Pulwama attack: भारत के 15वें राष्ट्रपति के तौर पर द्रौपदी मुर्मू का चुनी गई हैं. वह देश की पहली पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति हैं. वहीं दूसरी तरफ देश के 14वें राष्ट्रपति के तौर पर रामनाथ कोविंद का कार्यकाल समाप्त हो रहा है. राष्ट्रपति के तौर पर महामहिम राम नाथ कोविंद आज अंतिम बार राष्ट्र के नाम संबोधन करेंगे, लेकिन वह देश के शौर्य और पराक्रम के गवाह भी हैं...
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Ramnath Kovind farewell: भारत के 15वें राष्ट्रपति के तौर पर द्रौपदी मुर्मू का चुनी गई हैं. वह देश की पहली पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति हैं. वहीं दूसरी तरफ देश के 14वें राष्ट्रपति के तौर पर रामनाथ कोविंद (Ramnath Kovind) का कार्यकाल समाप्त हो रहा है. बतौर तीनों सेनाओं के सेनापति के रूप में उन्होंने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं. साथ ही 2017 से 2022 के बीच, अपने कार्यालय में वह देश के शौर्य और पराक्रम के गवाह भी बने. उनमें से सबसे अहम बालाकोट एयर स्ट्राइक (Balakot Air Strike), जिसके गवाह के तौर पर देश उन्हें सदैव याद रखेगा.
राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद आज करेंगे राष्ट्र के नाम अंतिम बार संबोधन
दरअसल, राष्ट्रपति के तौर पर महामहिम राम नाथ कोविंद आज अंतिम बार राष्ट्र के नाम संबोधन करेंगे, लेकिन वह देश के शौर्य और पराक्रम के गवाह भी हैं. जिसकी कहानी आज हम आपको सुनाएंगे. यह कहानी साल बहुत पुरानी नहीं है. कहानी 14 फरवरी साल 2019 से शुरू होती है, जब पुलवामा में सीआरपीएफ (CRPF) की टुकड़ी पर पाकिस्तान के आतंकियों ने हमला कर 40 जवानों को शहीद कर दिया. जिससे न जाने कितने घर उजाड़ गए.
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आत्मघाती हमलावरों ने सुरक्षाबलों को ले जा रही बस को बनाया था निशाना
आपको बता दें कि पुलवामा में हुई यह घटना से देश की सुरक्षा पर बड़े सवालिया निशान खड़े होने लगे. पाकिस्तान के आत्मघाती हमलावरों ने सुरक्षाबलों को ले जा रही बस में आईईडी से भरी गाड़ी से टक्कर मारी थी, जिसमें 40 जवानों की मौत हो गई थी. इस बता दें कि इस काफिले में 78 बसें थीं. वहीं, इस कायराना हरकत की जिम्मेदारी आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद ने ली थी. इस हमले को 22 साल के एक आत्मघाती हमलावर आदिल अहमद डार ने अंजाम दिया था.
देश की सेना ने पुलवामा हमले का दिया था मुहंतोड़ जवाब
इस हमले को लेकर पूरा देश आक्रोशित था. तब तीनों सेनाओं के प्रमुख के तौर पर रामनाथ कोविंद सेना के शौर्य और पराक्रम के गवाह बने. तत्कालीन राष्ट्रपति के तौर पर उन्होंने और पीएम मोदी ने मिलकर वो कदम उठाया, जिसकी पाकिस्तान ने कभी कल्पना तक नहीं की थी. जिसके बाद देश की सशस्त्र सेनाओं ने पुलवामा ने हुए कायराना हमले का मुहंतोड़ जवाब दिया था.
एयर स्ट्राइक में मारे गए थे तकरीबन 300 आतंकी
साल 2019 दिन मंगलवार, 26 फरवरी की रात के तकरीबन 3 बजे थे. जब इंडियन एयरफोर्स के 12 मिराज 2000 फाइटर जेट एलओसी (LOC) पार कर पाकिस्तान की सीमा में दाखिल हुए. जिसके बाद भारत के जांबाज जवानों ने बालाकोट (Balakot) में जैश-ए-मोहम्मद (Jaish-e-Mohammed) के आतंकी ठिकानों को ध्वस्त कर दिया. जिसे हम बालाकोट एयर स्ट्राइक ((Balakot Air Strike) के नाम से भी जानते हैं. सरकारी दावे की मानें तो, मिराज 2000 ने आतंकी ठिकानों पर करीब 1000 किलो के बम गिराए गए, जिसमें तकरीबन 300 आतंकी मारे गए थे.
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प्रायोजित आतंकवाद बर्दाश्त नहीं करेगा भारत
आपको बता दें कि पाकिस्तान के खिलाफ भारत (India) के इस एक्शन से अंतरराष्ट्रीय स्तर (International Baccalaureate) पर भी कड़ा संदेश गया. इस एक्शन से यह साफ हो गया कि अब, भारत प्रायोजित आतंकवाद (Sponsored Terrorism) बर्दाश्त नहीं करेगा. बता दें कि भारत का पाकिस्तान पर यह हमला, पुलवामा अटैक के बदले के रूप में भी देखा जाता है.
ऐसी लिखी गई बालाकोट स्ट्राइक की स्क्रिप्ट
आइए आपको बताते हैं कि बालाकोट स्ट्राइक को लेकर पूरी स्क्रिप्ट कैसे लिखी गई. दिन 14 फरवरी 2019, जिस दिन पुलवामा हमला हुआ. हमले के अगले दिन दिल्ली में पंद्रह तारीख को सुरक्षा मामलों पर कैबिनेट की बैठक बुलाई गई. जिसमें एयरस्ट्राइक को लेकर मंथन हुआ. एनएसए अजित डोभाल को इस प्लान की जिम्मेदारी सौंपी गई. एनएसए और तत्कालीन वायुसेना प्रमुख बीएस धनोआ ने पूरे एक्शन का ब्लूप्रिंट तैयार किया. जिसके बाद बालाकोट एयर स्ट्राइक को अंजाम दिया गया.
मिराज 2000 ने ऐसे दिया एयर स्ट्राइक को अंजाम
दिन 26 फरवरी, जब रात 3 बजे मिराज 2000 (Mirage 2000) ने ग्वालियर एयरबेस (Gwalior Airbase) से उड़ान भरी. तब आगरा और बरेली के एयरबेस (Airbase) को अलर्ट रखा गया. ताकि पाकिस्तान के एयर डिफेंस सिस्टम (Air Defense System) पर निगाह रखी जा सके. दनादन 12 मिराज लड़ाकू विमान पाकिस्तानी सीमा में दाखिल हुए और बालाकोट में बम गिराना शुरू कर दिया. जब तक पाकिस्तानी सेना कुछ समझ पाती, तब तक इंडियन एयर फोर्स के विमान सफल एयर स्ट्राइक को अंजाम देकर भारत की सरहद में वापस लौट चुके थे.
इस हमले में जैश के सैकड़ों आतंकियों मारे गए थे. तब भारत की तीनों सेनाओं की कमान संभालने वाले तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद भारत के इस पराक्रम के गवाह भी हैं. कानपुर की सकरी गलियों से निकलकर देश के सर्वोच्च पद पर पहुंचने वाले राम को देश हमेशा याद रखेगा.
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