Ayodhya news: राम मंदिर के लिए इस कांग्रेस नेता ने त्याग दी थी कुर्सी, अब मिला प्राण प्रतिष्ठा समारोह में शामिल होने का न्योता
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Ayodhya news: राम मंदिर के लिए इस कांग्रेस नेता ने त्याग दी थी कुर्सी, अब मिला प्राण प्रतिष्ठा समारोह में शामिल होने का न्योता

Ram Mandir Ayodhya: ऐसे कांग्रेस नेता जिन्होंने राम मंदिर आंदोलन के लिए कांग्रेस को छोड़ दिया था. ये उत्तर प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री भी रह चुके है. कहानी स्वास्थ मंत्री दाऊ दयाल खन्ना की है. 

Ayodhya news: राम मंदिर के लिए इस कांग्रेस नेता ने त्याग दी थी कुर्सी, अब मिला प्राण प्रतिष्ठा समारोह में शामिल होने का न्योता

Ayodhya news: रामनगरी अयोध्या में 22 जनवरी को रामलला की प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम होने वाला है. प्राण प्रतिष्ठा सामरोह को पूरे देश में एक त्योहार की तरह मनाया जा रहा है. आज हम इस लेख में ऐसे कांग्रेस नेता की चर्चा करने जा रहे है, जिसने राम मंदिर आंदोलन के लिए कांग्रेस को छोड़ दिया था. ये उत्तर प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री भी रह चुके है. कहानी स्वास्थ मंत्री दाऊ दयाल खन्ना की है. जब दाऊ दयाल खन्ना के परिवार को राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा में शामिल होने का निमंत्रण पत्र मिला तो उनके चेहरे खिल उठे. उनके पोते ने बाताया कि इससे बड़ी खुशी और गर्व की बात उनके लिए कुछ और नहीं हो सकती. 

दाऊ जी के पोते ने कैसे शुरू हुआ राम मंदिर का आंदोलन
दाऊ जी के पोते ने बताई कैसे शुरू किए राम मंदिर के लिए दादा ने आंदोलन, बोले आजादी का आंदोलन मेरठ से हुआ लेकिन राम मंदिर का आंदोलन मुरादाबाद से हुआ था. मुरादाबाद के आरएसएस के विभाग प्रचार प्रमुख बोले दाऊ जी ने भगवान की आस्था के लिए कांग्रेस से राजनीतिक करियर खत्म कर लिया और साथ ही मुजफ्फर नगर में हुई धर्म संसद में भूतपूर्व प्रधानमंत्री गुलज़ारी लाल नंदा के बयानों पर भी प्रकाश डाला है. दाऊ दयाल खन्ना ने अपने इंदिरा गांधी और राजीव गांधी को लिखे पत्रों पर एक किताब लिखी है. इस किताब में तत्कालीन कांग्रेस सरकार, उनके एमपी और मुस्लिम लीग के शाहबुद्दीन पर नाराजगी जाहिर की है.  किताब में अपनी कांग्रेस पार्टी से राम मंदिर पर नाखुश जवाब मिलने का भी जिक्र किया गया है. 

नहीं किया कुर्सी का मोह
दाऊ दयाल खन्ना पहले विधायक बने फिर यूपी सरकार में मंत्री बने थे लेकिन जब बारी राम मंदिर और हिंदू होने के नाते उनकी आस्था की आई तो उन्होंने कुर्सी का मोह त्याग दिया.  उन्होंने देखा की राम मंदिर आंदोलन में सरकार का समर्थन नहीं मिल रहा तो उन्होंने कांग्रेस से किनारा कर लिया.  इसके बाद अयोध्या का राम मंदिर, काशी और मथुरा के मंदिरो को वापस हिंदुओं को दिलाने के लिए जी जान लगा दी. यही नही परिवार का कहना ये भी है की 1990 जिन 5 इटों का पूजन कर राम मंदिर की शिलान्यास किया गया था उनमें से एक ईट उनके परिवार से मुरादाबाद पूजित होकर गई.

राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा का निमंत्रण पत्र
आज जब स्वर्गीय दाऊ दयाल खन्ना जी के परिवार को राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा का निमंत्रण पत्र मिला तो उनका परिवार भावुक हो गया.  होता भी क्यों नही जिस लड़ाई को उन्होंने जीवन के अंतिम क्षण तक लड़ा वो सपना जो सच हो रहा है.  दूसरा कारण ये भी की राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा के इन्विटेशन के साथ आए बुक में स्वर्गीय दाऊदयाल खन्ना की तस्वीर के साथ उनके योगदान को भी याद किया गया. 

गौरवान्वित कराया महसूस 
राम मंदिर का निमंत्रण पत्र मिलने पर उनके पोते अंबुज खन्ना ने Zee Media से बातचीत में बताया है. कि उनके पिता ओंकारनाथ खन्ना जी के नाम से निमंत्रण आया है. निमंत्रण पत्र में दादा दाऊ दयाल खन्ना जी का जिक्र किया गया है.   उन्होंने कहा कि दादा जी को इस आंदोलन में  शामिल करके हमको बहुत गौरवान्वित महसूस कराया है. पोते अंबुज कहते है की दादा ने अपने हिंदू होने की जिम्मेदारी निभाई और धर्म के लिए ये आंदोलन शुरू किया. पोते अंबुज का कहना है की जब दाऊ जी ने धर्म संसद में ये पूरा मामला उठाया तब देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी थी. 

दाऊ दयाल जी का अहम योगदान 
1990 में अयोध्या में कार सेवकों के आंदोलन में भी दाऊ दयाल जी का अहम योगदान बताया जाता है उनके पोते कहते है की सबसे पहले उठाया ही बाऊ जी ने था की हमारे राम लला ताले में बंद हैं और उसके बाद दौर चला की उसका ताला खोलो फिर उसके बाद शिला पूजन का हुआ और फिर राम मंदिर बनाने को हुआ ,  दाऊ दयाल जी के पोते अंबुज का ये भी कहना है की वर्ष 1990 ने जिन 5 ईटो से राम मंदिर की शिला पूजन किया गया उसमे से एक ईट मुरादाबाद से उनके घर से पूजा कर गई थी जिसको दाऊ जी ने पूजी थी.

अब मथुरा और काशी की बारी
अंबुज का कहना है की 9 जनवरी 1984 को इंदिरा गांधी को पत्र लिखा था जिसकी एक कॉपी चौधरी चरण सिंह और एक कॉपी अटल बिहारी वाजपेई जी को भेजी थी उसमे राम मंदिर के लिए लिखा था और ये काम सबकी संतुष्टि से हो ज्यादा अच्छा है जिसके बाद अटल बिहारी बाजपेई का एक पत्र 23 जनवरी 1984 का आया जिसमे उन्होंने कहा की आपका पत्र प्राप्त हुआ है प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी जी का और इसके संबंध में मैं उनके वार्ता करूंगा. दाऊ के पोते ने कहा कि अब इंतजार मथुरा और काशी की बारी का है और कोर्ट जो भी फैसला ले वो सच ही होंगे.

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