प्रतापगढ़: मेमने को बचाने वफादार मुर्गे ने दे दी जान, मालिक ने अंतिम संस्कार के बाद तेरहवीं में 500 को कराया भोज
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प्रतापगढ़: मेमने को बचाने वफादार मुर्गे ने दे दी जान, मालिक ने अंतिम संस्कार के बाद तेरहवीं में 500 को कराया भोज

Pratapgarh News:प्रतापगढ़ से एक मामला सामने आया है, जहां एक मुर्गे की वफादारी से खुश होकर और उससे लगाव की वजह से मालिक ने उसका न केवल अंतिम संस्कार कराया बल्कि तेरहवीं में 500 लोगों के लिए भोज का आयोजन किया. दरअसल मेमने को बचाने के लिए एक पालतू मुर्गा कुत्ते से भिड़ गया था. जिसमें उसको जान गंवानी पड़ी. जिसके बाद मालिक ने मुर्गे की शहादत में रीति-रिवाज से की तेरहवीं 500 से अधिक लोगों के लिए भोज का आयोजन किया. इलाके में यह पूरा मामला चर्चा का विषय बना हुआ है. 

 

 

प्रतापगढ़: मेमने को बचाने वफादार मुर्गे ने दे दी जान, मालिक ने अंतिम संस्कार के बाद तेरहवीं में 500 को कराया भोज

सुनील यादव/प्रतापगढ़: जानवरों और मालिकों के बीच वफादारी और प्यार के रिश्तों के किस्से तो आपने बहुत सुने होंगे. लेकिन जानवर की मौत पर विधि-विधान से तेरहवीं के आयोजन की खबर शायद ही आपने सुनी होगी. एक ऐसा ही मामला प्रतापगढ़ जिले से सामने आया है, जहां एक मालिक ने मुर्गे की मौत पर उसका न केवल अंतिम संस्कार किया बल्कि तेरहवीं का भोज आयोजन कर करीब 500 लोगों के भोज का भी आयोजन किया. 

दरअसल, पूरी मामला उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले का है, जहां एक मेमने को बचाने के लिए एक पालतू मुर्गा कुत्ते से भिड़ गया. जिसमें उसको जान गंवानी पड़ी. जिसके बाद मालिक ने मुर्गे की शहादत में रीति-रिवाज से की तेरहवीं 500 से अधिक लोगों के लिए भोज का आयोजन किया. 

प्रतापगढ़ के फतनपुर कोतवाली क्षेत्र के बेहदौल खुर्द गांव निवासी डॉक्टर सालिक राम सरोज पेसे से एक डॉक्टर हैं, जो खुद का क्लीनिक चलाते हैं. घर पर सालिक राम ने एक बकरी और एक मुर्गा पाल रखा था. मुर्गे का नाम लाली था, जो करीब से पांच साल पहले सालिक राम अपने दोस्त के यहां से लाए थे. सालिकराम दोनों को घरेलू सदस्य के बराबर मानते थे. घर वाले भी मुर्गे को काफी मानने लगे थे और उसका नाम लाली रख दिए थे.

वहीं, 8 जुलाई को दोपहर का वक्त था कि सालिकराम अपनी डिस्पेंसरी पर चले गए थे. तभी घर पर बकरी का बच्चा बंधा था. जिस पर बाहरी कुत्ते ने हमला करना चाहा. जिसको लाली ने देखा तो वह बकरी को बचाने के लिए कूद पड़ा. काफी देर लड़ाई चली, जिसमें लाली को अपनी जान गंवानी पड़ी. लाली के मालिक ने उसको दफनाकर तेरहवीं का ऐलान कर दिया. 20 जुलाई को विधि विधान से लाली का कर्मठ पूरा करके लाली को भोग लगा के करीब 500 से अधिक लोगों को प्रसाद ग्रहण कराया. वहीं इलाके में लाली की मौत चर्चा का विषय बना हुआ है. 

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