Atal Bihari Vajpayee Poems: लखनऊ से सांसद रह चुके पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी राजनीति के साथ-साथ साहित्य में भी खूब रुचि रखते थे. वह शब्दों के जादूगर थे. कई बार वे कविताओं के जरिए बहुत ही गंभीर बात भी कह जाते थे.
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Atal Bihari Vajpayee Poems: लखनऊ से सांसद रह चुके पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी राजनीति के साथ-साथ साहित्य में भी खूब रुचि रखते थे. उनकी कई कविताएं लाखों लोगों के लिए प्रेरणास्रोत हैं. कई कविताएं तो इतनी मशहूर हैं कि आज भी लोग उन्हें गुनगुनाते रहते हैं. पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी जी के कई काव्य संग्रह प्रकाशित हुए हैं. यह कवितायें हमेशा जीवन जीने की प्रेरणा देती हैं.
अटल जी अपनी कविताओं के जरिए संसद में जब चर्चा करते थे तब हास्य-विनोद का माहौल बन जाता था. कई बार वे कविताओं के जरिए बहुत ही गंभीर बात भी कह जाते थे. 25 दिसंबर को पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म मध्य प्रदेश के ग्वालियर में हुआ था. उनका निधन 16 अगस्त 2018 को नई दिल्ली में हुआ था.
वैसे तो उनके द्वारा रचित बहुत सी कविताएं और काव्य चर्चित रहे हैं, लेकिन कुछ का नाम लोगों को जुबानी याद है. आइए जानते हैं ऐसी ही कुछ पोइम के बारे में जो लोगों को गुनगुनाने पर मजबूर कर देती है. कविताओं पर डाल लीजिए एक नजर...
1- गीत नया गाता हूँ
टूटे हुए तारों से फूटे बासंती स्वर
पत्थर की छाती मे उग आया नव अंकुर
झरे सब पीले पात
कोयल की कुहुक रात
प्राची मे अरुणिम की रेख देख पता हूँ
गीत नया गाता हूँ.
2- क़दम मिला कर चलना होगा
बाधाएँ आती हैं आएं
घिरें प्रलय की घोर घटाएं,
पावों के नीचे अंगारे,
सिर पर बरसें यदि ज्वालाएं,
निज हाथों में हँसते-हँसते,
आग लगाकर जलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।
3- आओ फिर से दिया जलाएं
आओ फिर से दिया जलाएँ
भरी दुपहरी में अँधियारा
सूरज परछाई से हारा
अंतरतम का नेह निचोड़ें
बुझी हुई बाती सुलगाएं।
आओ फिर से दिया जलाएं
4- ठन गई! मौत से ठन गई!
जूझने का मेरा इरादा न था,मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था
रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई, यूं लगा जिंदगी से बड़ी हो गई.
मौत की उमर क्या है? दो पल भी नहीं, जिंदगी सिलसिला, आज कल की नहीं.
मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूं, लौटकर आऊंगा, कूच से क्यों डरूं?
तू दबे पांव, चोरी-छिपे से न आ, सामने वार कर फिर मुझे आजमा.
मौत से ठन गई
5- कौरव कौन, कौन पांडव
कौरव कौन,कौन पांडव,
टेढ़ा सवाल है.
दोनों ओर शकुनि
का फैला कूटजाल है.
धर्मराज ने छोड़ी नहीं जुए की लत है.
हर पंचायत में पांचाली अपमानित है.
बिना कृष्ण के आज महाभारत होना है.
कोई राजा बने,रंक को तो रोना है.
6-भारत का मस्तक नहीं झुकेगा
एक नहीं दो नहीं करो बीसों समझौते, पर स्वतंत्रत भारत का मस्तक नहीं झुकेगा.
अगणित बलिदानों से अर्जित यह स्वतंत्रता, अश्रु स्वेद शोणित से सिंचित यह स्वतन्त्रता.
त्याग तेज तपबल से रक्षित यह स्वतंत्रता, दु:खी मनुजता के हित अर्पित यह स्वतन्त्रता.
इसे मिटाने की साजिश करने वालों से कह दो, चिंगारी का खेल बुरा होता है.
औरों के घर आग लगाने का जो सपना, वो अपने ही घर में सदा खरा होता है.