Kisan Andolan: किसान आंदोलन से दूर राकेश टिकैत ने केंद्र सरकार को दिया अल्टीमेटम, बोले-किसानों पर लाठी बर्दाश्त नहीं
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Kisan Andolan: किसान आंदोलन से दूर राकेश टिकैत ने केंद्र सरकार को दिया अल्टीमेटम, बोले-किसानों पर लाठी बर्दाश्त नहीं

Kisan Andolan: विभिन्न किसान संगठन एमएसपी, संपूर्ण कर्जमाफी सहित 12 प्रमुख मांग को लेकर दिल्ली कूच कर रहे हैं. लेकिन इसमें भारतीय किसान यूनियन के राकेश टिकैत नजर नहीं आ रहे हैं. हालांकि उन्होंने आंदोलन को लेकर बयान दिया है.

राकेश टिकैत (फाइल फोटो)

Kisan Andolan: विभिन्न किसान संगठन ने अपनी मांगों को लेकर दिल्ली कूच कर दिया है. किसानों की प्रमुख मांगों में एमएसपी को लेकर कानून, संपूर्ण कर्जमाफी सहित 12 प्रमुख मांगें शामिल हैं. पंजाब समेत कई राज्यों के किसान संगठन इसमें शामिल हो रहे हैं. लेकिन इसमें एक चेहरा नदारद नजर आ रहा है, वह है राकेश टिकैत का. तीन साल पहले 2020 में आंदोलन का वह प्रमुख चेहरा बने थे. उनकी अपील पर पश्चिमी यूपी और हरियाणा के किसानों ने गाजीपुर और टिकरी बॉर्डर पर डेरा डाल दिया था. लेकिन सवाल है कि इस बार वह आंदोलन में क्यों दिखाई नहीं दे रहे हैं. 

कृषि कानूनों के खिलाफ बिगुल फूंकने वाला संयुक्त किसान मोर्चा या भारतीय किसान यूनियन के राकेश टिकैत भले ही आंदोलन में दिखाई न दे रहे हों लेकिन उन्होंने इस पर बयान दिया है. राकेश टिकैत ने कहा, ये देश आंदोलन से बचेगा. देश आजाद हुआ था तो 90 साल लगे थे. ये जाएंगे.. अगर इस आंदोलन के साथ छेड़खानी की, लाठी चलाई तो ना किसान हमसे दूर हैं ना हम किसानों से.''

बता दें कि इस बार किसान आंदोलन की अगुवाई संयुक्त किसान मोर्चा नहीं कर रहा है बल्कि इसे हरियाणा-पंजाब सहित कई राज्यों के किसान संगठनों के बैनर तले आयोजित किया जा रहा है. 2020 में अलग-अलग किसान संगठनों के प्रतिनिधित्व के लिए संयुक्त किसान मोर्चा का गठन किया गया था,  इसमें गाजीपुर बॉर्डर मोर्चे की कमान संभालने वाले राकेश टिकैत भी शामिल थे. इसके अलावा गुरनाम सिंह चढ़ूनी, जोगिंदर सिंह उग्राहन, दर्शनपाल आदि नेता शामिल थे.
 
सरकार और संयुक्त किसान मोर्चा के बीच कई दौर की बातचीत के बाद कृषि कानून वापस ले लिए गए.  इसके बाद किसानों ने आंदोलन खत्म कर दिया. लेकिन तीन साल बीतने के बाद चीजें बदल चुकी हैं, मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक सरकार से बातचीत के लिए बने संयुक्त किसान मोर्चा में दो फाड़ हो चुकी है. बताया जाता है कि बात बिगड़ने की शुरुआत साल 2022 में पंजाब में हुए विधानसभा चुनाव से हुई. एक गुट चुनाव लड़ने के पक्ष में था जबकि कई इससे दूरी बनाने के. बाद में बलवीर सिंह रजेवाल के नेतृ्त्व में 92 सीटों पर चुनाव लड़ा लेकिन सभी पर जमानत जब्त हो गई.

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बीते महीने ही बलवीर सिंह रजेवाल के नेतृ्त्व में चुनाव लड़ने वाले 5 संगठनों ने संयुक्त किसान मोर्चा में वापसी की. चर्चा है कि अंदरूनी मतभेद अभी भी दूर नहीं हुए हैं. कहा जा रहा है कि पुराने नेताओं को भरोसे में लिए बगैर ही आंदोलन का ऐलान कर दिया गया. संयुक्त किसान मोर्चा ने खुद को 'दिल्ली चलो मार्च' से अलग कर लिया है. संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा एक प्रेस स्टेटमेंट जारी की गई है. बता दें कि इस आंदोलन की अगुवाई जगजीत सिंह डल्लेवाल कर रहे हैं. साथ ही किसान मजदूर संघर्ष समिति के अध्यक्ष सरवन सिंह पंढेर भी आंदोलन का प्रमुख चेहरा हैं.

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