न सम्मानजनक मानदेय, न गाड़ी, न टोल माफी, कैसे करें राहत कैंपों में काम? रंधावा - डोटासरा को प्रधानों ने सुनाई पीड़ा
Advertisement

न सम्मानजनक मानदेय, न गाड़ी, न टोल माफी, कैसे करें राहत कैंपों में काम? रंधावा - डोटासरा को प्रधानों ने सुनाई पीड़ा

गहलोत सरकार के महत्वाकांक्षी अभियान यानि महंगाई राहत कैम्प को एक महीना हो चुका है.  लेकिन ग्रामीण क्षेत्र के जनप्रतिनिधियों की चिंता यह है कि वे संसाधनों के अभाव में इन कैम्पों को कारगर कैसे बना पाएंगे?

न सम्मानजनक मानदेय, न गाड़ी, न टोल माफी, कैसे करें राहत कैंपों में काम? रंधावा - डोटासरा को प्रधानों ने सुनाई पीड़ा

Rajasthan News : गहलोत सरकार के महत्वाकांक्षी अभियान यानि महंगाई राहत कैम्प को एक महीना हो चुका है.  लेकिन ग्रामीण क्षेत्र के जनप्रतिनिधियों की चिंता यह है कि वे संसाधनों के अभाव में इन कैम्पों को कारगर कैसे बना पाएंगे? कांग्रेस के राजीव गांधी पंचायतीराज संगठन से जुड़े जनप्रतिनिधियों ने अपनी पीड़ा पार्टी के मुखिया और प्रभारी के सामने रखी है. पीसीसी में हुए संवाद कार्यक्रम में कांग्रेस से जुड़े पंचायत समिति प्रधान और आरजीपीआरएस के सदस्य वरिष्ठ नेताओं से रूबरू हुए. इस दौरान उन्होंने अपनी ग्यारह सूत्री मांगें भी पार्टी नेताओँ को बताई. पीसीसी चीफ गोविन्द डोटासरा और प्रभारी रंधावा ने ग्रामीण क्षेत्र के जनप्रतिनिधियों को आश्वासन तो दिया है...और चुनावी साल में इन लोगों को यह काम पूरा होने की उम्मीद भी है.

सरकार महंगाई राहत कैम्प लगा रही है. जनप्रतिनिधियों को कैम्प कारगर बनाने का आह्वान किया जा रहा है. लेकिन सवाल यह उठता है कि आखिर ग्रामीण क्षेत्र के जनप्रतिनिधि सरका और कांग्रेस पार्टी की इन उम्मीदों पर खरा कैसे उतरेंगे? वैसे तो यह सवाल सुनने में अजीब लग सकता है, लेकिन इसका कारण है जनप्रतिनिधियों को मिलने वाले संसाधन. राजीव गांधी पंचायतीराज संगठन के प्रदेशाध्यक्ष सीबी यादव और प्रधान संघ के अध्यक्ष दिनेश सुंडा कहते हैं कि सरकार के कैम्प को अच्छा रेस्पॉन्स मिल रहा है, लेकिन अगर सरकार पंचायतीराज के जनप्रतिनिधियों को थोड़े संसाधन और बढ़ाए तो इसके ज्यादा अच्छे नतीजे आ सकते हैं.

दिनेश सुण्डा कहते हैं कि गांवों में बड़ी आबादी का नेतृत्व कर रहे प्रधान, जिला परिषद और पंचायत समिति सदस्य अपनी समस्याओं से जूझ रहे हैं. यही कैम्प में जाने और मॉनिटरिंग में बड़ी बाधा बन रहा है. प्रधानों कि पीडा यह है कि पंचायत समिति के एक प्रधान को महीने का 9600 रुपये मानदेय के रूप में मिलता है. उसे ना तो पंचायत समिति में 10 दिन से ज्यादा गाड़ी मिलती है, ना ही पंचायत समितियों में उपलब्ध गाड़ियां इस हालत में हैं कि वे लम्बी दूरी तय कर सके. प्रधानों ने यह पीड़ा पीसीसी चीफ गोविन्द डोटासरा और प्रभारी सुखजिंदर रंंधावा के सामने रखी.

कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीते प्रधान संघ के अध्यक्ष दिनेश सुंडा ने कहा कि सरकार ग्रामीण क्षेत्रों के जनप्रतिनिधियों से फ्लैगशिप योजनाएं धरातल पर उतारने के लिए सक्रिय होने की बात तो करती है लेकिन ग्रामीण क्षेत्र के जनप्रतिनिधियों को ना तो सर्किट हाउस में रुकने की सुविधा है, ना ही उन्हें टोल से राहत दी गई है. ऐसे में एक जनप्रतिनिधि कैसे राज्य सरकार की योजनाएं जनता तक पहुंचाने में मॉनिटरिंग कर सकता है?

पंचायतीराज में काम करने वाले नेताओं और संगठन के लोगों की मांग पर पीसीसी चीफ गोविन्द डोटासरा ने भी माना है कि प्रधानों की दिक्कतें जायज हैं. पीसीसी चीफ ने कहा कि पंचायती राज व्यवस्था को राजस्थान में कैसे मजबूत किया जाए उसका प्रयास किया जाएगा. उन्होंने माना कि पंचायत और जिला परिषद की कमेटियों की समय पर मीटिंग नहीं हो रही है और प्रधानों को जो गाड़ी मिल रही है वह भी पूरे महीने नहीं मिलती और ना ही उन्हें सर्किट हाउस में रुकने की सुविधा मिलती है. डोटासरा ने इन लोगों को अपना मांग पत्र तैयार करने को कहा जिससे समाधान के लिए सरकार से बात की जाएगी.

पीसीसी चीफ ने मांग पत्र मांगा तो थोड़ी ही देर में आरजीपीआरएस के अध्यक्ष ने यह काम भी पूरा कर दिया. चुनावी साल में संगठन की सक्रियता को देखते हुए पंचायतीराज के जनप्रतिनिधियों में भी आस जगी है. उनका कहना है कि अगर उनकी मांग पूरी हुई और संसाधन मिले तो सरकार के काम को हर घर तक पहुंचाने में ज्यादा रफ्तार आ सकेगी.

Trending news