राजस्थान के कोटा की एग्रीकल्चर यूनिवर्सिट में खाद्य पदार्थों के स्टार्टअप तैयार हो रहे है. इससे इंटरप्रेन्योर बनकर महिलाएं आत्मनिर्भर बन रही है. यूनिवर्सिटी में तकनीक के जरिए स्वाद और सेहत से भरपूर खाद्य पदार्थ तैयार किए जा रहे है.
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Kota: राजस्थान के कोटा की एग्रीकल्चर यूनिवर्सिट में खाद्य पदार्थों के स्टार्टअप तैयार हो रहे है. इससे इंटरप्रेन्योर बनकर महिलाएं आत्मनिर्भर बन रही है. यूनिवर्सिटी में तकनीक के जरिए स्वाद और सेहत से भरपूर खाद्य पदार्थ तैयार किए जा रहे है. कोटा एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी कृषि उत्पादन, फ़ूड प्रोसेसिंग क्षेत्र में तकनीक का बेहतर इस्तेमाल करते हुए अपना सामाजिक सरोकार भी निभा रहा रही है.
खाद्य पदार्थों को स्वाद के साथ-साथ स्वास्थ्य के लिए बेहतर बनाने पर कोटा एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी काम कर रही है. यूनिवर्सिटी में सोयाबीन और सहजना (मोरिंगा) के बिस्किट, पान और गुलाब के शर्बत, चुकंदर की कैंडी, अब लोगों के बीच खासी जगह बना चुकी है. यूनिवर्सिटी की लैब में तरह-तरह के अचार, मुरब्बे, सोया उत्पाद, शर्बत, कैंडीज बनाए जा रहें है और इनकी पैकेजिंग भी करवाई जा रही है.
यूनिवर्सिटी में महिलाओं को किसी भी खाद्य पदार्थों के लिए रॉ-मेटेरियल से लेकर उन्हें बनाने और पैकेजिंग तक कि पूरी तकनीक निःशुल्क सिखाई भी जा रही है. यानि अगर आप फ़ूड प्रोडक्ट की दुनिया मे कदम रखना चाहते हैं और खुद का मुकाम बनाना चाहते हैं, तो कोटा एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी आपके लिए एक बेहतर ऑप्शन है. यहां के विशेषज्ञों की टीम आपको भरपूर सहयोग करेगी.
यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर डॉ गुंजन सनाढ्य ने बताया कि वे यहां अब तक दो हजार से ज्यादा महिलाओं को तरह तरह के फ़ूड प्रोडक्ट बनाना सिखा चुकी है, जिनमे सोया-पनीर, सोया-बिस्किट, अचार, आंवला, सहजना से बनी कैंडीज, मुरब्बे, पान के शर्बत सोयाबीन के टोस्ट, चुकंदर के बिस्किट, सजहन (मोरिंगा) से बनी नमकीन, मठरी आदि शामिल है.
सबसे खास बात ये है कि यूनिवर्सिटी द्वारा तैयार करवाए जा रहे इन प्रोडक्ट्स में किसी तरह के प्रिजर्वेटिव का इस्तेमाल नहीं किया जाता है. ऐसे में कहा जा सकता है कि ये खाद पदार्थ सेहत के लिहाज से भी बेहतर है.
लैब्स में काम कर रही सूरज सुमन जो कोटा के रायपुरा की रहने वाली है, सुमन एक अतिसाधारण परिवार से ताल्लुक रखती है. हाउस वाइफ से वर्किंग सुमन बन चुकी हैं. सुमन बताती है कि उन्होंने कोटा एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी से ट्रेनिंग ली थी, जिसके बाद से वे लगातार यहां ना केवल खाद्य पदार्थ तैयार कर रही है, बल्कि अन्य लोगों को सिखा भी रही है.
सूरज सुमन का एक SSG (स्वयं सहायता समूह) है, जिसमे 8 से 10 महिलाएं हैं, जो इन सभी प्रोडक्ट्स को तैयार करती है और दो महिलाएं इन प्रोडक्ट की मार्केटिंग करती है, उन्हें बाजार में उपलब्ध करवाती है. सूरज सुमन के स्वयं सहायता समूह द्वारा तैयार किए जा रहे ये खाद पदार्थ अब लोगों को पसंद आ रहे है.
उन्हें लगातार ऑर्डर मिल रहे है इस काम से सुमन और उसके ग्रुप की सभी महिलाओं को अच्छा खासा मुनाफा होने लगा है और अब वे कंधे से कंधा मिलाकर परिवार चलाने में मदद कर रही है.
ठीक ऐसी ही कहानी है बेबी सैनी की, जिन्होंने 10 साल पहले यूनिवर्सिटी में फ़ूड प्रोडक्ट तैयार करने की ट्रेनिंग ली थी और आज हर तरह का खाद पदार्थ तैयार कर अच्छी पैकेजिंग करवा कर स्वयं सहायता समूह के जरिये बाजार में बिजनेस कर रहीं है. स्वाद और सेहत से भरपूर अच्छे खाद्य पदार्थ बेच कर वे आत्मनिर्भर बन अपना नाम भी बना रही है और अपनी आय भी बढ़ा रहीं है.
वहीं महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के साथ उन्हें आर्थिक रूप से भी सुद्रढ़ बनाने वाली टीम की इंचार्ज डॉ गुंजन सनाढ्य ने बताया कि वे यहां सीखने आने वालों के लिए हर सम्भव मदद निशुल्क मुहैया करवाते है, यहां तक कि कोई व्यक्ति अगर ट्रेनिंग लेने के बाद यहां लैब्स में अपना प्रोडक्ट बनाना चाहे तो सभी मशीनरी उसे यूज में लेने के लिए उपलब्ध करवाई जाती है जिसका कोई शुल्क नही लिया जाता है.
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यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर डॉ गुंजन कहती है कि अब तक वह सैकड़ों महिलाओं को ट्रेनिंग दे चुकी है जो अब पूरी तरह से आत्मनिर्भर है, और सफल एंटरप्रेन्योर बनने की ओर अग्रसर है. उनका कहना है कि यूनिवर्सिटी में तैयार ये पदार्थ स्वस्थ की दृष्टि से कई मायनों में बेहतर है. जैसे- सोयाबीन और सहजना प्रोटीन और कैल्शियम का खजाना है, इन्हें सीधे तौर पर खाना सम्भव नही हो पाता है ऐसे में इनसे बने पदार्थ जैसे बिस्किट, टोस्ट आदि के जरिये शरीर मे पोषण पहुंच जाता है.
स्तनपान कराने वाली महिलाओं, बुजुर्गों के लिए ये खासे कामगार है. वहीं आजकल बच्चे स्वाद के कारण पौष्टिक खाने से दूर होते जा रहे है ऐसे में इनसे तैयार चॉकलेट और बिस्किट के जरिये बच्चों को पोषण दिया जा सकता है. इसके अलावा जिन क्षेत्रों में बच्चो और गर्भवती महिलाओं में कुपोषण ज्यादा है वहां भी इन खाद्य पदार्थों के जरिये कुपोषण कर काबू पाया जा सकता है. पान और गुलाब का शर्बत पेट की शीतलता के साथ साथ पाचन शक्ति को बढ़ा देने वाला है.
कोटा एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी की टीम की ये मुहिम लाजवाब है और तारीफ -ए -काबिल है, जो बेरोजगारी के इस दौर में युवाओं को रोजगार से जोड़ रही है, महिलाओं को आत्मनिर्भर बना कर उन्हें सम्मान से जीने का हक दिला रही है.
Repoter: KK Sharma
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