Bahraich News: यूपी के बहराइच में हजारों बारातियों (Baarat) और दहेज (Dowty) के पूरे सामान के साथ बारात पहुंचती है, मगर इस बारात में दूल्हा-दुल्हन (Bride-Groom) नहीं होते. आइए बताते हैं क्या है वर्षों पुरानी परंपरा.
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राजीव शर्मा/बहराइच: आपने बहुत सारी बारातें (Baarat) देखी होंगी, मगर शायद हि आपने कभी बिना दूल्हे और दुल्हन (Bride and Groom) की बारात देखी हो. उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले से ऐसा ही अनोखा मामला सामने आया है. यहां पर एक दो नहीं बल्कि हजारों की तादात में लोग दूर-दूर से पूरे साजो-सामान के साथ झूमते, नाचते, गाते, बाकायदा आतिशबाजी करते हुए गाजी की दरगाह (Dargaah) पर जियारत करने आते हैं. जेठ मेले में हजारों की संख्या में जायरीन बारात लेकर आते हैं, लेकिन खास बात यह है कि इस बारात में बाराती होते हैं, डोली होती है, दहेज का पूरा सामान होता है, मगर दूल्हा और दुल्हन नहीं होते हैं.
सैय्यद सालार मसूद गाजी की दरगाह पर पहुंचते हैं लोग
बहराइच में स्थित सैय्यद सालार मसूद गाजी की दरगाह पर जायरीन बारातियों के साथ दहेज का सामान लेकर पहुंचते हैं और मिन्नतें मांगते हुए जियारत करते हैं. ये सिलसिला हजारों सालों से चलता चला आ रहा है. बताया जाता है कि बाराबंकी के रुदौली शरीफ के नवाब की बेटी जोहरा बीवी दोनों आंखों से अंधी थी. जोहरा की मां ने गाजी की दरगाह पर मिन्नते मांगते हुए जियारत की थी, जिसके बाद जोहरा बीवी की दोनों आंखें ठीक हो गई थीं.
एक हजार वर्ष से भी ज्यादा पुरानी परंपरा
आंखों में रोशनी आने के बाद जोहरा बीवी गाजी की दरगाह पर आईं और फिर गाजी की दरगाह छोड़कर अपने घर वापस नहीं गईं. इसके बाद जोहरा बीवी के परिजनों ने उनकी शादी के लिए रखा हुआ सारा दहेज का सामान पूरे रीति रिवाज के साथ बारात लाकर गाजी की दरगाह पर चढ़ा दिया. इसके बाद से यह परंपरा लगातार चलती आ रही है. इस दरगाह में आस्था रखने वाले सभी धर्मों के लोग हजारों की तादात में बारात लेकर गाजी की दरगाह पर पहुंचने लगे. हर साल जेठ माह में यह मेला एक महीने के लिए लगता है. यह परंपरा एक हजार वर्ष से भी ज्यादा पुरानी बताई जाती है.
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