CAA Rule: पड़ोसी देशों से आए मुस्लिमों को सीएए में क्यों नहीं किया गया शामिल? जानें क्या है इसके पीछे की वजह
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CAA Rule: पड़ोसी देशों से आए मुस्लिमों को सीएए में क्यों नहीं किया गया शामिल? जानें क्या है इसके पीछे की वजह

CAA Rules: सरकार ने जवाब देते हुए कहा है कि CAA धर्म के नाम पर होने वाले भेदभाव के पीड़ितों को नागरिकता देने वाला कानून है और इसमें उन देशों के गैर मुस्लिमों को नागरिकता देने का प्रावधान है, जो देश धर्म के आधार पर बने हैं.

CAA Rule: पड़ोसी देशों से आए मुस्लिमों को सीएए में क्यों नहीं किया गया शामिल? जानें क्या है इसके पीछे की वजह

Muslim in Citizenship Amendment Act: नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) को संसद में पारित होने के 4 साल बाद मोदी सरकार ने अधिसूचित कर दिया है. सीएए लागू होने से पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में धार्मिक आधार पर प्रताड़ित अल्पसंख्यकों को अब भारत में नागरिकता मिल सकेगी. हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदायों के शरणार्थी नागरिकता के लिए अप्लाई कर सकते हैं. सीएए के नए नियम में मुसलमानों को शामिल नहीं किया गया है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि इसकी वजह क्या है और क्यों सरकार ने सिर्फ 6 समुदायों को ही इसमें जगह दी है?

मुस्लिमों को CAA में क्यों नहीं किया गया शामिल?

विपक्षी दल इस कानून में मुस्लिमों को शामिल नहीं किए जाने का विरोध कर रहे हैं और इसे मुस्लिम विरोधी बता रहे हैं. इसके साथ ही सवाल उठा रहे हैं कि इसमें मुस्लिमों को क्यों नहीं शामिल किया गया. दरअसल, सीएए के नए नियम में उन शरणार्थियों को जगह दी गई है, जो पड़ोसी देशों में धार्मिक उत्पीड़न के कारण भारत आ गए थे और इसके बाद से अनिश्चितता की स्थिति में हैं. सरकार ने तर्क देते हुए कहा है कि CAA धर्म के नाम पर होने वाले भेदभाव के पीड़ितों को नागरिकता देने वाला कानून है. सरकार का कहना है कि 70 वर्षों की स्थिति को आधार बनाकर कानून बनाया गया है इसमें उन देशों के गैर मुस्लिमों को नागरिकता देने का प्रावधान है, जो देश धर्म के आधार पर बने हैं. बता दें कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान मुस्लिम देश हैं और इस वजह से गैर-मुस्लिमों को धर्म के आधार पर प्रताड़ित किया जाता है. इस वजह से वो भारत आ गए थे, जिन्हें सीएए के नए नियम के तहत नागरिकता दी जाएगी.

31 दिसंबर 2014 से पहले आए लोगों को मिलेगी नागरिकता

संसद में दिसंबर 2019 में पास होने के करीब चार साल बाद सरकार ने CAA कानून का नोटिफिकेशन जारी कर दिया है. अब इस कानून के तहत पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से प्रताड़ित होकर भारत आए गैर मुस्लिमों को नागरिकता दी जाएगी. जिन गैर मुस्लिमों को नागरिकता दी जाएगी, उनमें हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और ईसाई शामिल हैं. भारतीय नागरिकता उन्हीं विदेशी गैर मुस्लिमों को दी जाएगी, जो 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत आए हैं.

कानूनन भारत की नागरिकता के लिए कम से कम 11 साल तक देश में रहना जरूरी है. लेकिन, नागरिकता संशोधन कानून में इन तीन देशों के गैर-मुस्लिमों को 11 साल की बजाय 6 साल रहने पर ही नागरिकता दे दी जाएगी. बाकी दूसरे देशों के लोगों को 11 साल का वक्त भारत में गुजारना होगा, भले ही फिर वो किसी भी धर्म के हों. गैर मुस्लिम विदेशी नागरिकों को नागरिकता देने की पूरी प्रक्रिया Online होगी, इसके लिए Online Portal Launch किया गया है। इस Portal पर नागरिकता पाने वाले शख्स को जरूरी जानकारी देनी होगी.

कानून बनने के बाद लागू करने में क्यों लग गए 4 साल

आप सोच रहे होंगे कि जब Citizenship Amendment Act दिसंबर 2019 में पास हो गया था, तो इसे लागू करने में चार वर्ष का समय क्यों लग गया. जबकि, संसदीय प्रक्रिया के नियमों के मुताबिक किसी भी कानून के नियम राष्ट्रपति की सहमति के 6 महीने के अंदर बनने चाहिए और उन्हें लागू किया जाना चाहिए. लेकिन ऐसा नहीं होने पर इसके लिए संसद से समय मांगना पड़ता है और सीएए के मामले में गृह मंत्रालय ने 9 बार एक्सटेंशन मांगा था. CAA के लागू होने में देरी की मुख्य तौर पर तीन वजह थी. CAA को लागू करने में सबसे बड़ी अड़चन इस कानून के खिलाफ विरोध प्रदर्शन था. देश के मुस्लिमों में CAA को लेकर भ्रम की स्थिति पैदा हुई, जिसके बाद दिल्ली के शाहीन बाग में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया. हजारों की संख्या में प्रदर्शनकारी सड़कों पर उतर आए। 15 दिसंबर 2019 से 24 मार्च 2020 तक प्रदर्शनकारी सड़कों पर डंटे रहे. हालांकि, सरकार की कोशिशों के बाद प्रदर्शन खत्म हुआ, तब तक देश में कोरोना के केस बढ़ने लगे थे. इसकी वह से इसे टालना पड़ा.तीसरी वजह कोरोना वायरस से बचाव के लिए वैक्सीनेशन है.

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