Gyanvapi Case: 'ज्ञानवापी हिंदुओं को वापस न मिलने तक ग्रहण नहीं करूंगा अन्न', स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती ने लिया संकल्प
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Gyanvapi Case: 'ज्ञानवापी हिंदुओं को वापस न मिलने तक ग्रहण नहीं करूंगा अन्न', स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती ने लिया संकल्प

Gyanvapi Case: रिपोर्ट के सार्वजनिक होने के बाद काशी के एक संत ने अन्न त्याग दिया है. उनका कहना है कि जब तक ज्ञानवापी हिंदुओं को वापस नहीं मिल जाती है, वह अन्न ग्रहण नहीं करेंगे . 

Gyanvapi Case

Gyanvapi Case: उत्तर प्रदेश के वाराणसी स्थित ज्ञानवापी परिसर की भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की सर्वे रिपोर्ट मुकदमे के पक्षकारों ने सार्वजनिक कर दी है. सर्वे के दौरान 32 जगह मंदिर से संबंधित प्रमाण मिले हैं. पक्षकारों ने 839 पेज की सर्वे रिपोर्ट दी है. हिंदू पक्ष की तरफ से सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने कहा कि सर्वे से साबित हो गया कि ज्ञानवापी बड़ा हिंदू मंदिर था. उसे तोड़कर मस्जिद का रूप दिया गया. अब सील वजूखाने के सर्वे का अनुरोध किया जाएगा. वहीं, रिपोर्ट के सार्वजनिक होने के बाद काशी के एक संत ने अन्न त्याग दिया है. उनका कहना है कि जब तक ज्ञानवापी हिंदुओं को वापस नहीं मिल जाती है, वह अन्न ग्रहण नहीं करेंगे . 

स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती महाराज ने लिया संकल्प 
अखिल भारतीय संत समिति के महामंत्री स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती महाराज ने अन्न त्यागते हुए कहा कि ज्ञानवापी मस्जिद परिसर जब तक हिंदुओं को नहीं मिलेगा तब तक त्याग रहेगा. स्वामी रोज केवल सवा लीटर दूध का सेवन करेंगे. उन्होंने आज से ये संकल्प लिया है.

24 जनवरी को सौंपी गई सर्वे रिपोर्ट 
ज्ञात हो कि 18 दिसंबर को एएसआई ने कोर्ट में सील बंद लिफाफे में स्टडी रिपोर्ट सौंपी थी. इसी दिन हिंदू पक्ष ने कोर्ट से सर्वे रिपोर्ट सार्वजनिक करने की मांग की थी, लेकिन मुस्लिम पक्ष ने इस पर आपत्ति जताई थी. हालांकि, बाद में मुस्लिम पक्ष ने भी कोर्ट से कॉपी सौंपने की मांग की. जिस पर 3 जनवरी को सुनवाई होनी थी. हालांकि, उस दिन सुनवाई नहीं हो सकी. इसके बाद 5 जनवरी को कोर्ट में सुनवाई हुई, लेकिन फैसला नहीं आया. इसके बाद 24 जनवरी की सुनवाई में कोर्ट ने सर्वे रिपोर्ट की हार्ड कॉपी दोनों पक्षों को देने को लेकर फैसला सुनाया. 

"मंदिर के अस्तित्व के पर्याप्त सबूत हैं, जहां अब मस्जिद है"
काशी विश्वनाथ-ज्ञानवापी मामले में हिंदू याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ता ने बृहस्पतिवार को दावा किया था कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के एक वैज्ञानिक सर्वेक्षण की रिपोर्ट से पता चलता है कि मस्जिद का निर्माण पहले से मौजूद मंदिर के एक अवशेष पर किया गया था. हिंदू पक्ष के अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने कहा कि एएसआई रिपोर्ट यह स्पष्ट करती है कि काशी विश्वनाथ मंदिर के बगल में स्थित मस्जिद 17वीं शताब्दी में औरंगजेब के शासनकाल के दौरान एक भव्य हिन्दू मंदिर के ध्वस्त होने के बाद अवशेषों पर बनाई गई थी. उन्होंने यह भी दावा किया कि सर्वेक्षण रिपोर्ट में उस स्थान पर मंदिर के अस्तित्व के पर्याप्त सबूत हैं, जहां अब मस्जिद है. 

जैन ने दावा किया कि सर्वेक्षण के दौरान दो तहखानों में हिंदू देवताओं की मूर्तियों के मलबे पाए गए हैं और ज्ञानवापी मस्जिद के निर्माण में स्तंभों (खंभों) सहित पहले से मौजूद मंदिर के कुछ हिस्सों का इस्तेमाल किया गया था. उन्होंने दावा किया कि मंदिर को तोड़ने का आदेश और तारीख पत्थर पर फारसी भाषा में अंकित है. उन्होंने कहा, ‘‘महामुक्ति’’ लिखा हुआ एक पत्थर भी मिला है.  जैन ने यह भी दावा किया कि मस्जिद के पीछे की तरफ पश्चिमी दीवार पहले से मौजूद मंदिर की दीवार है. उन्होंने कहा कि दीवार पर एक ‘‘घंटा’’ और एक ‘‘स्वास्तिक’’ चिन्ह अंकित है. 

उन्होंने कहा कि सर्वेक्षण रिपोर्ट में कहा गया है कि तहखाने की छत नागर शैली के मंदिरों के स्तंभों पर रखी गई है. जैन ने दावा किया, ‘‘इन साक्ष्यों से पता चलता है कि जब 17वीं शताब्दी में औरंगजेब ने आदिविश्वेश्वर मंदिर को ध्वस्त किया था, तब वहां एक भव्य मंदिर पहले से मौजूद था.’’ जैन ने कहा कि वे वज़ू खाना के सर्वेक्षण के लिए अदालत में अपील करेंगे, जहां नमाज से पहले वजू किया जाता है. उन्‍होंने कहा कि वे रिपोर्ट के आधार पर छह फरवरी को अगली सुनवाई के दौरान अदालत के सामने सबूत रखकर अपना पक्ष रखेंगे. 

"एएसआई सर्वेक्षण सिर्फ एक रिपोर्ट, फैसला नहीं": ज्ञानवापी मस्जिद समिति
ज्ञानवापी मस्जिद समिति ने शुक्रवार को कहा कि मस्जिद का एएसआई सर्वेक्षण सिर्फ एक रिपोर्ट है, कोई फैसला नहीं, जिसके बारे में हिंदू पक्ष के वकीलों का दावा है कि इसे पहले से मौजूद मंदिर के अवशेषों पर बनाया गया था. अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी ने कहा कि वे एएसआई सर्वेक्षण रिपोर्ट का अध्ययन कर रहे हैं, जिसके बाद वे टिप्पणी करेंगे. वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद का प्रबंधन करने वाली समिति के सचिव मोहम्मद यासीन ने कहा, ‘‘यह सिर्फ एक रिपोर्ट है, कोई फैसला नहीं. कई तरह की रिपोर्ट हैं. यह इस मुद्दे पर अंतिम शब्द नहीं है.’’ उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय जब पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 से संबंधित मामले की सुनवाई करेगा तो वे (समिति) अपने विचार प्रस्तुत करेंगे. अधिनियम कहता है कि अयोध्या में राम मंदिर को छोड़कर किसी भी स्थान का ‘‘धार्मिक चरित्र’’ 15 अगस्त, 1947 को मौजूद स्थान से नहीं बदला जा सकता है. 

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