Bharatpur: भरतपुर नगर निगम के मेयर अभिजीत कुमार के निशाने पर एक बार फिर से निगम प्रशासन आ गया है. मेयर नगर निगम के नाकारा सिस्टम से बहुत व्यथित है, जनता को गुड़ गवरनेंस देना चाहते है लेकिन कुछ नहीं कर पा रहे है.
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Bharatpur: भरतपुर नगर निगम के मेयर अभिजीत कुमार के निशाने पर एक बार फिर से निगम प्रशासन आ गया है. मेयर नगर निगम के नाकारा सिस्टम से बहुत व्यथित है, जनता को गुड़ गवरनेंस देना चाहते है लेकिन कुछ नहीं कर पा रहे है. मेयर ने प्रेस वार्ता के दौरान अपनी पीड़ा जाहिर करते हुए नगर निगम के सिस्टम पर बड़े सवाल खड़े किए है.
भरतपुर शहर में सरकारी जमीनों पर हो रहे अतिक्रमणों और अवैध कब्जों के मामले पर बोलते हुए मेयर अभिजीत कुमार ने बड़ा आरोप लगाते हुए कहा कि जब जब नगर निगम कमिश्नर का तबादला होता है, तब तब तीन चार सरकारी जमीन पर भूमाफिया अवैध कब्जा कर लेते है. हाल ही में भरतपुर में सरकारी जमीन को लेकर बड़ा हत्याकांड हुआ है.
अब जमीनों के फर्जी पट्टे के मामले में नगर निगम के मेयर ने भी अपनी व्यथा सुनाई. मेयर ने कहा कि उनके कहने से एक अतिक्रमण तक नहीं हटता, और न ही किसी कर्मचारी का ट्रांसफर हो सकता है, जिस कर्मचारी को हटाने के लिए वह 1 साल पहले निर्देश देते है, वह नहीं हटता और उसकी फर्जी पट्टे के मामले में बड़ी भूमिका सामने आती है.
जब-जब आयुक्त बदलेगा तब-तब नए अतिक्रमण होंगे. मेयर अभिजीत ने कहा कि जब-जब नगर निगम के आयुक्त बदले जाएंगे तब-तब शहर में दो या तीन नए अतिक्रमण होंगे. नगर निगम की जमीन से अतिक्रमण हटाने के लिए 6-6 महीने तक कोशिश करनी पड़ती है लेकिन नगर निगम के अधिकारी और कर्मचारी इंतजार करते हैं कि अतिक्रमणकारी स्टे कब लेकर आए, ऐसे कई उदाहरण आये है. ऐसे हालत में अतिक्रमणकारी स्टे भी ले आता है और स्टे पर कार्रवाई नहीं होती.
नगर निगम 90 प्रतिशत केस हारते हैं, इसका सबसे बड़ा कारण है, जिन लोगों पर पैरवी का जिम्मा है, वह डबल क्रॉसिंग करते है. समय पर केस की पैरवी नहीं करते है. सुनवाई मुताबिक कागजी कार्रवाई नहीं कर पाते. अतिक्रमण इसलिए होते हैं क्योंकि अतिक्रमण करने वाला किसी न किसी का रिश्तेदार होता है. कर्मचारियों को अतिक्रमण हटाने के लिए भेजा जाता है तो वह कभी अतिक्रमणकारी के पास पेपर होने का किसी और बहाना लगा देते है.
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मेयर अभिजीत कुमार ने प्रेस वार्ता में कहा कि केंद्र सरकार को स्टेट गवर्मेंट पर भरोसा नहीं और स्टेट को लोकल बॉडी पर भरोसा नहीं? अब सिस्टम ऐसा हो गया कि केंद्र सरकार स्टेट गवर्नमेंट पर भरोसा नहीं करती और स्टेट गवर्नमेंट लोकल बॉडी पर भरोसा नहीं करती, जिन अधिकारियों कर्मचारियों की नगर निगम में पोस्टिंग होगी उनका ट्रांसफर नहीं होगा, यह अपने आप में एक गवर्मेंट है, अगर किसी का ट्रांसफर करना भी पड़े तो उसकी इतनी बेकार प्रोसेस होती है की पहले तो कमर्चारी या अधिकारी को APO करो, जिसके बाद वह जयपुर में DLB के पास जाएगा और DLB उसकी दूसरी जगह पर पोस्टिंग देगी. मेयर ने अपनी लाचारी जाहिर करते हुए कहा कि वह किसी कर्मचारी को सस्पेंड करके भी नहीं भेज सकता है, यहां एक लचर व्यवस्था है लेकिन यह व्यवस्था रही तो शहरी व्यवस्था को कैसे ठीक कर पाएंगे?
Reporter: Devendra Singh
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