Supreme Court on Free Ration Scheme: देशभर में कोरोना महामारी के बाद से मुफ्त राशन स्कीम जारी है. इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को बड़ा सवाल पूछा कि कि आखिर ये कब तक चलेगा? मजदूरों को रोजगार और क्षमता निर्माण के लिए काम क्यों नहीं किया जा रहा?
Trending Photos
Supreme Court on Freebies: सुप्रीम कोर्ट ने मुफ्त राशन को लेकर बड़ा सवाल पूछ लिया है. कोरोना महामारी के बाद से मुफ्त राशन दिए जा रहे प्रवासी मजदूरों के लिए रोजगार के मौके पैदा करने पर जोर देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पूछा,'कब तक मुफ्त में राशन दिया जा सकता है?' जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस मनमोहन की बेंच ने केंद्र की तरफ से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी से कहा,'इसका मतलब है कि सिर्फ टेक्सपेयर ही इससे वंचित रह गए हैं.'
2020 में कोरोना महामारी के दौरान प्रवासी मजदूरों की समस्याओं और दुखों पर स्वत: संज्ञान मामले में एक गैर सरकारी संगठन की तरफ से पेश हुए एडवोकेट प्रशांत भूषण ने उन्हें फौरन राहत प्रदान करने के लिए कहा कि 'ई-श्रम' पोर्टल पर रजिस्टर्ड सभी प्रवासी मजदूरों को मुफ्त राशन मुहैया कराने के लिए निर्देश जारी किए जाने की आवश्यकता है. बेंच ने कहा,'कब तक मुफ्त में राशन दिया जा सकता है? हम इन प्रवासी मजदूरों के लिए रोजगार के मौके, रोजगार और क्षमता निर्माण के लिए काम क्यों नहीं करते?'
भूषण ने कहा कि इस अदालत की तरफ से समय-समय पर सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को प्रवासी श्रमिकों को राशन कार्ड जारी करने के निर्देश जारी किए गए हैं, ताकि वे केंद्र की तरफ से दिए जाने वाले मुफ्त राशन का फायदा उठा सकें. उन्होंने कहा कि ताजा आदेश में कहा गया है कि जिन लोगों के पास राशन कार्ड नहीं हैं, लेकिन वे 'ई-श्रम' पोर्टल के तहत रजिस्टर्ड हैं, उन्हें भी मुफ्त राशन दिया जाना चाहिए.
इसको लेकर जस्टिस सूर्यकांत ने कहा,'यही समस्या है. जब हम राज्यों को सभी प्रवासी मजदूरों को मुफ्त राशन मुहैया कराने का निर्देश देंगे, यहां एक भी नहीं दिखेगा, वे भाग जाएंगे. लोगों को खुश करने के लिए राज्य राशन कार्ड जारी कर सकते हैं क्योंकि वे अच्छी तरह जानते हैं कि मुफ्त राशन उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी केंद्र की है.' बेंच ने कहा,'हमें केंद्र और राज्यों के बीच विभाजन नहीं करना चाहिए, अन्यथा यह बहुत मुश्किल होगा.'
तुषार मेहता ने कहा कि इस अदालत के आदेश कोविड-विशिष्ट थे. उस समय इस अदालत ने प्रवासी श्रमिकों के सामने आने वाले संकट को देखते हुए राहत मुहैया करने के लिए कमोबेश दैनिक आधार पर आदेश पारित किए. उन्होंने कहा कि सरकार 2013 के अधिनियम से बंधी हुई है और वैधानिक योजना से आगे नहीं जा सकती. मेहता ने कहा कि कुछ ऐसे एनजीओ हैं जिन्होंने महामारी के दौरान जमीनी स्तर पर काम नहीं किया और वह हलफनामे में बता सकते हैं कि याचिकाकर्ता एनजीओ उनमें से एक है. सुनवाई के दौरान मेहता और भूषण के बीच तीखी नोकझोंक हुई क्योंकि सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि अदालत को 'एक आरामदेह एनजीओ के ज़रिए दिए गए आंकड़ों पर भरोसा नहीं करना चाहिए, जो लोगों को राहत देने के बजाय शीर्ष अदालत में याचिका का मसौदा तैयार करने और दाखिल करने में मसरूफ था.
भूषण ने कहा कि मेहता उनसे नाराज़ थे क्योंकि उन्होंने उनसे संबंधित कुछ ईमेल जारी किए थे, जिनका नुकसानदेह प्रभाव पड़ा.
मेहता ने पलटवार करते हुए कहा,'मैंने कभी नहीं सोचा था कि वह (भूषण) इतना नीचे गिर जाएंगे लेकिन अब जब उन्होंने ईमेल का मुद्दा उठाया है, तो उन्हें जवाब देने की जरूरत है. उन ईमेल पर अदालत ने विचार किया था. जब कोई सरकार या देश को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करता है तो उसे ऐसी याचिकाओं पर आपत्ति जतानी ही चाहिए.'
जस्टिस सूर्यकांत ने मेहता और भूषण दोनों को शांत करने की कोशिश की और कहा कि प्रवासी मजदूरों के मामले में विस्तृत सुनवाई की जरूरत है और इसे 8 जनवरी के लिए सूचीबद्ध किया.
बता दें कि जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस मनमोहन की बेंच उस समय हैरान रह गई जब केंद्र ने अदालत को बताया कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013 के तहत 81 करोड़ लोगों को मुफ्त या रियायती राशन दिया जा रहा है.