Kartik Aryan Film: सिर्फ फैमिली का मैटर ही किसी फिल्म को बॉक्स ऑफिस पर नहीं चला सकता. शहजादा देखकर यह बात साफ हो जाती है. असल में कहानी ऐसी होनी चाहिए, जो अपने समय के लिए मैटर करती हो. कार्तिक आर्यन की यह फिल्म देखकर आपको लगेगा कि समय का पहिया पीछे मुड़ गया है. फिल्म सिर्फ कार्तिक के फैन्स के लिए है.
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Bollywood South Remake: कोशिशें जारी हैं कि दुनिया में किसी इंसान की हैसियत उसकी परंपरागत जाति, धर्म, अमीरी, गरीबी से तय न हो. भेदभाव करने वाली वंशानुगत पहचान के बजाय प्रतिभा से लोग पहचाने जाएं. समाज में लोगों को तराशने के ज्यादा से ज्यादा मौके तैयार किए जाएं. लेकिन शहजादा उल्टी चाल लती है. वह बताती है कि नई सोच और वैज्ञानिक कोशिशें बेकार हैं, बल्कि किसी व्यक्ति का वंश ही उसका श्रेष्ठ या निकृष्ट होना तय करता है. व्यक्ति का खून उसकी गवाही देता है. अमीर का बेटा सर्वगुण संपन्न होगा. गरीब का बेटा खोटा सिक्का ही रहेगा, चाहे उसे कितना ही अच्छा माहौल, सुविधाएं, संस्कार मिल जाएं. उसका दर्जा नीचा है और किसी हाल में वह ऊंचा नहीं उठ सकेगा. शहजादा में वाल्मीकि (परेश रावल) जिस उद्योगपति रणदीप नंदा (रोनित रॉय) के यहां नौकरी करता है, अस्पताल में अपने नवजात बच्चे को उसके नवजात बच्चे से बदल देता है. वह सपना देखता है कि कम से कम मेरा बेटा तो सुखों में पलेगा. उसका जीवन संवर जाएगा. वह लायक बन जाएगा. मगर ऐसा नहीं होता क्योंकि बच्चे में अमीर घराने का खून नहीं है!
क्या होगा आगे
शहजादा के शुरुआती मिनटों में ही आप समझ जाते हैं कि समय से बहुत पीछे की सोच का सिनेमा देख रहे हैं. बच्चों की अदला-बदली की ऐसी कहानियां 1980 के दशक में उत्सुकता पैदा करती थी. शहजादा शुरू होने के कुछ ही देर में, समय लंबी छलांग भरता है और बदले गए बच्चे बंटू (कार्तिक आर्यन) और राज (अंकुर राठी) जवान हो जाते हैं. बंटू वाल्मीकि जैसे बाप के तानों और विरोधी हालात के बावजूद बहुत टैलेंटेड है, ताकतवर है, ईमानदार है, हंसमुख है, हैंडसम है. वहीं राज तमाम सुख-सुविधाओं में पलने-बढ़ने और लिखने-पढ़ने के बावजूद ‘नेपो-किड’ है. वह घर के अंदर बच्चों वाली कार में चलता है. फिल्म यहीं खत्म हो जाती है क्योंकि आगे न राइटर-डायरेक्टर के पास कहने को कुछ बचा रहता है और न एक्टरों के पास. दर्शक को दोनों किरदारों के भविष्य की यात्रा साफ दिख जाती है और बॉलीवुड फिल्मों के दर्शक जानते हैं कि आगे क्या होगा.
खुल गया राज
पिछड़ी हुई सोच के साथ आगे बढ़ती कहानी में ऐसा कुछ नया नहीं होता, जिसका अंदाजा आप न लगा सकें. बंटू सामने आने वाली हर मुश्किल को खत्म करते हुए आगे बढ़ता है और एक दिन उसे पता चलता है कि वाल्मीकि उसका पिता नहीं है. वह तो जिंदल उद्योग घराने का वारिस है. शहजादा! इधर, खलनायक सारंग (सनी हिंदुजा) की जिंदल घराने से व्यावसायिक रंजिश है. खलनायक रणदीप नंदा को खत्म करने की कोशिश करता है और बंटू उसे बचा लेता है. अस्पताल में बंटू को पता चलता है कि रणदीप नंदा उसके असली पिता हैं. अब बंटू क्या करेगाॽ कैसे तमाम हकीकतों का सामना करेगा और कैसे खलनायक से अपने पिता तथा उनके परिवार को आने वाले संकटों से बचाएगाॽ राज का क्या होगाॽ वाल्मीकि की करतूत का कैसे पर्दाफाश होगाॽ यही आगे की कहानी है.
ओरीजनल और रीमेक में फर्क
फिल्म को कॉमिक अंदाज में बनाया गया है. कार्तिक आर्यन पूरी कहानी को लीड करते हैं. शहजादा करीब ढाई साल पुरानी तेलुगु फिल्म अला वैकुंठपुरुमुलु का ऑफीशियल हिंदी रीमेक है. निर्देशक रोहित धवन ने ही इस फिल्म की कहानी में हल्के-फुल्के बदलाव करते हुए इसे हिंदी दर्शकों के अनुकूल बनाया है. मूल फिल्म के कुछ दृश्य उन्होंने छोड़े हैं, लेकिन लगभग सभी किरदारों को ज्यों का त्यों रख लिया है. कहीं-कहीं किरदारों की परिस्थितियां उन्होंने बदली है, मगर फिल्म मूल कहानी के ट्रेक पर चलती है. कई दृश्यों को तेलुगु फिल्म की तर्ज पर ही शूट किया गया है. अगर आपने अला वैकुंठपुरुमुलु देखी है तो आपके लिए शहजादा का कोई अर्थ नहीं रह जाता. लेकिन आपने वह फिल्म नहीं देखी, तब भी शहजादा में ऐसा कुछ नहीं है जिसे आप मिस करेंगे.
कार्तिक ने गंवाई कमाई
फिल्म की कथा-पटकथा बिखरी हुई है. ड्रामा टुकड़ों में कहीं-कहीं ठीक है. जबकि कार्तिक आर्यन के अलावा थोड़ा बहुत कोई इंप्रेस करता है, तो वह परेश रावल हैं. कृति सैनन जरूर यहां हैं. लेकिन थोड़ी देर के बाद उनके हिस्से में सिवाय कार्तिक की छाया बनकर रहने और नाचने-गाने के अलावा कोई काम नहीं रह गया. मनीषा कोईराला को लंबे समय बाद देखकर अच्छा लगता है. कार्तिक के फैन्स भले ही फिल्म देखकर खुश हों लेकिन शहजादा इस युवा एक्टर को बॉलीवुड में शहजादे की तरह स्थापित करने में नाकाम रहती है. भूल भुलैया 2 और फ्रेडी में पिछले साल उन्होंने भरोसे की जो कमाई की थी, वह इस फिल्म में गंवा दी है. जल्दबाजी और रीमेक उन्हें स्थाई सफलता नहीं दिला सकते है. लंबी रेस के लिए उन्हें अपनी प्यार का पंचनामा सीरीज की फिल्मों वाली छवि से भी छुटकारा पाना होगा. फिल्म का कैमरावर्क अच्छा है. जबकि गीत-संगीत औसत है. कोरियोग्राफी भी यहां पुरानी लगती है. पहले हिस्से में फिल्म की रफ्तार धीमी है. दूसरा हिस्सा ज्यादा बेहतर है. आपके पास खाली समय और पॉकेट में एक्स्ट्रा मनी हो, तो शहजादा देख सकते हैं. वर्ना इंतजार करें. ओटीटी पर फिल्म आ ही जाएगी.
निर्देशकः रोहित धवन
सितारे : कार्तिक आर्यन, कृति सैनन, परेश रावल, मनीषा कोईराला, सचिन खेड़कर, रोनित रॉय, अंकुर राठी, सनी हिंदुजा
रेटिंग**1/2
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