Dev Diwali Story: पौराणिक कथाओं के अनुसार दैविक काल में एक बार त्रिपुरासुर के आतंक से तीनों लोकों में त्राहिमाम मच गया. त्रिपुरासुर के पिता तारकासुर का वध देवताओं के सेनापति कार्तिकेय ने किया था.
Trending Photos
पटनाः Dev Diwali Story: कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि को देव दिवाली के नाम से जाना जाता है. इस बार पूर्णिमा तिथि पर चंद्रग्रहण है इसलिए देव दिवाली एक दिन पहले यानी कार्तिक चतुर्दशी को मनाई जा रही है. देव दिवाली मनाने के पीछे की वजह देवताओं का अभय होकर प्रसन्न होना है. कारण, यह है कि इस दिन महादेव शिव ने त्रिपुर, त्रिपुरासुर दोनों का नाश किया था और त्रिपुरारी कहलाए थे. जानिए क्या है देव दिवाली की कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार दैविक काल में एक बार त्रिपुरासुर के आतंक से तीनों लोकों में त्राहिमाम मच गया. त्रिपुरासुर के पिता तारकासुर का वध देवताओं के सेनापति कार्तिकेय ने किया था. उसका बदला लेने हेतु तारकासुर के तीनों पुत्रों ने भगवान ब्रह्मा जी की कठिन तपस्या कर उनसे अमर होने का वर मांगा. हालांकि, भगवान ब्रह्मा ने तारकासुर के तीनों पुत्रों को अमरता का वरदान न देकर अन्य वर दिया. त्रिपुरासुर ने वरदान मांगा कि हमारे लिए निर्मित तीन पुरियां जब अभिजित नक्षत्र में एक पंक्ति में हों और कोई क्रोधजित अत्यंत शांत होकर असंभव रथ पर सवार असंभव बाण से मारना चाहे, तब ही हमारी मृत्यु हो. ब्रह्मा जी ने तथास्तु कह दिया. इसके बाद त्रिपुरासुर बहुत बलशाली हो गए और उनका आतंक बढ़ गया.
इसके बाद देवताओं की गुहार पर महादेव ने त्रिपुरासुर का संहार करने का संकल्प लिया. महादेव के साथ अन्य देवताओं ने भी इसके लिए तैयारी की. भगवान शिव ने पृथ्वी को ही रथ बनाया, सूर्य-चंद्रमा पहिए बन गए, सृष्टा सारथी बने, भगवान विष्णु बाण, वासुकी धनुष की डोर और मेरूपर्वत धनुष बने. फिर भगवान शिव उस असंभव रथ पर सवार होकर असंभव धनुष पर बाण चढ़ा लिया और अभिजित नक्षत्र में तीनों पुरियों के एक पंक्ति में आते ही त्रिपुरासुर पर आक्रमण कर दिया. प्रहार होते ही तीनों पुरियां जलकर भस्म हो गईं और त्रिपुरासुर का अंत हो गया. तभी से शिव को त्रिपुरारी भी कहा जाता है. उस दिन देवताओं ने गंगा नदी के किनारे दीप जलाकर देव दिवाली मनाई. उस समय से देव दिवाली मनाई जाती है.
देव दीपावली पर दीप दान का है खास महत्व
देव दीपावली के दिन पवित्र नदी में स्नान करने के बाद दीपदान करना शुभ होता है. मान्यता अनुसार, यह दीपदान नदी के किनारे किया जाता है. पौराणिक मान्यता और परंपरा के वजह से बनारस में गंगा नदी के किनारे व्यापक स्तर पर दीपदान किया जाता है.
यह भी पढ़िएः Dev Diwali 2022: आज है देवताओं की दिवाली, जानिए शुभ मुहूर्त और पूजा विधि