Rajasthan Election 2023: राजस्थान विधानसभा चुनाव परिणाम में हनुमान बेनीवाल की पार्टी आरएलपी ने केवल खींवसर विधानसभा से चुनाव जीता है. इसके अलावा कहीं पर भी कोई सीट नहीं जीती. साल 2018 के चुनाव में RLP ने खींवसर के साथ-साथ जोधपुर की भोपालगढ़ और नागौर की मेड़ता सीट पर भी जीत हासिल की थी.
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Hanuman Beniwal News: राजस्थान के राजनीतिक इतिहास के लिए 3 दिसंबर 2023 का दिन बेहद ही खास रहा. यहां पर एक बार फिर से रिवाज की परंपरा बरकरार रही और बीजेपी सरकार में आ गई है. रविवार को 199 विधानसभा सीटों के चुनाव परिणाम घोषित किए गए. इसके बाद बीजेपी दमदार जीत के साथ सरकार बनाने जा रही है. बता दें कि विधानसभा चुनाव 2023 में राजस्थान बीजेपी को 115 सीटें हासिल हुई हैं, वहीं कांग्रेस केवल 69 सीटों पर सिमट कर रह गई. इन सब के बीच राजस्थान में तीसरे मोर्चे की सरकार बनाने का दवा करने वाले हनुमान बेनीवाल की पार्टी RLP केवल एक सीट पर ही जीत हासिल कर पाई है.
बता दें कि राजस्थान विधानसभा चुनाव परिणाम में हनुमान बेनीवाल की पार्टी आरएलपी ने केवल खींवसर विधानसभा से चुनाव जीता है. इसके अलावा कहीं पर भी कोई सीट नहीं जीती. साल 2018 के चुनाव में RLP ने खींवसर के साथ-साथ जोधपुर की भोपालगढ़ और नागौर की मेड़ता सीट पर भी जीत हासिल की थी. साल 2023 विधानसभा चुनाव में हनुमान बेनीवाल ने जमकर एड़ी चोटी का जोर लगाया था और बड़ी संख्या में उम्मीदवारों को मैदान में उतरवाया था लेकिन जीत हासिल नहीं हो पाई. जीत के लिए हनुमान बेनीवाल ने यूपी के दलित नेता के तौर पर पहचाने जाने वाले चंद्रशेखर रावण की आजाद पार्टी से भी गठबंधन किया था लेकिन यह गठबंधन भी असफल साबित हुआ.
गठबंधन ने भी नहीं पार लगाई नैया
RLP पार्टी के सुप्रीमो और नागौर से सांसद हनुमान बेनीवाल ने इस बार विधानसभा चुनाव में खींवसर से चुनाव लड़ा था. इससे पहले भी वह इसी सीट से विधायक चुने गए लेकिन साल 2019 में उन्होंने सांसद का चुनाव जीता और नागौर के सांसद बन गए. इसके बाद हनुमान बेनीवाल ने भाई नारायण बेनीवाल को उपचुनाव में RLP पार्टी से उतारा. नारायण बेनीवाल ने भी जीत हासिल की लेकिन इस बार हनुमान बेनीवाल ने नारायण बेनीवाल की जगह खुद खींवसर से चुनाव लड़ने का फैसला किया और जीत भी दर्ज की. हनुमान बेनीवाल ने बीजेपी के रेवंत राम को 2059 वोटों से हराया है. हनुमान बेनीवाल को राजस्थान का दिग्गज नेता माना जाता है लेकिन बेनीवाल की जीत को राजनीति के दिग्गज बड़ी सफलता के तौर पर नहीं मान रहे हैं. बेनीवाल ने खुद की ही सीट जीतकर सम्मान बचाया है.
बता दें कि जिस समय विधानसभा चुनाव का प्रचार हो रहा था, उस समय हनुमान बेनीवाल ने दावा किया था कि बीजेपी और कांग्रेस दोनों से ही राजस्थान की जनता बुरी तरह से परेशान हो चुकी है. इतना ही नहीं उन्होंने कई बार अशोक गहलोत और वसुंधरा राजे के बीच गठबंधन होने का भी आरोप लगाया था. हमला बोलते हुए बेनीवाल ने कहा था कि राजस्थान में तीसरे मोर्चे का विकल्प बनकर उनकी पार्टी आरएलपी उभर रही है. आरएलपी राजस्थान में सुशासन लेकर आएगी यही वजह है कि बेनीवाल ने आजाद समाज पार्टी से भी संगठन किया था लेकिन चुनाव परिणाम बिल्कुल विपरीत निकले और बेनीवाल केवल खींवसर विधानसभा को ही बचा सके. इसके अलावा जितनी भी 72 सीटों पर बेनीवाल ने अपने प्रत्याशी उतारे थे वह बुरी तरह से हार गए.
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लोगों को जोड़ न पाए
मरुधरा के लाल हनुमान बेनीवाल किसान के साथ-साथ जवान की राजनीति करते हैं. उनकी छवि जाट समाज नेता के रूप में भी है. ऐसे में माना जा रहा है कि वह दूसरी जातियों के वोटर्स को भुना नहीं पाए. 36 कौमों को साथ लेकर चलने की बात पर उन्होंने कई जातीय समीकरण को ध्यान में रखकर टिकट बांटे थे लेकिन उन्हें लोगों का साथ नहीं मिला.
मजबूत संगठन की कमी
आरएलपी की हार के पीछे सबसे बड़ी वजह मजबूत संगठन ना मिलने को बताया जा रहा है. दरअसल पायलट और गहलोत के बीच में सियासी विवाद के दौरान बेनीवाल ने सचिन पायलट को कांग्रेस छोड़कर आरएलपी में शामिल होने या फिर नई पार्टी बनाने के साथ-साथ गठबंधन का ऑफर दिया था लेकिन पायलट ने स्वीकार नहीं किया.
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अनुभवी नेताओं की कमी
राजस्थान विधानसभा चुनाव में बेनीवाल की पार्टी आरएलपी की हर की वजह उनके पास अनुभवी और दिग्गज नेताओं की कमी भी बताई जा रही है. दरअसल उनके पास ऐसा कोई भी बड़ा और अनुभवी नेता नहीं था, जो की आरएलपी के जनाधार को धरातल पर मजबूत कर सके.
बड़े नेताओं को नहीं जोड़ सके
मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो हनुमान बेनीवाल इस जुगाड़ में लगे हुए थे कि भाजपा के साथ-साथ कांग्रेस के कुछ बड़े नेता उनकी पार्टी से जुड़ जाएं, जिससे उनकी पार्टी मजबूत हो लेकिन ऐसा हो ना सका. उन्होंने कई बड़े नेताओं से संपर्क साधने की कोशिश तो की लेकिन सफल नहीं हुए.
जनता को नहीं स्वीकार हुआ तीसरा मोर्चा
नागौर के सांसद हनुमान बेनीवाल अपनी पार्टी आरएलपी को तीसरे मार्च के रूप में स्थापित करने की कोशिश में लगे हुए हैं लेकिन राजस्थान की जनता इसे स्वीकार नहीं कर पा रही है. दरअसल जनता आज भी बीजेपी कांग्रेस पर ही विश्वास करती है और इसी वजह से 30 साल की परिपाटी को बरकरार रखते हुए भाजपा को समर्थन किया.