Mahakumbh 2025: महाकुंभ का तीसरा शाही स्नान 29 जनवरी को मौनी अमावस्या पर है. मौनी अमावस्या के दिन ही संन्यासी नागा साधु बनते हैं. बहुत कम ही लोग जानते हैं कि मौनी अमावस्या पर ही क्यों नागा साधु बनते हैं.
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Mahakumbh 2025: प्रयागराज में संगम किनारे चल रहे महाकुंभ में देश विदेश से श्रद्धालु पहुंच रहे हैं. अब तक 7 करोड़ से ज्यादा श्रद्धालुओं ने त्रिवेणी के पावन तट पर आस्था की डुबकी लगाने संगम पहुंच चुके हैं. दूसरी तरफ धर्म और राष्ट्र को समर्पित सनातन संस्कृति के अखाड़ों में नागा फौज तैयार की जा रही है. गंगा के तट पर जूना अखाड़े के करीब 5 हजार संन्यासी अपना पिंडदान करके 108 डुबकी लगाकर नागा संत बनने की अंतिम क्रिया की तरफ बढ़ गए हैं.
नागा साधु बनने की अंतिम प्रक्रिया में 5 हजार संन्यासी
जूना अखाड़े की चार मढ़ियों की अगुवाई में गंगा के तट पर करीब 5 हजार संन्यासियों ने 8 से 10 प्रकार के 108 डुबकी लगाई है. करीब 36 घंटे तक चलने वाली कठिन तपस्या के बाद आज शाम को जूना अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर अवधेशानंद गिरी अखाड़े के शिविर में धर्म ध्वजा के नीचे दीक्षा देकर इन्हें नागा संत बनाएंगे. इसमें अंतिम प्रक्रिया विजया हवन से गुजरकर यह सभी संन्यासी नागा साधु बन जाएंगे.
महाकुंभ में ही बनाए जाते हैं नागा साधु
महाकुंभ में ही नागा संत बनाए जाने की परम्परा है. इसमें अखाड़ों में नागा संत बनाए जाते हैं. करीब 8 से 10 तक गुरु के सानिध्य में सनातन और अखाड़े की परंपरा का निर्वहन करना होता है. जब यह नागा बनने के योग्य हो जाते हैं तब इन्हें कठिन जप तप के बाद खुद के साथ पिता और माता का पिंड दान करना होता है. पिंड दान के बाद इनका सांसारिक मोह माया खत्म हो जाती है. इनके लिए सिर्फ अखाड़े की धर्म ध्वजा ही सब कुछ होती है. नित धर्म ध्वजा के नीचे ईष्ट के पूजन के साथ ये धर्म और संस्कृति को बढ़ाने में जुट जाते हैं. महाकुंभ में अमृत स्नान के बाद यह देश की अलग अलग दिशाओं में अखाड़े और सनातन धर्म की परम्परा का प्रचार प्रसार के लिए निकल जाते हैं.
मौनी अमावस्या का विशेष महत्व
एक संन्यासी को नागा साधु बनाने की प्रक्रिया मौनी अमावस्या से पहले शुरू हो जाती है. परंपरा के मुताबिक, पहले दिन मध्यरात्रि में एक विशेष पूजा की जाएगी, जिसमें दीक्षा ले चुके संन्यासी को उनके संबंधित गुरु के सामने नागा बनाया जाएगा. संन्यासी मध्यरात्रि में गंगा में 108 डुबकी लगाएंगे. इस स्नान के बाद, उनकी आधी शिखा (चोटी) काट दी जाएगी. इसके बाद उन्हें तपस्या करने के लिए जंगल में भेज दिया जाएगा. आस-पास कोई जंगल न होने की स्थिति में, संन्यासी अपना शिविर छोड़ देते हैं. उन्हें मनाने के बाद वापस बुलाया जाएगा. तीसरे दिन वे नागा के रूप में वापस आएंगे और उन्हें अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर के सामने लाया जाएगा.
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