Republic Day Special: मानगढ़ पहाड़ी पर जब बेहरमी से ले ली गई थी हजारों लोगों की जान, राजस्थान का 'जलियांवाला बाग़' कहलाती है ये जगह
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Republic Day Special: मानगढ़ पहाड़ी पर जब बेहरमी से ले ली गई थी हजारों लोगों की जान, राजस्थान का 'जलियांवाला बाग़' कहलाती है ये जगह

Republic Day Special: लोगों को जलियांवाला बाग में हुए नरसंहार के बारे में तो काफी कुछ पता है. लेकिन राजस्थान में हुए मानगढ़ नरसंहार के बारे में कम लोग ही जानते हैं. इस जगह को राजस्थान का 'जलियांवाला बाग़' कहा जाता है.

Republic Day Special: मानगढ़ पहाड़ी पर जब बेहरमी से ले ली गई थी हजारों लोगों की जान, राजस्थान का 'जलियांवाला बाग़' कहलाती है ये जगह

Republic Day Special: लोगों को जलियांवाला बाग में हुए नरसंहार के बारे में तो काफी कुछ पता है. लेकिन राजस्थान में हुए मानगढ़ नरसंहार के बारे में कम लोग ही जानते हैं. इस जगह को राजस्थान का 'जलियांवाला बाग़' कहा जाता है. ये नरसंहार 'जलियांवाला बाग़' में हुई घटना से 6 साल पहले हुए था.

जलियांवाला बाग में हुए नरसंहार के बारे में सोच कर, सुनकर आज भी रूह कांप जाती है. लेकिन मानगढ़ नरसंहार इससे ज्यादा खौफनाक था. पंजाब के बाग में हजार लोगों के ऊपर ताबड़तोड़ गोलियां चलवाकर अंग्रेजों ने उनकी जान ले ली थी. वहीं मानगढ़ नरसंहार में डेढ़ हजार से ज्यादा लोगों ने अपनी जान गंवाई थी.

मानगढ़ पहाड़ी पर जुटे हज़ारों लोगों पर अंग्रेज़ी ही नहीं, बल्कि देसी रियासतों की फ़ौज ने गोलियां बरसाईं थीं. कई बड़े साहित्यकार, इतिहासकार और स्थानीय लोग बताते हैं कि ये नरसंहार जलियांवाला बाग़ से बहुत बड़ा और खौफनाक था. लेकिन, इतने बड़े नरसंहार को इतिहास में कोई खास दर्जा नहीं दिया गया.

जयपुर से लगभग 550 किलोमीटर दूर आदिवासी इलाका बांसवाड़ा है. जिसके ज़िला मुख्यालय से क़रीब 80 किमी दूर है मानगढ़ बसा है. जैसे ही आप आनंदपुरी पंचायत समिति मुख्यालय से आगे की ओर जाएंगे, क़रीब चार किमी दूर से ही एक पहाड़ नजर आने लगता है.  ये पहाड़ 108 साल पहले हुए नरसंहार का गवाह है. ये पहाड़ इस नरसंहार की खौफनाक कहानी ख़ुद में समेटे हुए है. लोग अब इसे मानगढ़ धाम कहते हैं. इसका क़रीब 80 फ़ीसदी भाग राजस्थान और 20 फ़ीसदी हिस्सा गुजरात में आता है. 

मानगढ़ पहाड़ी की घटना इतनी भयावय थी की यहां 80 के दशक तक लोगों का आना जाना मना था. यहां पर एक धूणी है. जहां के पत्थरों पर मानगढ़ से जुड़ी बातें और गोविंद गुरु की प्रतिमा है. जानकारी के मुताबिक डूंगरपुर ज़िले के बांसिया (वेड़सा) गाँव के बंजारा परिवार में पैदा हुए गोविंद गुरु ने 1880 में लोगों को जागरूक करने के लिए एक आंदोलन चलाया था. वह लोगों को शराब-मांस खाने के लिए मना करते थे और पूजा पाठ के लिए प्रेरित करते हैं.

एक वक्त ऐसा कि इस क्षेत्र में चोरी की घटनाएं तक बंद हो गई. वहीं शराब का राजस्व अर्श से फर्श पर आ गया. उन दिनों स्थानीय लोग ब्रितानी हुकूमत और देसी रियासतों से जूझ रहे थे. वहीं ब्रितानी हुकूमत और देसी रियासतों को लगा कि गोविंद गुरु के नेतृत्व में आदिवासी अलग स्टेट मांग रहे हैं और फिर रची साजिश.

गोविंद गुरु ने जब लोगों को मानगढ़ पहाड़ी पर यज्ञ के लिए एकत्र किया तो वहां सजिशन कई सैनाओं के साथ मिलकर लोगों पर गोलियां चलवां दी गई. इस फ़ोर्स में सातवीं जाट रेजिमेंट, नौवीं राजपूत रेजिमेंट, 104 वेल्सरेज़ राइफल रेजिमेंट, महू, बड़ौदा, अहमदाबाद छावनियों से एक-एक कंपनी शामिल थी. 

गोलियां तब रुकीं जब एक अंग्रेज ने एक बच्चे को मरी हुई महिला के स्तन से लिपटे हुए देखा. कई इतिहासकारों के मुताबिक मरने वालों की सही संख्या का भी खुलासा नहीं किया गया था. कहा जाता है कई दशकों तक आदिवासियों को इस नरसंहार का डर दिखाकर एक जुट नहीं होने दिया. वहीं इसके आस-पास बसे लोग भी वहां से नंगे पैर नई जगह बसने चले गए. लेकिन अब यहां पक्की रोड, संग्राहलय आदि बन चुका है. लोगों को धीरे-धीरे ही सही लेकिन यहां के बार में चीजें ज्ञात हो रही हैं.

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