Jaunpur News: तेरहवीं का 'भोज' नहीं बनेगा अब बोझ, यूपी के इस गांव का अनोखा फैसला
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Jaunpur News: तेरहवीं का 'भोज' नहीं बनेगा अब बोझ, यूपी के इस गांव का अनोखा फैसला

Jaunpur News: यूपी के जौनपुर जिले के ग्रामीणों ने आपस में एक बैठक करके गांव में किसी की मृत्यु के बाद होने वाले तेरहवीं भोज को पूरी तरह से बंद करने का निर्णय ले लिया है. समाज क्या कहेगा, ऐसी सोच की मजबूरी को अब बंद किया जाएगा. 

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अजीत सिंह/जौनपुर: यूपी के जौनपुर जिले के रामपुर सोइरी गांव ने बड़ा फैसला लिया है. इसके तहत ग्राम प्रधान और ग्रामीणों ने एक बैठक बुलाई, जिसमें उन्होंने मृत्युभोज की परंपरा समाप्त करने का निर्णय लिया. ग्रामीणों की पंचायत में इस प्रथा के बहिष्कार की घोषणा की गई. अब ग्रामीणों का प्रयास रहेगा कि गांव में कोई भी परिवार मृत्युभोज का आयोजन नहीं करे और न ही ऐसे आयोजन में शामिल हो.

दरअसल मामला कुछ एसा है कि जब किसी की मृत्यु के बाद होने वाला जो तेरहवीं का भोज होता है, उसमें समाज और बिरादरी के मान सम्मान को बनाए रखने के नाम पर भोज दिया था. इसमें लाखों रुपये खर्च हो जाते हैं और आदमी कर्जदार हो जाती है. इसी प्रथा को पूरी तरह से बंद करने का जौनपुर जिले में ग्राम प्रधान और ग्रामीणों ने निर्णय लिया है. ग्रामीणों की पंचायत में इस प्रथा के बहिष्कार की घोषणा की गई. ग्रामीणों का प्रयास है कि गांव में कोई भी परिवार मृत्युभोज का आयोजन नहीं करे और न ही ऐसे आयोजन में शामिल हो. यह निर्णय ग्रामीणों और सर्व-समाज के हित में लिया गया है गांव के लोगों ने भी बैठक में लिए गये इस फैसले का स्वागत किया है.

क्यों नहीं होगा तेरहवीं का 'भोज' 
तेरहवीं भोज बंद करने के पीछे बैठक करने वालों ने यह तर्क दिया कि यह परंपरा एक फिजूल खर्ची है. इस परंपरा के निर्वहन में आने वाले खर्चे से मृतक आत्मा को कोई लाभ नहीं मिलता, और तो और इससे मृतक के परिवार जनों पर आर्थिक बोझ बढ़ जाता है. हालांकि बैठक करने वालों के इस निर्णय से गांव में इस परंपरा के निर्वाहन पर क्या असर पड़ता है, यह तो आने वाला समय ही बताएगा.

लोग क्या कहेंगे है मजबूरी
मृत्युभोज की परंपरा बहुत पहले ही बंद हो जानी चाहिए थी. गांव के वरिष्ठ नागरिकों ने सुझाव दिया कि मृत्युभोज की परंपरा बहुत पहले ही बंद हो जानी चाहिए थी. यह परंपरा दिखावे से शुरू हुअी है. यह परंपरा, ज्यादातर लोगों के लिए यह समाज क्या कहेगा वाली मजबूरी बन गई है. ऐसा दिखावा ज्यादातर गांव के गरीब लोगों को सिर्फ कर्जदार बना रहीं है. यदि किसी की कुछ करने की इच्छा ही है तो मृत्युभोज में खर्च की बजाय वह गरीबों की बेटियों की शादी में खर्च करें या उनको कुछ दान कर दे.

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