Good News: यूपी में इस जिले के किसान हो रहे मालामाल, धान-गेहूं छोड़ नए तरीके से कर रहे स्ट्रॉबेरी की खेती, जानिए कैसे करें शुरू
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Good News: यूपी में इस जिले के किसान हो रहे मालामाल, धान-गेहूं छोड़ नए तरीके से कर रहे स्ट्रॉबेरी की खेती, जानिए कैसे करें शुरू

बाराबंकी के किसान पारंपरिक खेती छोड़कर उगा रहे स्ट्रॉबेरी. हर बार 5 से 6 लाख का कमा रहे मुनाफा. आसपास के सैकड़ों किसान सीख रहे इस खेती के गुर. 

Good News: यूपी में इस जिले के किसान हो रहे मालामाल, धान-गेहूं छोड़ नए तरीके से कर रहे स्ट्रॉबेरी की खेती, जानिए कैसे करें शुरू

नितिन श्रीवास्‍तव/बाराबंकी : यूपी के बाराबंकी जिले में मेंथा और केले की खेती में महारथ हासिल करने के बाद जिले के प्रगतिशील किसान अब स्ट्रॉबेरी की खेती कर अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं. 1 एकड़ में 7 से 8 लाख की लागत लगाकर लगभग दोगुना फायदा देने वाली इस फसल से जिले के किसानों की आर्थित हालत तो सुधरी ही है, साथ ही अब इसका बाजार भी काफी बड़ा हो गया है. इससे स्ट्रॉबेरी बेचने के लिए कहीं भटकना नहीं पड़ता. इस खेती के गुर सीखकर कई साल पहले बाराबंकी के प्रगतिशील किसान सत्येंद्र वर्मा ने भी स्ट्रॉबेरी लगानी शुरू की और आज वह इस फसल से लाखों का मुनाफा कमा रहे हैं.

5 से 6 लाख का मुनाफा कमा रहे 
बाराबंकी जिले के जैदपुर रोड स्थित बरौली गांव के रहने वाले किसान सत्येंद्र वर्मा आज स्ट्रॉबेरी की खेती के महारथी बन चुके हैं. उनकी मानें तो 7 लाख से 8 लाख के खर्चे में वह एक साल में अलग-अलग वेराइटी (किस्‍म) की स्ट्रॉबेरी पैदा करते हैं. इसके हिसाब से वह लगभग 15 लाख की स्ट्रॉबेरी पैदा करके उसे बेचते हैं. इस हिसाब से वह सारे खर्च के बाद कम से कम 5 से 6 लाख रुपये तक की कमाई कर लेते हैं. इसी का नतीजा है कि जिले में अब दूसरे किसान भी सत्येंद्र वर्मा के खेतों पर आकर इस फसल के तौर तरीके सीखते हैं और खुद भी इसकी शुरुआत कर चुके हैं. इससे इन किसानों की भी माली हालत काफी सुधरी है और वह पारंपरिक खेती को छोड़कर इस तरह की मुनाफा देने वाली फसल लगा रहे हैं.

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बिक्री के लिए इधर-भटकने की जरूरत नहीं 
सत्येंद्र वर्मा ने बताया कि वह हिमांचल प्रदेश और महाबलेश्वर जैसी जगहों से पौधा मंगवाते हैं. 15 सितंबर से 15 अक्टूबर तक इसकी रोपाई का समय है, लेकिन अगर 1 अक्टूबर से पहले यह लगा दिए जाए तो पैदावार बहुत अच्छी होती है. उन्होंने बताया कि एक पेड़ में 800 ग्राम से एक किलो तक फल आते हैं. सत्येंद्र के मुताबिक, इस फसल में बचत मौसम पर भी निर्भर करता है, लेकिन किसानों को घाटा नहीं हो सकता. उन्होंने बताया कि पहले हमें स्ट्रॉबेरी की मंडी और बाजार ढूंढ़ना पड़ता था, लेकिन अब व्यापारी हमें खुद तलाशते हैं. यानी अब मंडी और बाजार की समस्या नहीं रह गई है. 

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