Hybrid Terrorism in Jammu-Kashmir: जम्मू-कश्मीर में हाइब्रिड आतंकवाद का खतरा, टारगेट किलिंग में एक्सपर्ट, सुरक्षा एजेंसियों की उड़ी नींद
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Hybrid Terrorism in Jammu-Kashmir: जम्मू-कश्मीर में हाइब्रिड आतंकवाद का खतरा, टारगेट किलिंग में एक्सपर्ट, सुरक्षा एजेंसियों की उड़ी नींद

Terrorism in J&K:  जम्मू और कश्मीर में धारा 370 हटाए जाने के बाद करीब आधा दर्जन नए प्रॉक्सी आतंकी संगठन बने हैं जो हाइब्रिड आतंकवाद के सहारे टारगेट किलिंग और आतंकी हमला करने में जुटे हैं. 

Hybrid Terrorism in Jammu-Kashmir: जम्मू-कश्मीर में हाइब्रिड आतंकवाद का खतरा, टारगेट किलिंग में एक्सपर्ट, सुरक्षा एजेंसियों की उड़ी नींद

Jammu-Kashmir Terrorism: 11 अगस्त को हुए जम्मू आत्मघाती हमले की जांच कर रही खुफिया और सुरक्षा एजेंसियों को आतंकी संगठनों की खौफनाक साजिश का पता चला है. जम्मू और कश्मीर में धारा 370 हटाए जाने के बाद कुल 6 नए प्रॉक्सी आतंकी संगठन बने हैं जो आतंक फैलाने की साजिश में लगे हैं. जम्मू काश्मीर में प्रॉक्सी संगठन के जरिए आतंक फैलाने की असली साजिश कुछ और है.

खुफिया सूत्रों से जी न्यूज को मिली जानकारी के मुताबिक जम्मू काश्मीर में अभी भी पाक परस्त वही आतंकी संगठन काम कर रहे हैं जो पहले से ही सक्रिय हैं. उनके काम करने के तरीके में सिर्फ इतना बदलाव आया है कि वारदात के लिए लोग और संगठन नया हो रहा है. प्रॉक्सी और नए लोगों की बदौलत कश्मीर में फिर से आतंकवाद को बढ़ावा देने की साजिश की पूरी जानकारी जी न्यूज के पास है. 

आईएसआई चीफ की पिछले साल सितंबर में मुजफ्फराबाद में हुई मीटिंग के बाद कश्मीर में आतंक की नई रणनीति अपनाई गई है. इस नई रणनीति में एक्टिव आतंकी और उनकी संगठन को इस्तेमाल करने की बजाय नए लोगों और नए नाम से संगठन का इस्तेमाल करने की नीति अपनाई गई है. ऐसे लोग जो पुलिस की रिकार्ड में नहीं हैं. आतंक की इस नई रणनीति को पाकिस्तान की तरफ से आपरेशन रेड वेब भी कहा जा रहा है. इसमें सबसे प्रमुख काम टारगेट किलिंग है.

60 लोगों की टारगेट किलिंग में जान जा चुकी 

जम्मू कश्मीर में पिछले डेढ़ साल के दौरान करीब 60 लोगों की टारगेट किलिंग में जान जा चुकी है. इस साल ही दो दर्जन लोग टारगेट किलिंग का शिकार हो चुके हैं. लगभग हर वारदात के बाद एक नए गुट द्वारा जिम्मेदारी ली जाती है. खुफिया सूत्रों और जम्मू कश्मीर पुलिस का मानना है कि जानबुझकर ऐसे गुट का नाम कुछ इस तरह रखा जाता है ताकि वह स्थानीय लगे और कश्मीर में पहले से सक्रिय जैश, लश्कर और हिजबुल से उसका कोई नाता ना लगे. खुफिया सूत्रों के मुताबिक ऐसा एक बड़ी साजिश के तहत किया जा रहा है. 

इस साजिश का ताजा उदाहरण 11 अगस्त को जम्मू के राजौरी में हुआ आत्मघाती हमला है. इस हमले के लिए पीएएफएफ ने जम्मू में आत्मघाती हमले की जानकारी ली है. पीएएफएफ यानि पीपुल्स एंटी फासिस्ट फ्रंट ने जुलाई में सीआरपीएफ पर हमले की जिम्मेवारी भी ली थी. खुफिया सूत्रों के मुताबिक यह प्रॉक्सी संगठन अलकायदा से संबंध होने का दावा करने वाले संगठन अंसार गजावत उल हिंद के कमांडर जाकिर मूसा से प्रेरित है और इसके सदस्य बिल्कुल नए हैं जिन्हें सीमा पार से ही आदेश मिलता है.

प्रॉक्सी संगठनों के जरिए आतंक का खतरा कितना बड़ा है इसका अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि जम्मू-कश्मीर में पिछले कुछ सालों से लोकल टेररिस्ट्स की संख्या बढ़ रही है. कश्मीर में पिछले 4 महीने में 460 से ज्यादा आतंकी मुठभेड़ में मारे गए हैं. जम्मू कश्मीर के पूर्व डीजीपी एस पी वैद्य ने जी न्यूज को बताया कि उनको लगने लगा कि कश्मीर उनके हाथ से निकल रहा है खासकर 370 के बाद. पिछले पांच सालों में कई टेररिस्ट मारे गए उनके हथियार चले गए, इसलिए उन्होंने रणनीति बदली. 
 
प्रॉक्सी आतंकी संगठन टीआरएफ यानि द रेसिस्टेंस फ्रंट ने अपने अस्तित्व में आने का एलान सोशल मीडिया ऐप टेलीग्राम के ज़रिए तब किया था, जब उसने 12 अक्टूबर 2019 को श्रीनगर के लाल चौक पर ग्रेनेड हमले की ज़िम्मेदारी ली थी. टीआरएफ  लश्कर की ही शाखा है. इसी तरह  कश्मीर टाइगर्स ने मई में हुई राहुल बट् की ह्त्या की जिम्मेदारी ली थी. इसके पहले दिसंबर में हुए हमले की जिम्मेदारी भी यह संगठन ले चुका था. जैश के आतंकी रहे मुफ्ती अल्ताफ उर्फ अबू जार निवासी अनंतनाग की तरफ से कश्मीर टाइगर्स के गठन की बात कही गई थी. अल्ताफ एक स्थानीय आतंकी है, जो 2020 में आतंकवाद में शामिल हुआ था. इससे पहले वह आतंकियों के लिए बतौर मददगार काम करता था. 2020 में ही उसने जैश संगठन जॉइन किया था. उसका स्थानीय आतंकियों के साथ काफी नेटवर्क है. ऐसे में माना जा रहा है कि उसके साथ कई आतंकी नए संगठन में चले गए हैं. इसी तरह 16 अप्रैल 2022 को उत्तरी कश्मीर में एक सरपंच की हत्या करने की जिम्मेदारी कश्मीर फ्रीडम फाइटर्स ने ली थी. यह संगठन पुलिस के लिए नया है मगर कहा जा रहा है कि इसे भी सीमा पार से ही मदद मिल रही है. 

जम्मू कश्मीर के पूर्व डीजीपी एस एस पी वैद्य ने जी न्यूज से कहा की इनमें भिन्न-भिन्न नाम लिए जाते हैं, मगर ये सब दिखावे के लिए है. वही लश्कर जैश दूसरे नाम से कर रहे हैं. उनके मुताबिक प्राक्सी संगठनों को खड़ा करने और उनकी फंडिग के लिए भी बड़े स्तर पर काम किया जाता है. पहले इंटरनेशनल ट्रेड होता था. उसे हवाला के जरिए पैसा आता था, अब ड्रग के जरिए भी फंडिंग की बात सामने आई है. हाल ही में जम्मू पुलिस ने हवाला टेरर नेटवर्क पकड़ा जिसमें दक्षिण अफ्रिका से मुंबई दिल्ली पुंछ होते हुए पैसा कश्मीर पहुंचता था. 

कश्मीर में धारा 370 हटाए जाने के बाद 3 साल में जितने भी आतंकी हमले हुए हैं उसमें से ज्यादातर में नए आतंकी संगठनों का हाथ होने की जानकारी सामने आई है.

भारत सरकार  के आगे घुटने टेकने की पोजीशन में आ चुके पाक परस्त आतंकी संगठन प्रॉक्सी और हाइब्रिड टेरर का सहारा लेने पर मजबूर हैं क्योंकि कश्मीर में सक्रिय मूल चार आतंकी संगठन जेकेएलएफ, लश्कर तोइबा, जैश ए मोहम्मद, हिजबुल मुजाहिदीन के शीर्ष कमांडर पिछले 3 सालों में मारे जा चुके हैं.

विश्व स्तर पर इन संगठनों की किरकिरी हो चुकी है. भारत सरकार की टेरर फंडिंग आदि की कार्रवाईयों ने जेकेएलएफ जैसे संगठन को तो खत्म ही कर दिया है. सुरक्षा के उपायों ने बड़े आतंकी संगठनों के कमांडरों की घुसपैठ पर रोक लगा दी है. 

मूल आतंकी संगठनों के खाते भी सीज किए गए. एक समय था जब इन चारों संगठनों में आपस में बनती नहीं थी, यही नहीं चारों में कंपटीशन भी था, लेकिन अब इनका आपसी समझौता हो चुका है. एक दूसरे के साधन इस्तेमाल किए जा रहे हैं ऐसे नाम रखने लगे हैं, जिससे इनके इस्लामी आतंकवाद से जुड़े जाने का खतरा ना हो. वारदात के लिए छोटे छोटे स्लीपर समूहों की मदद ली जा रही है. इन्हीं स्लीपर समूहों को सरकारी रिकार्ड में हाइब्रिड आतंक कहा जा रहा है. इन स्लीपर सेलों में जुड़े युवकों को तलाशना टेढ़ी खीर है. ये छोटे छोटे गुट हैं इसीलिए व्यक्तिगत हत्या का लक्ष्य दिया जा रहा है.

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