पटनाः Khelo India Youth Games 2022: किनारे पर बैठकर समुद्र की गहराई का पता नहीं लगाया जा सकता. उसके लिए गहराई में उतरना पड़ता है. जैसे कतरनें सिलते हुए इस कम उम्र लड़के को देखकर उसके हौसले की गहराई का पता नहीं लगता. आइये मिलते हैं चुनौतियों को मात दे रहे साइकिलिस्ट अरशद फरीदी से और सीखते हैं जीतने का हुनर.
18 साल के अरशद की कहानी जिजीविषा से भरी है. अरशद भले ही दिल्ली में रहते हों, लेकिन बिहार की मिट्टी से उसका नाता बहुत पुराना है. उनकी मां याश्मी फरीदी बिहार के बोधगया जिले से हैं. यहीं अरशद खेल कूदकर बड़े हुए. उन्हें देखकर सहसा विश्वास नहीं होता कि इतनी छोटी सी उम्र में वह इतने दर्द, तड़प, उलाहना सहकर आगे बढ़े होंगे. लेकिन लंबे संघर्ष के बाद अरशद ने गरीबी में रहकर आज हर उस कार्य को करने में महारत हासिल कर ली है जो एक ठीक-ठाक परिवार के बच्चे भी नहीं कर पाते हैं. बता दें अरशद ने हाल ही में हरियाणा के पंचकुला में आयोजित खेलो इंडिया यूथ गेम 2022 में कांस्य पदक जीतकर दिल्ली और बिहार का नाम रोशन किया.
बिहार में ननीहाल और यूपी में दादा-दादी का घर इस नौनीहाल ने दोनों प्रदेशों की प्रतिष्ठा में चार चांद लगा दिए. आज उसकी इस उपलब्धि पर बिहार और यूपी दोनों ही प्रदेश इतरा रहा है. हालांकि किसी ने इससे पहले अरशद की इस फटेहाल स्थिति को नहीं देखा, सुना और जाना होगा. क्योंकि अरशद बचपन ने दिल्ली को अपना कर्मक्षेत्र बना लिया. कुछ भी हो लेकिन प्रतिभा कहां किसी के रोकने से रूकती है. बिहार की माटी की सौंधी खुशबू और ननीहाल का प्यार आज भी अरशद को अपनी तरफ खींचता है.
खेलो इंडिया यूथ गेम 2022 में अरशद ने जीता कांस्य पदक
हरियाणा के पंचकुला में आयोजित खेलो इंडिया यूथ गेम 2022 के साइकिलिंग में अरशद ने तीसरा स्थान प्राप्त कर कांस्य पदक अपने नाम किया। अरशद ने बताया कि खेलो इंडिया यूथ गेम में देश भर के साइकिलिस्टों ने हिस्सा लिया. उनका निशाना स्वर्ण पदक पर था लेकिन किसी कारण वह पहला स्थान प्राप्त नहीं कर पाए,लेकिन वह कांस्य पदक की जीत पर खुश है.
पिता के साथ मिलकर अरशद करते है कपड़ों की सिलाई
अरशद परिवार में पिता हदीस फरीदी, माता याश्मी फरीदी, भाई आफताब फरीदी व बहन रोजी फरीदी के साथ कांति नगर स्थित एक किराए के मकान में रहते हैं. पिता दर्जी का काम करते है. इस कार्य में अरशद भी सिलाई कर पिता का हाथ बांटा रहे हैं. दिन भर में जो कमाई अरशद कमाते है उसमें से आधा रुपया साइकिलिंग के इक्विपमेंट और स्टेडियम की फीस भरते है.
जीवन में कभी नहीं तोड़ा अनुशासन
अरशद के कोच प्रमोद शर्मा बताते है कि चार साल से वह अरशद को प्रशिक्षित कर रहे हैं. अब तक अपने जीवन में कभी भी अनुशासन नहीं तोड़ा. उसका अनुशासित व्यवहार और मधुर भाषा व्यक्तित्व देखकर ही पता चलता है कि उसमें बड़ा खिलाड़ी बनने की क्षमता है. वह महज 18 वर्ष का है और अपने मुकाम तक पहुंचने के लिए जी जान से मेहनत करता है.
बड़े भाई के मार्गदर्शन से मिली कामयाबी
अरशद बताते है परिवार में बड़े भैया आफताब फरीदी ने जीवन में आगे बढ़ने के लिए काफी सहयोग किया है, रोजाना सुबह जल्दी उठाकर दौड़ के लिए ले जाया करते थे. सड़कों पर दौड़ लगाने के बाद साइकिलिंग का प्रशिक्षण दिया करते थे.
हमारा सुझाव
इस होनहार को हरसंभव सहयोग उपलब्ध कराना अब सरकार और खेल संघ का दायित्व होना चाहिए. विशेषकर खेल मंत्रालय का. अरशद को अगर आवश्यक सुविधाएं मिले तो वह देश को इस खेल में बड़ी सफलता दिलाने की और बढ़ सकता है.