पर तारकासुर जनता पर अत्याचार करने लगा और लोगों ने शिवजी के पास जाकर तारकासुर से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना की. फिर शिवजी ने पार्वती से विवाह किया और कार्तिकेय पैदा हुए. कार्तिकेय ने बड़ा होने पर राक्षस तारकासुर का वध किया. भगवान स्कंद यानि कार्तिकेय की माता होने के कारण इन्हें स्कंदमाता कहा जाता है.

स्कंदमाता की पूजा विधि
- सबसे पहले स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें.
- अब घर के मंदिर या पूजा स्थान में चौकी पर स्कंदमाता की तस्वीर या प्रतिमा स्थापित करें.
- गंगाजल से शुद्धिकरण करें फिर एक कलश में पानी लेकर उसमें कुछ सिक्के डालें और उसे चौकी पर रखें.
- अब पूजा का संकल्प लें.
- इसके बाद स्कंदमाता को रोली-कुमकुम लगाएं और नैवेद्य अर्पित करें.
- अब धूप-दीपक से मां की आरती उतारें और आरती के बाद घर के सभी लोगों को प्रसाद बांटें और आप भी ग्रहण करें.

मां को लगाएं शहद का भोग
मां को केले व शहद का भोग लगाएं व दान करें. इससे परिवार में सुख-शांति रहेगी और शहद के भोग से धन प्राप्ति के योग बनते हैं.

मां स्कंदमाता को प्रिय हैं श्वेत और पीला रंग
मान्यता है कि मां स्कंदमाता की उपासना से परम शांति और सुख का अनुभव होता है. मां स्कंदमाता को श्वेत रंग प्रिय है. मां की उपासना में श्वेत रंग के वस्त्रों का प्रयोग करना चाहिए. मां की पूजा के समय पीले रंग के वस्त्र धारण करें.

मां स्कंदमाता का मंत्र
या देवी सर्वभूतेषु माँ स्कंदमाता रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।

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