राजस्थानी थाली से पाकिस्तान का कब्जा होगा खत्म, अब बंजर भूमि से मिलेगा जायका
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राजस्थानी थाली से पाकिस्तान का कब्जा होगा खत्म, अब बंजर भूमि से मिलेगा जायका

आपने किसी दावत या अपने घर में पापड़ रोजमर्रा की जिंदगी में खाई होंगे. लेकिन आपको यह पता है कि पापड़ बनाने के लिए जिस चीज का सबसे अधिक उपयोग होता है, उसे साजी कहा जाता है. 

प्रतीकात्मक तस्वीर

Khajuwala: आपने किसी दावत या अपने घर में पापड़ रोजमर्रा की जिंदगी में खाई होंगे. लेकिन आपको यह पता है कि पापड़ बनाने के लिए जिस चीज का सबसे अधिक उपयोग होता है, उसे साजी कहा जाता है. इसी के पानी के घोल में पापड़ गुदने का काम किया जाता है, जिससे कई दिनों तक पापड़ को खराब नहीं होते. साथ ही खाने वाले का हाजमा भी ठीक रहता है. 

अब तक पाकिस्तान से होती थी आयात
साजी अब तक बड़ी मात्रा में पाकिस्तान से आयात की जाती थी. कई बार यह तस्करी के माध्यम से भी अफगानिस्तान के रास्ते भारत पहुंची थी, जिससे यहां के व्यापारियों को काफी आर्थिक नुकसान भी उठाना पड़ता था. कोरोना काल के पहले लॉकडाउन के दौरान साजी के भाव आसमान में पहुंच गए थे. ऐसा लग रहा था जैसे पापड़ उद्योग अब खत्म ही हो रहा है.

किसानों ने की नई पहल
खाजूवाला क्षेत्र के किसानों ने बंजर अनुपयोगी लवणीय भूमि पर पहली बार साजी के पौधे के बीज लगाकर एक नई पहल की. शुरुआती दौर में किसानों को जरूर हताशा हाथ आई, लेकिन लगातार प्रयास के बाद आखिर इस बार उन्होंने साजी की एक बड़ी फसल तैयार कर ली है. अब ऐसा लगने लगा है कि जिस साजी के लिए अब तक पाकिस्तान पर निर्भर रहना पड़ता था. आने वाले दिनों में भारत में भी बड़े पैमाने पर इसका फसल तैयार कर आयात करेगा.

बंजर, लवणीय और अनऊपयोगी भूमि पर सीमावर्ती किसानों ने साजी की व्यवस्थित खेती शुरू कर फसल तैयार की है. अभी तक पाक से आयात होने वाली साजी के पौधे को देश में पहली बार खेती कर नई पहल हुई है. इसके पौधे को जलाकर काले रंग के पत्थर के माफीक साजी बनती है, जिसका उपयोग पापड़ बनाने में किया जाता है. इस साल नहरों में पानी नहीं मिलने से जहां सीमावर्ती सिंचित क्षेत्र की उपजाऊ भूमि में फसलें बहुत कम हुई वहीं, बंजर पड़ी भूमि पर साजी के पौधे की हरियाली नजर भी आई.

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किसान शभू सिंह बताते हैं कि लवणीय और अन उपजाऊ जमीन पर साजी की पौध तैयार करना सबसे फायदेमंद रहता है, जिस जमीन में जितनी अधिक लवणीय मात्रा होगी साजी उतना अधिक पैदावार करेगी. एक बार इसकी फसल बोने के बाद 5 से 10 साल तक इसकी फसल ली जा सकती है. शंभू सिंह के इस नवाचार से आसपास के किसानों ने भी इस बार साजी की फसल बुवाई की है. शंभू सिंह को खेती में नवाचार के लिए नाबार्ड से सम्मानित भी किया गया है.

दूसरे किसानों ने भी की पहल
फिलहाल खाजूवाला क्षेत्र में 10 किसानों ने अनुपयोगी जमीन पर साजी बीज कर नवाचार की पहल की है. बाजार में इसके भाव 80 रुपये किलो से 250 रुपये किलो तक मिलते हैं, जिससे किसानों की आर्थिक स्थिति भी सुधरेगी साथ ही बेकार पड़ी बंजर जमीन भी काम आने लगेगी. किसानों की इस नई पहल में जहां भविष्य में साजी के लिए पाक पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा तो ही किसान भी इसे पाक द्वारा की जा रही सैनिकों के साथ नापाक हरकतों के विरोध में देश की अर्थव्यवस्था सुधार पाक को अपने हल से जवाब दे रहे हैं. 

Report: Tribhuvan Ranga

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