Naga Sadhu Gotra: मोह-माया त्याग चुके नागा साधुओं का क्या होता है गोत्र, हैरान कर देंगी ये बातें
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Naga Sadhu Gotra: मोह-माया त्याग चुके नागा साधुओं का क्या होता है गोत्र, हैरान कर देंगी ये बातें

Mahakumbh 2025: सनातन धर्म में गोत्र को अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, गोत्र ऋषियों की परंपरा से जुड़ा है. ब्राह्मणों के लिए गोत्र का विशेष महत्व है, क्योंकि यह माना जाता है कि हर ब्राह्मण का संबंध किसी न किसी ऋषि के कुल से होता है.

Naga Sadhu Gotra: मोह-माया त्याग चुके नागा साधुओं का क्या होता है गोत्र, हैरान कर देंगी ये बातें

What is the Gotra of Naga Sadhus : सनातन धर्म में गोत्र को अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, गोत्र ऋषियों की परंपरा से जुड़ा है. ब्राह्मणों के लिए गोत्र का विशेष महत्व है, क्योंकि यह माना जाता है कि हर ब्राह्मण का संबंध किसी न किसी ऋषि के कुल से होता है. भारत में जन्म लेने वाले प्रत्येक व्यक्ति का कोई न कोई कुल या गोत्र अवश्य होता है. लेकिन क्या सांसारिक मोह-माया का त्याग कर चुके नागा साधुओं का भी गोत्र होता है? आइए, जानते हैं.

साधु-संतों के गोत्र

पुरी के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती के अनुसार, साधु-संतों का भी गोत्र होता है. भले ही वे इस संसार की मोह-माया से ऊपर उठ चुके हों, फिर भी वे गोत्र परंपरा से जुड़े होते हैं. श्रीमद्भागवत के चतुर्थ स्कंध के अनुसार, साधु-संतों का गोत्र "अच्युत" माना जाता है.मोह-माया को त्यागने के बाद साधु-संतों का जुड़ाव सीधे ईश्वर से हो जाता है और इसलिए उनका गोत्र अच्युत होता है.

नागा साधुओं का गोत्र

नागा साधु, जो सांसारिक जीवन से पूरी तरह मुक्त हो जाते हैं और भगवान शिव की भक्ति में लीन रहते हैं, उनका गोत्र भी "अच्युत" माना जाता है. नागा साधु धर्म के रक्षक कहे जाते हैं और सांसारिक मोह-माया से ऊपर उठ चुके होते हैं.

गोत्र परंपरा की शुरुआत

गोत्र परंपरा की शुरुआत प्राचीन काल में हुई. यह परंपरा चार प्रमुख ऋषियों - अंगिरा, कश्यप, वशिष्ठ, और भृगु से शुरू हुई. बाद में जमदग्नि, अत्रि, विश्वामित्र और अगस्त मुनि भी इस परंपरा में शामिल हो गए.आसान शब्दों में कहें तो गोत्र व्यक्ति की पहचान का एक रूप है.

जब गोत्र का पता न हो तब क्या करें?

अगर किसी को अपना गोत्र न पता हो, तो साधु-संत उसे कश्यप ऋषि का गोत्र देते हैं. कश्यप ऋषि का गोत्र इसलिए दिया जाता है, क्योंकि उन्होंने कई विवाह किए थे और उनके कई पुत्र हुए, जिनसे विभिन्न गोत्रों की उत्पत्ति हुई. इसलिए, गोत्र न मालूम होने पर व्यक्ति को कश्यप ऋषि के गोत्र से जोड़ा जाता है.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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