छत्तीसगढ़ के नारायणपुर जिले में एक प्राथमिक शाला की भवन जर्जर हो गई है, जिसमें बच्चे अपनी जान की बाजी लगाकर पढ़ने को मजबूर हैं. बारिश के दिनों में कई बार अंदर सांप बिच्छू भी आ जाते हैं.
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नारायणपुरः सरकार शिक्षा को लेकर चाहे कितने भी बड़े दांवे क्यों न कर लें, लेकिन नारायपुर जिले के नक्सल प्रभावित क्षेत्र नरिया कोडली प्राथमिक शाला का जर्जर भवन इन सारी दांवो पर पानी फेरता नजर आ रहा है. यहां प्राथमिक शाला का संचालन ऐसे जर्जर भवन में किया जाता है, जिसकी दीवार छत से लेकर नीचे तक क्रैक है. इस जर्जर भवन का इलाका जंगली होने की वजह से यहां सांप बिच्छू का भी हमेशा भय बना रहता है. कहने को तो स्कूल के प्रांगण में चार शौचालय हैं, लेकिन उपयोग के लायक एक भी नहीं है, जिसके चलते बच्चे खुले में शौच को मजबूर हैं.
बता दें कि प्राथमिक शाला का भवन जर्जर होने के साथ ही एक ही कमरे में पहली कक्षा से लेकर पांचवी तक की पढ़ाई होती है. इस प्राथमिक शाला में पढ़ाई कैसे होती होगी, इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है. वहीं जर्जर भवन को लेकर विकासखंड शिक्षा अधिकारी कृष्णा गोटा ने स्कूल का निरीक्षण कर स्थिति के बारे में उच्च अधिकारियों को अवगत कराने की बात कही.
जर्जर भवन में पढ़ाने को मजबूर शिक्षक
दरअसल नारायणपुर जिला मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूर घोर नक्सल प्रभावित नरिया कोडोली प्राथमिक शाला का संचालन जर्जर भवन में सालो से किया जा रहा है. भवन की जर्जर हालत के बारे में शिक्षक से लेकर गांव वालो ने कई बार की, लेकिन भवन की मरम्मत तक को लेकर विभाग ने कोई कदम नहीं उठाया है. जिसके चलते बच्चों को जर्जर भवन में शिक्षक पढ़ाने को मजबूर है. शिक्षक का कहना है कि जर्जर भवन में बच्चों को पढ़ाने के समय दुर्घटना का भय सदैव बना रहता है.
बारिश के दिनों में बना रहता है खतरा
शिक्षक देवेंद्र का कहना है कि बारिश के दिनों में समस्या ज्यादा बनी रहती है. भवन की दीवाल बीच से क्रैक है और उस जगह से सांप भी कई बार अंदर आ जाते हैं. कभी कोई अप्रिय घटना घटित ना हो इसका भय बारिश में ज्यादा बना रहता है. वहीं शौचालय भी उपयोग विहीन होने के कारण बच्चे खुले में शौच करने को मजबूर है. वही इस पूरे मामले पर विकासखंड शिक्षा अधिकारी कृष्णा गोटा का कहना है कि वे स्कूल का दौरा कर वहां की स्थिति के बारे में उच्च अधिकारियों को अवगत करा दिया है. उन्होंने कहा कि जल्द ही व्यवस्था दूरस्थ हो जाएगी.
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