Jodhpur: राजस्थानी भाषा को संविधानिक रूप से आठवी सूची मे शामिल करने की मांग व संदेश को राजस्थान के जन जन तक पहुंचाने को लेकर श्री डूंगरगढ के रीडी से साइकिल पर सवार होकर यात्रा पर निकले लालचंद जाखड आज फलोदी पहुचें जहा उनका लोगों ने गर्मजोशी के साथ स्वागत किया.
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Jodhpur: मातृभाषा किसी भी देश या क्षेत्र की संस्कृति और अस्मिता की संवाहक या ये कहें कि पहचान होती है . इसके बिना मौलिक चिंतन संभव नहीं है . नई शिक्षा नीति में कक्षा 5 तक शिक्षा का माध्यम मातृभाषा, स्थानीय या क्षेत्रीय भाषा में रखने की बात कही गई है . लेकिन राजस्थान के लोग मातृभाषा में शिक्षा पाने से आज भी वंचित हैं. अभी तक राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता नहीं मिली है.
यानि इसे आठवीं अनुसूची में स्थान नहीं दिया गया है . ग़ौरतलब है कि 1936 में राजस्थानी को पहली बार संवैधानिक दर्जा देने की मांग उठी थी . लेकिन 2003 में राज्य विधानसभा में इस पर सहमति बनी और प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा गया . केंद्र ने ओडिशा के वरिष्ठ साहित्यकार एस.एस. महापात्र के नेतृत्व में एक समिति का गठन किया गया . उन्होंने दो साल बाद रिपोर्ट सौंपी.
इसमें राजस्थानी और भोजपुरी भाषा को संवैधानिक दर्जा देने के योग्य घोषित किया गया. इतना ही नही वर्ष 1990-95 मे सेवानिवृत मुख्य न्यायाधीश व पाली लोकसभा से सांसद स्व गुमानमल लोढा़ ने भी राजस्थानी मायड भाषा को मान्यता दिलाने क़ लेकर आंदोलन कर सरकार से मांग की थी तब वर्ष 2006 में तत्कालीन गृह मंत्री ने चौदहवीं लोकसभा के कार्यकाल में राजस्थानी को संवैधानिक दर्जा देने का आश्वासन दिया . लिहाजा बिल भी तैयार कर लिया गया . लेकिन आज तक उसे पेश नहीं किया गया.
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