MP News: अगले जन्म मोहे बिटिया ही कीजो: पिता की अर्थी को दिया कांधा, 9 बेटियों ने मुखाग्नि देकर पूरा किया आखिरी सफर
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MP News: अगले जन्म मोहे बिटिया ही कीजो: पिता की अर्थी को दिया कांधा, 9 बेटियों ने मुखाग्नि देकर पूरा किया आखिरी सफर

Sagar News: ऐसा नहीं है कि इसके पहले किसी लड़की या बेटी ने अपने पिता का अंतिम संस्कार न किया हो बल्कि इसके पहले भी बेटियां मुखाग्नि दे चुकी है लेकिन इस बार एक नहीं बल्कि 9 बेटियों ने एक साथ पिता का अंतिम संस्कार किया है. 

MP News: अगले जन्म मोहे बिटिया ही कीजो: पिता की अर्थी को दिया कांधा, 9 बेटियों ने मुखाग्नि देकर पूरा किया आखिरी सफर

MP News: सागर जिले में रिटायर्ड पुलिस अधिकारी के निधन पर 9 बेटियों ने बेटे का कर्ज निभाते हुए मुखाग्नि दी. ये दृ्श्य जिसने भी देखा, वो अपनी आंखों से पानी रोक न सका. इन बेटियों ने पिता को न सिर्फ मुखाग्नि दी, बल्कि बेटों की तरह ही अर्थी को कंधा भी दिया. अंतिम सफर पर अपने पिता के साथ मुक्ति के लिए हिंदू रीति रिवाज से अंतिम संस्कार कराया.

दरअसल सागर के मकरोनिया इलाके के 17 नम्बर वार्ड में रहने वाले पुलिस के रिटायर्ड एएसआई हरिशचंद्र अहिरवाल की 9 बेटियों ने एक साथ अपने पिता का अंतिम संस्कार किया है. ब्रेन हेमरेज की वजह से हरिशचंद्र का निधन हो गया.  हरिश्चंद का कोई बेटा नहीं है, बल्कि उनकी 9 बेटियां है.

9 बेटियों ने किया अंतिम संस्कार 
हिन्दू रीतिरिवाज के मुताबिक अंतिम संस्कार बेटा किया करता है और खुद का कोई बेटा न हो तो घर परिवार खानदान का कोई पुरुष इस प्रक्रिया को पूरा करता है. यहां भी सारे लोग यही कयास लगा रहे थे लेकिन हरिश्चंद की बेटियों ने इस मिथक को तोड़ा, सामाजिक रीतिरिवाज को दरकिनार किया और सभी 9 बेटियों ने अपने कंधों पर पिता की अर्थी उठाई श्मशान घाट तक लेकर गई और बेटे की तरह सभी बहनों ने मिलकर उनका अंतिम संस्कार किया.

ऐसा नहीं है कि इसके पहले किसी लड़की या बेटी ने अपने पिता का अंतिम संस्कार न किया हो बल्कि इसके पहले भी बेटियां मुखाग्नि दे चुकी है लेकिन इस बार एक नहीं बल्कि 9 बेटियों ने एक साथ पिता का अंतिम संस्कार किया है. जो चर्चाओं में है. लोगो ने इस तरह की प्रक्रिया को पहली बार देखा और श्मशान घाट पर मौजूद हर एक शख्स की आंखें नम हो गई.

बेटियों ने पेश किया बड़ा उदाहरण
इन बेटियों की माने तो उनके पिता ने हमेशा सभी बेटियों को बेटे की तरह ही रखा और कभी कोई कमी नहीं रहने दी, उनके घर खानदान में भतीजे और हरिशचंद के नाती भी है, जो अंतिम संस्कार कर सकते थे लेकिन उन बेटियों ने अपने पिता के जीवन को याद करते हुए इस क्रिया को किया है. अमूमन पिछड़े इलाकों में शुमार बुन्देलखण्ड में आज भी इस तरह की प्रक्रिया के बारे में कल्पना नहीं की जा सकती लेकिन 9 बेटियों ने पिछड़े इलाके में भी ये सब करके बड़ा उदाहरण पेश किया है.

रिपोर्ट - महेंद्र दुबे

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