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Telangana Chunav 2023: दो विधानसभा चुनावों में विजयी रहे KCR... हैट्रिक लगाने से कैसे चूक गए? जानिए 5 बड़े कारण

Telangana Chunav Result 2023: साल 2013 में आंध्र प्रदेश से तेलंगाना अलग हुआ. राज्य की स्थापना के बाद यह तेलंगाना का तीसरा चुनाव है, जहां 119 विधानसभा सीट है. इस बार के रुझानों में कांग्रेस को बढ़त मिलती हुई दिखाई दे रही है. इससे पहले हुए 2 विधानसभा चुनावों में भारत राष्ट्र समिति (Bharat Rashtra Samithi-BRS) को जीत मिली थी लेकिन साल 2023 के चुनाव में ऐसा क्या हुआ, जो केसीआर (K. Chandrashekar Rao) की पार्टी BRS बहुमत के आंकड़े को छूने से पीछे रह गई. आइए जानते हैं केसीआर की हार के पांच बड़े कारण?

एंटी इनकंबेंसी का रोल पड़ गया भारी

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एंटी इनकंबेंसी का रोल पड़ गया भारी

राजनीति के जानकारों का मानना है कि पिछले दो कार्यकाल तक केसीआर सत्ता में थे. इसी के साथ सत्तारूढ़ बीआरएस को साल 2023 में एंटी इनकंबेंसी का सामना करना पड़ा. राज्य में करीब 30 से 40 विधायकों के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर पहले से थी. इसके बावजूद केसीआर ने उनको चुनाव मैदान में उतारा. पार्टी के मुखिया केसीआर का यह दाव उन पर ही भारी पड़ गया.

राष्ट्रीय पार्टी बनने की चाहत ले डूबी?

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राष्ट्रीय पार्टी बनने की चाहत ले डूबी?

'तेलंगाना राष्ट्र समिति' (TRS) का नाम बदलना भी केसीआर की हार का कारण माना जा रहा है. राष्ट्र स्तरीय राजनीति में एंट्री करने के लिए केसीआर ने TRS का नाम बदलकर भारत राष्ट्र समिति (BRS) कर दिया था. जानकारों का कहना है कि केसीआर के इस फैसले ने स्थानीय लोगों को नाराज कर दिया खासकर जिनकी भावना तेलंगाना नाम से जुड़ी हुई थी. लिहाजा नाम बदलने की वजह से पार्टी को भारी कीमत चुकानी पड़ी.

दो विधानसभा सीटों से लड़ने का फैसला

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दो विधानसभा सीटों से लड़ने का फैसला

BRS पार्टी के मुखिया केसीआर ने दो विधानसभा सीटों से लड़ने का फैसला किया. इसके बाद विपक्ष को मौका मिला और कांग्रेस ने इसे अच्छे से भुनाया. केसीआर के इस फैसले को प्रचार में उनके खिलाफ इस्तेमाल किया गया. चुनाव प्रचार के दौरान कहा गया कि केसीआर अपनी पुरानी सीट हार रहे हैं. इसलिए उन्होंने दो सीटों से लड़ने का फैसला किया है. इससे केसीआर की 'असुरक्षा की भावना' के रूप में पेश किया गया.

पार्टी को खली केसीआर की कमी?

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पार्टी को खली केसीआर की कमी?

चुनाव की तारीखों का जैसे ही ऐलान हुआ, कांग्रेस एक्शन मोड में आ गई. इसका विपक्षी पार्टी को फायदा मिला. सत्ता में होने के बावजूद बीआरएस ने एंट्री में आलास दिखाया. इस दौरान केसीआर की भी तबीयत खराब रही. प्रचार में केसीआर की कमी को पार्टी के दूसरे नेता पूरा नहीं कर पाएं. इससे कांग्रेस के प्रचार अभियान ने भी स्पीड पकड़ी और जनता के बीच केसीआर गैर-मौजूदगी कांग्रेस का 'हथियार' बनी!

कांग्रेस का प्रचार-बीआरएस पर आरोप

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कांग्रेस का प्रचार-बीआरएस पर आरोप

कांग्रेस ने प्रचार के दौरान खुलकर कहा कि बीआरएस और बीजेपी साथ मिली हुई. विपक्ष के आरोप पर केसीआर ने नरमी दिखाई. इसका खामियाजा पार्टी को भुगतना पड़ा. बीजेपी पर भी BRS कम आक्रामक नजर आई और अल्पसंख्यक मतदाताओं के बीच कांग्रेस ने अपनी पकड़ मजबूत कर ली. लिहाजा केसीआर की पार्टी को नुकसान हुआ और कांग्रेस ने इसे मौके की तरह लपका.

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