एपीजे अब्दुल कलाम: जो खुद पायलट नहीं बन पाए लेकिन भारत को मिसाइल पावर बना दिया
Advertisement
trendingNow11255890

एपीजे अब्दुल कलाम: जो खुद पायलट नहीं बन पाए लेकिन भारत को मिसाइल पावर बना दिया

A. P. J. Abdul Kalam: 1960 में मद्रास इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से ग्रेजुएशन करने के बाद कलाम ने बतौर साइंटिस्ट डीआरडीओ का एयरोनॉटिकल डेवेलपमेंट एस्टेब्लिशमेंट जॉइन किया. उन्होंने अपने करियर की शुरुआत होवरक्राफ्ट बनाकर की.

mahamahim

Dr. APJ Abdul kalam: 10 जून 2022 की सुबह थी. एना यूनिवर्सिटी के वीसी प्रोफेसर ए कलानिधि के दफ्तर के फोन की घंटी सुबह से बज रही थी. कॉरिडोर में कलानिधि की निगाहें किसी को ढूंढ रही थीं और उनके चाल भी तेज होती जा रही थी. अचानक उनके सामने वह शख्स आया, जो क्लास खत्म करके लौट रहा था. कलानिधि ने कहा कि सुबह से मेरे ऑफिस की घंटी बज रही है और कोई आपसे बात करना चाहता है. जब दोनों ऑफिस में पहुंचे, तब भी घंटी बदस्तूर बज रही थी. जैसे ही फोन उठाया तो सामने से आवाज आई- 'प्रधानमंत्री आपसे बात करना चाहते हैं.'

ये फोन किसी न तो किसी आम शख्स का था ना ही किसी आम शख्स के लिए था. कुछ देर बाद दोबारा घंटी बजी. तत्कालीन पीएम अटल बिहारी वाजपेयी ने उस शख्स से कहा, 'मैं पार्टी मीटिंग से लौट रहा हूं और हम सबने मिलकर यह तय किया है कि राष्ट्रपति के रूप में देश को आपकी जरूरत है. मुझे आज रात तक ऐलान करना है. आपकी हां या ना का इंतजार है.'

अटल बिहारी वाजपेयी का ये फोन उस शख्स को आया था, जिसने पूरी दुनिया में भारत का नाम रोशन किया और अंतरिक्ष तक छाप छोड़ी. न सिर्फ भारत बल्कि पूरा विश्व उन्हें 'मिसाइल मैन' के नाम से जानता है. जी न्यूज की खास सीरीज महामहिम में आज किस्से जानेंगे महान वैज्ञानिक और देश के 11वें राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम के.

चार भाइयों में सबसे छोटे थे कलाम

15 अक्टूबर 1931 को हिंदुओं के तीर्थस्थल रामेश्वरम के पंबन द्वीप पर एक मुस्लिम परिवार में अवुल पकिर जैनुल्लाब्दीन अब्दुल कलाम का जन्म हुआ. वह अपने चार भाइयों और एक बहन में सबसे छोटे थे.

उनके पिता जैनुलाब्दीन मरकायारी नाव मालिक और स्थानीय मस्जिद के इमाम थे. उनकी मां आशियम्मा एक हाउसवाइफ थीं. कलाम अपनी मां से बहुत प्रभावित थे. कलाम को अपने पिता से ईमानदारी-अनुशासन और दयालुता और अच्छाई जैसे गुण मां से विरासत में मिले थे. उनके पिता ने उन्हें हर धर्म की इज्जत करना सिखाया था. इस बात का जिक्र खुद कलाम ने किया था. उन्होंने एक बार कहा था, 'हर शाम मेरे पिता, रामनाथस्वामी हिंदू मंदिर के मुख्य पुजारी पाक्षी लक्ष्मण शास्त्री और चर्च के पादरी साथ में चाय पीते थे और द्वीप से जुड़े मुद्दों पर बातचीत करते थे. बहुत कम उम्र में ही कलाम को यह समझ आ गया था कि भारतीय के बहुआयामी मुद्दों का जवाब बातचीत और सहयोग में छिपा हुआ है. कलाम मानते थे कि दूसरे धर्मों के लिए सम्मान इस्लाम के प्रमुख आधारशिलाओं में से एक है. वह अकसर कहते थे कि 'धर्म दोस्त बनाने का जरिया होता है, छोटे लोग ही धर्म को लड़ाई का जरिया बनाते हैं.'

बहुत गरीब था परिवार

कलाम के पिता नाव के मालिक थे, जो हिंदू श्रद्धालुओं को रामेश्वरम से धनुषकोडी के बीच  ले जाती थी. कलाम का परिवार भले ही काफी गरीब था. लेकिन उनके पूर्वज मरकायारी व्यापारी और जमींदार थे. लेकिन साल 1920 आते-आते सारी संपत्ति चली गई और कलाम के जन्म होने तक परिवार गरीबी में जीने लगा. मरकायार तटीय तमिलनाडु और श्रीलंका में पाए जाने वाले एक मुस्लिम जातीय समूह हैं जो अरब व्यापारियों और स्थानीय महिलाओं के वंशज होने का दावा करते हैं.

अखबार भी बेचा

घर में गरीबी थी. लिहाजा कलाम जल्दी बड़े हो गए. वह अखबार बेचने लगे ताकि परिवार की आय में कुछ योगदान दे सकें. स्कूल के दिनों में कलाम के मार्क्स कुछ ज्यादा नहीं आते थे. हालांकि उन्हें होशियार और मेहनती छात्र माना जाता था, जिसमें सीखने की जबरदस्त ललक थी. वह घंटों पढ़ाई में डूबे रहते थे खासकर गणित में.

रामनाथपुरम के श्वार्ट्ज हायर सेकेंडरी स्कूल से शिक्षा पूरी करने के बाद कलाम ने तिरुचिरापल्ली के सेंट जोसेफ कॉलेज में दाखिला लिया. उन्होंने 1954 में फिजिक्स में ग्रेजुएशन किया. वक्त कलाम को उस राह पर ले जा रहा था, जहां से भारत की तस्वीर और तकदीर दोनों बदलने वाले थे.

मद्रास से की इंजीनियरिंग

1955 में वह मद्रास आ गए और मद्रास इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से एयरोस्पेस इंजीनियरिंग की पढ़ाई की. यहां का एक किस्सा भी बेहद मशहूर है.

कलाम एक सीनियर क्लास प्रोजेक्ट पर काम कर रहे थे लेकिन डीन प्रोजेक्ट की प्रगति को लेकर नाराज थे. उन्होंने धमकी दी कि अगर प्रोजेक्ट अगले तीन दिन में खत्म नहीं हुआ तो स्कॉलपशिप वापस ले ली जाएगी. फिर क्या था. कलाम जी-जान से उस प्रोजेक्ट में जुट गए और तय वक्त में काम खत्म करके ही माने. डीन उनके काम से बेहद खुश हुए. उन्होंने कलाम से बाद में कहा, "मैं तुम पर दबाव डाल रहा था और मुश्किल समयसीमा को पूरा करने के लिए कह रहा था.''  बहुत कम लोग ये जानते हैं कि कलाम फाइटर पायलट बनना चाहते थे. लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था. वायुसेना में कुल 8 ही जगह थीं और कलाम क्वॉलिफायर्स में नौवें नंबर पर थे.

जब बने साइंटिस्ट

1960 में मद्रास इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से ग्रेजुएशन करने के बाद कलाम ने बतौर साइंटिस्ट डीआरडीओ का एयरोनॉटिकल डेवेलपमेंट एस्टेब्लिशमेंट जॉइन किया. उन्होंने अपने करियर की शुरुआत होवरक्राफ्ट बनाकर की. लेकिन वह डीआरडीओ में अपनी नौकरी से संतुष्ट नहीं थे. कलाम उस इंडियन नेशनल कमेटी फॉर स्पेस रिसर्च (INCOSPAR) का भी हिस्सा थे, जो महान स्पेस साइंटिस्ट विक्रम साराभाई की अगुआई में काम कर रही थी.

जब हुआ इसरो में तबादला

1969 में कलाम का इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (ISRO) में तबादला कर दिया गया, जहां वह भारत के पहले सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल  के प्रोजेक्ट डायरेक्टर थे. इसी टीम ने जुलाई 1980 में रोहिणी सैटेलाइट को धरती की कक्षा के करीब स्थापित किया था.
कलाम ने पहली बार 1965 में डीआरडीओ में स्वतंत्र रूप से एक एक्सपेंडेब रॉकेट प्रोजेक्ट पर काम शुरू किया था.

साल 1970-80 के बीच कलाम ने पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल और SLV-III प्रोजेक्ट पर काम शुरू किया और दोनों ही कामयाब रहे. इससे पहले उन्होंने नासा का भी दौरा किया था.

18 मई 1974 को भारत ने पहला परमाणु परीक्षण पोखरण में किया था. इस ऑपरेशन को स्माइलिंग बुद्धा नाम दिया गया था. DRDO की टर्मिनल बैलिस्टिक
रिसर्च लैब (TBRL) के प्रतिनिधि के तौर पर कलाम को साइंटिस्ट राजा रमन्ना ने भारत का पहला  परमाणु परीक्षण देखने का न्योता दिया था. हालंकि कलाम का उस प्रोजेक्ट में कोई योगदान नहीं था.

1970 के दशक में, कलाम ने दो परियोजनाओं प्रोजेक्ट डेविल और प्रोजेक्ट वैलेंट का कार्यभार संभाला, जिसमें सफल एसएलवी प्रोग्राम की तकनीक से बैलिस्टिक मिसाइल विकसित करने की मांग रखी गई. लेकिन कैबिनेट ने मना कर दिया. बावजूद इसके तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी ने एयरस्पेस प्रोजेक्ट के लिए अपनी शक्तियों का इस्तेमाल कर सीक्रेट फंड अलॉट कर दिए.

उनके रिसर्च और शैक्षिक काबिलियत की वजह से साल 1980 के दशक में उन्हें बहुत तारीफ मिली, जिसकी वजह से उनकी अगुआई में एडवांस मिसाइल प्रोग्राम शुरू किया गया. कलाम को साल 1981 में पद्म भूषण से नवाजा गया.
 
आर वेंकटरमन का मिला साथ

उस वक्त आर वेंकटरमन रक्षा मंत्री थे. वेंकटरमन ने कलाम और डॉ वीएस अरुणाचलम (रक्षा मंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार) को सलाह दी कि वे एक के बाद एक मिसाइल बनाने की जगह मिसाइलों का तरकश तैयार करें. आर वेंकटरमन ने इस मिशन के लिए कैबिनेट की मंजूरी ली और 3.8 बिलियन रुपये आवंटित कराए. इसको नाम दिया गया इंटीग्रेटेड गाइडेड मिसाइल डेवेलपमेंट प्रोग्राम (IGMDP).  इस प्रोग्राम के चीफ एग्जीक्यूटिव कलाम बनाए गए. मिशन अग्नि के तहत कलाम के निर्देशन में कई तरह की मिसाइलें बनाईं, जिसमें पृथ्वी मिसाइल भी शामिल है. साल 1990 में  उनको पद्म विभूषण दिया गया.

वो साल जब बदली भारत की तकदीर

कलाम जुलाई 1992 से लेकर दिसंबर 1999 तक डीआरडीओ के सेक्रेटरी और प्रधानमंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार रहे. जब भारत ने पोखरण में इतिहास दोहराया तो उस दौरान उन्होंने न सिर्फ तकनीकी बल्कि राजनैतिक किरदार निभाया. कलाम का नाम घर घर में पहचाने जाने लगा. साल 1997 में कलाम को भारत का सबसे बड़ा नागरिक सम्मान भारत रत्न दिया गया. महामहिम बनने से पहले भारत रत्न पाने वाले वे देश के तीसरे राष्ट्रपति थे.

राष्ट्रपति बनने की क्या है कहानी

ऐसा नहीं है कि अटल बिहारी वाजपेयी ने सीधे कलाम का नाम तय कर लिया था. दरअसल उनका नाम रेस में दूर-दूर तक नहीं था. केआर नारायणन और वाजपेयी सरकार के बीच रिश्ते उतने मीठे नहीं थे. तब कांग्रेस चाहती थी कि उपराष्ट्रपति कृष्णकांत राष्ट्रपति बनें. जबकि एनडीए की ओर से महाराष्ट्र के तत्कालीन राज्यपाल पीसी एलेक्जेंडर का नाम चल रहा था.

6 जून को चर्चाएं शुरू होती हैं. इसके बाद कलाम को अटल बिहारी वाजपेयी का फोन पहुंचता है. अगले कुछ दिनों में देश की राजनीति ऐसी करवट लेती है कि हर कोई दंग रह गया. वो राजनीति के गठबंधन का दौर था. इसलिए कलाम के नाम पर पार्टियों के गठबंधन ध्वस्त हो रहे थे. कई पार्टियां साथ आ रही थीं. इलेक्टोरल कॉलेज के 11 लाख वोटों में एनडीए के पास सिर्फ 55 प्रतिशत थे. एनडीए और विपक्ष अपनी-अपनी जुगत में लगे हुए थे. 8 जून की शाम 6.30 बजे लालकृष्ण आडवाणी के आवास पर कई बीजेपी नेता जमा हुए. इस बैठक में कलाम के नाम का जिक्र हुआ, तो सहमति बनती चली गई. ये नेता जब पीएम के पास गए तो अटल बिहारी वाजपेयी भी राजी हो गए. इसके बाद कलाम के नाम का ऐलान कर दिया गया. विपक्ष की सारी चालें धरी की धरी रह गईं.

कलाम ने 2002 के राष्ट्रपति चुनाव में 922,884 के चुनावी वोट के साथ जीत हासिल की. उनकी विपक्षी लक्ष्मी सहगल को 107,366 वोट मिले. जब कलाम राष्ट्रपति थे तब उनको पीपुल्स प्रेसिडेंट कहा जाता था. कलाम खुद बताते हैं कि बतौर राष्ट्रपति प्रॉफिट बिल पर फैसला लेना सबसे मुश्किल था. राष्ट्रपति रहते हुए उन्होंने केवल एक दया याचिका का निपटारा किया था. हालांकि कलाम दूसरा कार्यकाल चाहते थे. 20 जुलाई 2007 को उन्होंने इसकी इच्छा भी जताई थी बशर्ते उनकी जीत निश्चित हो. लेकिन दो दिन बाद ही उन्होंने दोबारा चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया. तब उनके पास लेफ्ट पार्टियों, शिवसेना और यूपीए के घटक दलों का समर्थन नहीं था.

राष्ट्रपति कार्यकाल के बाद क्या किया...

राष्ट्रपति कार्यकाल खत्म होने के बाद कलाम शिक्षा के क्षेत्र में आ गए. वह इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ मैनेजमेंट शिलॉन्ग, आईआईएम अहमदाबाद, आईआईएम इंदौर और आईआईएस बेंगलुरु में विजिटिंग प्रोफेसर बन गए. वह तिरुअनंतपुरम के इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ स्पेस साइंस एंड टेक्नोलॉजी के चांसलर भी रहे. उन्होंने इंटरनेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी हैदराबाद, अन्ना यूनिवर्सिटी और बीएचयू में छात्र-छात्राओं को इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी की तालीम दी.

27 जुलाई 2015 को कलाम शिलॉन्ग गए, जहां उन्हें आईआईटी में एक लेक्चर देना था. लेकिन सीढ़ियां चढ़ते वक्त उन्हें कुछ असहज महसूस हुआ. लेकिन आराम के बाद वे ऑडिटोरियम में आ गए. शाम को 6.35 बजे वह लेक्चर देते हुए गिर गए. उन्हें गंभीर हालत में अस्पताल में ले जाया गया.  उन्हें आईसीयू में रखा गया लेकिन 7.45 बजे उन्हें मृत घोषित कर दिया गया. डॉक्टरों ने वजह हार्ट अटैक को बताया. बताया जाता है कि उन्होंने आखिरी शब्द अपने सहयोगी और भारतीय लेखक सृजन पाल सिंह से कहे थे, जो थे- Funny Guy! Are you Doing Well?

ये ख़बर आपने पढ़ी देश की नंबर 1 हिंदी वेबसाइट Zeenews.com/Hindi पर

Breaking News in Hindi और Latest News in Hindi सबसे पहले मिलेगी आपको सिर्फ Zee News Hindi पर. Hindi News और India News in Hindi के लिए जुड़े रहें हमारे साथ.

TAGS

Trending news