डूम्सडे का मतलब होता है कयामत का दिन. नाम से ही आप अंदाजा लगा सकते हैं कि डूम्सडे प्लेन मतलब ऐसा प्लेन जो कयामत के दिन के लिए बनाया गया है. हिरोशिमा और नागासाकी शहरों पर हुए परमाणु हमलों का उदाहरण हमारे सामने है जिससे ये पता चलता है कि परमाणु हमले का अंजाम कयामत से कम नहीं होता. डूम्सडे प्लेन किसी भी प्लेन का आधिकारिक नाम नहीं है.
कुछ ऐसे प्लेन हैं जो परमाणु हमले की स्थिति में इस्तेमाल करने के लिए बनाए गए हैं. ऐसे हमलों के समय इन विमानों में देश के राष्ट्रपति सहित अन्य महत्वपूर्ण अधिकारी सुरक्षित रहते हुए देश की सेना को कमांड दे सकते हैं और देश का नेतृत्व कर सकते हैं. इस तरह के प्लेन दुनिया में सिर्फ दो ही देशों के पास हैं. एक अमेरिका जिसके डूम्सडे प्लेन का नाम है BOEING E-4B और दूसरा रूस के पास जिसका नाम ILYUSHIN IL-80 है.
अमेरिका के 231 फीट लंबे प्लेन को 'FLYING PENTAGON' भी कहा जाता है. ये अमेरिका का एडवांस्ड एयरबोर्न कमांड पोस्ट है यानी युद्ध की स्थिति में इस प्लेन के जरिए अमेरिका की सेना को हवा में रहते हुए ही कमांड दी जा सकती है. अमेरिकी वायु सेना इसे ऑपरेट करती है. इस एयरक्राफ्ट में तीन डेक होते हैं. मेन डेक में कमांड वर्क एरिया, कॉन्फ्रेंस रूम, ब्रीफिंग रूम, ऑपरेशन टीम वर्क एरिया, रेस्ट एरिया और कम्यूनिकेशन एरिया होता है.
ये प्लेन इतना बड़ा है कि इसमें 112 लोगों के बैठने की जगह है, जिसमें एक ऑपरेशन टीम, क्रू मेंबर्स, सिक्योरिटी और मेंटेनेंस टीम और कम्यूनिकेशन टीम के लोग शामिल हैं. उड़ान के दौरान ही हवा में इसको रीफ्यूल किया जा सकता है. इसकी वजह से ये लगातार लंबे समय तक हवा में रह सकता है. अब तक उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक ये प्लेन लगातार 35 से ज्यादा घंटों तक उड़ान भरता रहा है. अमेरिका इसे ऑपरेट करने के लिए हर घंटे 1.2 करोड़ रुपए खर्च करता है.
रूस के 200 फीट लंबे डूम्सडे प्लेन को क्रेमलिन-इन-द-स्काई भी कहा जाता है. इस प्लेन को भी उड़ान के दौरान ही रीफ्यूल किया जा सकता है. परमाणु युद्ध होने की सूरत में रूस के राष्ट्रपति पुतिन इस प्लेन के जरिए आसानी से हवा में उड़ते-उड़ते ही रूस की सेना को कमांड दे सकते हैं और देश पर राज कर सकते हैं.
कमांड देने में कोई दिक्कत ना हो इसके लिए जरूरी है कि सैटेलाइट कम्यूनिकेशन बना रहे. इस काम के लिए इसके ऊपर एक डोंगी और पीछे की तरफ एक बड़ा एंटीना लगाया गया है. इसकी पूंछ में भी एक लो फ्रीक्वेंसी एंटीना लगा है. इसका इस्तेमाल बैलिस्टिक मिसाइल ले जा रही पनडुब्बियों से कम्यूनिकेशन बनाए रखना है. प्लेन के इंजन में ही दो बड़े इलेक्ट्रिक जनरेटर लगे हैं जिनसे प्लेन के अंदर मौजूद उपकरणों के एक्सट्रा बिजली का प्रोडक्शन होता है. कॉकपिट के नीचे भी फ्यूल रहता है जो जरूरत पड़ने पर प्लेन को वापस ले जाने के इस्तेमाल किया जा सकता है.
ऐसा नहीं है कि इन विमानों में बैठे लोग परमाणु हमले से पूरी तरह सुरक्षित होते हैं. इन एयरक्राफ्ट पर परमाणु धमाके के बाद निकलने वाली खतरनाक इलेक्ट्रोमैग्नेटिक पल्स का असर नहीं होता है. परमाणु बम के रेडिएशन से भी ये बचाते हैं. धमाके से पैदा होने वाली जबरदस्त गर्मी का भी अंदर बैठे लोगों और उपकरणों पर कोई असर नहीं होता. लेकिन अगर परमाणु धमाका इस प्लेन के नजदीक हुआ तो कयामत के दिन के लिए बनाए गए इस प्लेन की भी कयामत आ सकती है.
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