Artificial Heart: देश भर के 10 वैज्ञानिकों और डॉक्टरों की एक टीम ने दो साल में आर्टिफिशियल हार्ट को तैयार किया है. अगले साल यानी 2023 में इसका जानवरों पर परीक्षण किया जाएगा.
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IIT, Kanpur Made Artificial Heart: आईआईटी कानपुर (IIT, Kanpur) के एक्सपर्ट्स ने एक कृत्रिम हृदय (Artificial Heart) तैयार किया है. जो हृदय रोग संबंधी समस्याओं से जूझ रहे लोगों के लिए मददगार साबित होगा. आईआईटी कानपुर के निदेशक अभय करंदीकर ने कहा कि अब हार्ट ट्रांसप्लांट आसान होगा. गंभीर रोगियों में कृत्रिम दिल प्रत्यारोपित किए जा सकते हैं. आईआईटी कानपुर और देश भर के हृदय रोग विशेषज्ञों ने मिलकर इस कृत्रिम हृदय को विकसित किया है. जानवरों पर इसका परीक्षण फरवरी या मार्च से शुरू होगा. परीक्षण में सफलता मिलने के बाद दो वर्षों में इंसानों में प्रत्यारोपण किया जा सकता है.
दो साल किया गया तैयार
करंदीकर ने कहा कि हृदय रोग तेजी से बढ़ रहा है. बड़ी संख्या में मरीजों को हृदय प्रत्यारोपण की सलाह दी जा रही है. ऐसे में मरीजों की परेशानी कम करने के लिए कृत्रिम हृदय विकसित किया जा रहा है. उन्होंने कहा, ''10 वैज्ञानिकों और डॉक्टरों की एक टीम ने दो साल में इस कृत्रिम हृदय को तैयार किया है.
भारत में उपकरण और इम्प्लांट तैयार होने चाहिए
निदेशक ने कहा, भारत 80 प्रतिशत उपकरण और इम्प्लांट विदेशों से आयात करता है. केवल 20 प्रतिशत उपकरण और इम्प्लांट भारत में निर्मित किए जा रहे हैं. हृदय रोगियों के लिए अधिकांश इम्प्लांट और स्टेंट आयात किए जा रहे हैं. डॉक्टरों और वैज्ञानिकों को मिलकर उपकरण और इम्प्लांट तैयार करने चाहिए.
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कोविड-19 ने सिखाया कड़ा सबक
करंदीकर ने कहा, कोविड-19 ने हमें कुछ कड़ा सबक सिखाया. कोविड से पहले भारत में वेंटिलेटर नहीं बनते थे. कोरोना संक्रमितों की जान बचाने के लिए भारतीय वैज्ञानिकों और डॉक्टरों ने सिर्फ 90 दिनों में वेंटिलेटर तैयार किया. भारत में दो कंपनियां वेंटिलेटर बना रही हैं. भारत में विदेशी वेंटिलेटर की कीमत 10 से 12 लाख रुपये है जबकि भारतीय वेंटिलेटर सिर्फ 2.5 लाख रुपये में बन रहा है.'
देश में डॉक्टरों और पैरामेडिकल स्टाफ की भारी कमी
करंदीकर ने आगे कहा कि भारत में डॉक्टरों और पैरामेडिकल स्टाफ की भारी कमी है. प्रति 1000 की आबादी पर केवल 8 डॉक्टर हैं. इस कमी को एक बार में पूरा नहीं किया जा सकता है. हालांकि सरकार तेजी से अस्पताल और मेडिकल कॉलेज खोल रही है, लेकिन आबादी और भौगोलिक परिस्थितियों के हिसाब से डॉक्टर-स्टाफ का संकट बना रहेगा. ऐसे में जरूरत है कि चिकित्सा व्यवस्था को तकनीक से जोड़ा जाए.
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