Prayagraj Mahakumbh 2025 Baba's News: कोई एयरफोर्स ऑफिसर, तो कोई बड़ा इंजीनियर. वहीं कोई बड़ा कारोबारी. क्या देसी- क्या विदेशी. भौतिकी, रसायन और स्पेस, सब छोड़ आखिर वे संन्यासी कैसे बन गए. महाकुंभ का यह रहस्य शायद आप जानते नहीं होंगे.
Trending Photos
How to become Mahamandleshwar in Akharas: सनातन में तत्व-ज्ञान एक अलौकिक चेतना को कहा जाता है. संस्कृत के इस शब्द- तत्व का अर्थ होता है- तत् यानी वह, और वा मतललब- उसका वास. इस तरह सनातन की वैदिक गणनाओं में पूरे ब्रह्मांड में तत्व एक ही है. वह- यानी वो सुप्रीम पावर, जिसने पूरे ब्रह्मांड की रचना की, और जिसमें वो वास करता है. इसी तत्व को विज्ञान 118 हिस्सों में बांटता है. इन तत्वों के चार्ट को पीरियोडिक यानी आवर्त सारणी कहा जाता है. लेकिन विज्ञान का ये तत्व ज्ञान एक सीमा के बाद, अधूरा, खोखला या दिशाहीन क्यों लगने लगता है? कई बार इतना, कि हाईटेक पढ़ाई, नौकरी और लाखों की सैलरी छोड़ लोग संन्यास धारण कर लेते हैं, समझते हैं इसे महाकुंभ में दिख रही कुछ मिसालों के साथ.
महाकुंभ में जो भी आता है, वो साक्षात देखता है, कैसे कलियुग के आधार तत्व- जल, अग्नि और वायु कैसे जागृत होते हैं. ये तत्व ही वो सत्य हैं, जो हम सबके मन में मचलता है. एक विचलन पैदा करता है, जैसा कि आपने आईआईटी वाले बाबा और उनके गुरु की वाणी में महसूस किया होगा. पूरे महाकुंभ में अगर किसी का वीडियो, सनातन को लेकर किसी का नव-दर्शन अगर वायरल हुआ, तो गुरु शिष्य की यही जोड़ी है.
एयरफोर्स की जॉब छोड़कर बन गए संन्यासी
इस महाकुंभ में अभय सिंह को देश का बच्चा-बच्चा जान गया. इस शख्स ने आआईटी की पढ़ाई, उसके बाद लाखों की सैलरी वाली जॉब छोड़कर संन्यास का रास्ता अपना लिया.. क्यों? अब आईआईटी वाले बाबा का बदला लिबास और संन्यास की वायरल बातें सुनकर आपकी राय जो बनी हो, वो निजी हो सकती है, लेकिन इस महाकुंभ में जो सार्वजनिक रूप से दिखता है, वो सनातन के तत्व-ज्ञान को लेकर कुछ और ही कहता है.
जूना अखाड़े में आईआईटी वाले बाबा अभय सिंह की एंट्री कराने वाले बाबा सोमेश्वर इसकी एक मिसाल है. बाबा सोमेश्वर को अंग्रेजी में बात करते हुए देख कर ही लगा था कि इनका बैकग्राउंड आम संन्यासियों का नहीं है. छानबीन में पता चला कि बाबा सोमेश्वर आंध्र प्रदेश के रहने वाले हैं. बाबा सोमेश्वर ने 9 साल तक एयरफोर्स में ग्राउंड स्टाफ की नौकरी की. उसके बाद कैनरा बैंक असिस्टेंट मैनेजर की नौकरी की. उनकी 3 बेटियां हैं, सभी सेटल्ड हैं. वे 55 साल की उम्र में सब छोड़कर संन्यासी बन गए.
संन्यासी बने तो फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा
अभय सिंह ने तो अपने बारे में वो सबकुछ बता दिया, जो कायदे से नहीं बताना चाहिए. लेकिन उनके गुरु बाबा सोमेश्वर, अपने पीछे के जीवन का जिक्र करना पसंद नहीं करते. लिहाजा उन्होंने बात नहीं की. हमारे संवाददाता के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा- जिसे पीछे छोड़ा, उसे न पूछो. एक संन्यासी इस मार्ग पर कैसे आया, इसका कारण तो एक ही होता है, मगर जवाब एक नहीं हो सकता. इसलिए उसके पिछली चीजें एक संन्यासी की नहीं पूछनी चहिए.
बाबा सोमेश्वर जूना अखाड़े के जाने माने संन्यासियों में से एक हैं. यहीं के एक संत, स्वामी शिवपुर से वो महाकुंभ में संपर्क में आए, जैसे आईईटी वाले बाबा अभय सिंह उनसे काशी में मिले थे. बाबा सोमेश्वर के साथ अभय सिंह तो संन्यास मार्ग पर आगे बढ़े, महाकुंभ तक आए, लेकिन फिलहाल वो भटकाव की हालत में दिखाई देते हैं. लेकिन बाबा सोमेश्वर एक बार सनातन के बताए संन्यास मार्ग पर बढ़े तो फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा.
महाकुंभ में 2 लाख साधुओं को मिलेगी दीक्षा
अनंतानंद सरस्वती महानिर्वाणी अखाड़े में इसी महाकुंभ में महामंडलेश्वर नियुक्त किए गए हैं. ये सबकुछ छोड़कर संन्यासी बन गए, लेकिन क्यों, इस सवाल पर इनकी भी कहानी एक गृहस्थ को नए सिरे से चौंकाती है.
इस महाकुंभ में जूना अखाड़े से महानिर्वाणी जैसे बड़े अखाड़ों में नए साधु-संन्यासियों की बड़े पैमाने पर दीक्षा हो रही है. सनातन के सभी 13 अखाड़े इस महाकुंभ में 2 लाख से ज्यादा नागा संन्यासियों को दीक्षा देंगे. इसमें पुरुष भी हैं और बड़ी संख्या में महिलाएं भी. दिलचस्प बात ये है कि नागा संन्यासियों में कई विदेशी महिलाएं भी शामिल हैं. तो आखिर, सनातन के संन्यास में कौन सा तत्व ज्ञान है, जो सबको खींच रहा है. हाल ही में महानिर्वाणी अखाड़े में महामंडलेश्वर बनाए गए अनंतानंद सरस्वती संन्यास को आत्म-ज्ञान का परम-मार्ग बताते हैं.
महाकुंभ के पहले हफ्ते में बनाए गए 25 महामंडलेश्वर!
सनातन के अखाड़ों में महामंडलेश्वर वो ओहदा होता है, जहां तक पहुंचने में संन्यासियों को बरसों लग जाते हैं. इसके बाद इन्हें पूरे विधि-विधान से अखाड़ों में नई भूमिका सौंपी जाती है. ये संख्या बताती है, सनातन के अखाड़े किस तरह नये समय के संन्यासियों के साथ अपनी परंपरा का कायाकल्प कर रहे हैं. महाकुंभ में बनाए गए नए इन्हीं महामंडलेश्वर में से एक हैं स्वामी अनंतानंद सरस्वती.
अखाड़ों में कौन बनते हैं महामंडलेश्वर?
स्वामी अनंतानंद सरस्वती महानिर्वाणी अखाड़े के नए महामंडलेश्वर हैं. ये पदवी साधु संतों की मंडली चलाने वाले मंडलीश्वर के बाद दी जाती है. महामंडलेश्वर बनने के लिए मुख्य तौर पर 3 शर्तों को पूरा करना पड़ता है. इनमें संन्यास का सख्ती से पालन, वेद-पुराणों का अध्ययन और ज्ञान-व्यावहार अच्छा हो. अनंतानंद सरस्वती ने बीटेक किया है और अच्छी खासी नौकरी छोड़कर संन्यासी बने हैं.
स्वामी अनंतानंद सरस्वस्वती जिस पौराणिक ज्ञान मार्ग और संन्यास की बात कह रहे हैं, वो महाकुंभ में जमा हुए नए संत समाज में साफ दिखता है. इस महाकुंभ में तमाम साधु पहले की पारंपरिक संत जमात से बिलकुल अलग दिखती है. आज के संन्यासी स्मार्टफोन और दूसरे गैजेट से परहेज नहीं करते बल्कि इससे लैस होकर सनातन का प्रचार नई सूचना पद्धति के लिहाज से करते दिखते हैं.
महाकुंभ में हाईटेक महामंडलेश्वर
फर्क सिर्फ स्मार्ट फोन या गैजेट का नहीं, बल्कि आप ये जानकर हैरान होंगे, कि तमाम अखाड़ों में कई साधु, इंजीनियर, वैज्ञानिक और पूर्व सैनिक अधिकारी भी रहे हैं. ये बात आपको इसी महाकुंभ में दिख रहे कुछ मिसालों से समझाते हैं. जैसे
अभय पुरी, जूना अखाड़ा
ये जयपुर के रहने वाले हैं. 11 साल तक फॉरेस्ट रेंजर रहे. 90 हजार रु की सैलरी मिलती थी
आशुतोषानंद गिरि, निरंजिनी अखाड़ा
बिहार के रहने वाले ये महामंडलेश्वर कोलकाता में लॉ के प्रोफेसर थे. स्वामी विवेकानंद यूनिवर्सिटी में इन्हें 75 हजार रु. की सैलरी मिलती थी लेकिन बीच नौकरी में संन्यास का मार्ग अपना लिया.
अरविंदानंद गिरी, अग्नि अखाड़ा
गाजियाबाद के रहने वाले ये महामंडलेश्वर मैकेनिकल इंजीनियर थे. हिंदुस्तान मोटर्स जैसी बड़ी कंपनी में नौकरी में 2.5 लाख तक सैलरी थी. अमेरिकी लड़की के साथ शादी को लेकर परिवार तैयार नहीं हुआ, तो बैराग की तरफ बढ़े.
व्यासानंद गिरि, निरंजनी अखाड़ा
व्यासानंद गिरि की कहानी तो और दिलचस्प है. ये अमेरिका के रहने वाले हैं, असली नाम टॉम है. इन्होंने आईटी सेक्टर की बड़ी कंपनियों में काम किया, लाखों की सैलरी उठाई. लेकिन सनातन और हिंदुत्व पर शोध के दौरान संन्यास की ओर आकर्षित हुए.
बाबा मोक्षपुरी, जूना अखाड़ा
अमेरिका के ही एक और महामंडलेश्वर हैं, जिनका असली नाम है माइकल. न्यू मेक्सिको के रहने वाले माइकल पहले अमेरिकी सेना में अधिकारी थे. लेकिन सनातन की परंपराओं से आकर्षित होकर सबकुछ त्याग कर संन्यासी बन गए.
इन सभी हाईटेक महामंडलेश्वर से संन्यास की वजह पूछो तो एक सीमा से ज्यादा वो अपने बारे में कुछ नहीं बताते. जो बताते हैं, उसका भाव एक ही है- खुद के सात्विक अस्तित्व की तलाश उन्हें व्यावहारिक जीवन से अलग संन्यास की तरफ ले आई. अब ये सनातन कुटुंब और संन्यास मार्ग उन्हें किस तत्व ज्ञान की तरफ ले जाएगा, और उस ज्ञान साथ सनातन धर्म और समाज में क्या भूमिका होगी, इसे लेकर महामंडलेश्वर एक सकारात्मक चुप्पी बरतते हैं.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)