India's First IAS Officer: मिलिए भारत के पहले IAS ऑफिसर से, ऐसे तोड़ा था अंग्रेजों का गुरूर
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India's First IAS Officer: मिलिए भारत के पहले IAS ऑफिसर से, ऐसे तोड़ा था अंग्रेजों का गुरूर

UPSC Exam: अंग्रेजों ने खुद को महान साबित करने के लिए कमीशन का गठन तो कर दिया. मगर वो नहीं चाहते थे कि कोई भारतीय इस प्रतिष्ठित पद तक पहुंचे. शुरुआत में यह परीक्षा सिर्फ लंदन में ही होती थी. इसके लिए न्यूनतम आयु 18 साल और अधिकतम आयु महज 23 साल ही थी. 

India's First IAS Officer: मिलिए भारत के पहले IAS ऑफिसर से, ऐसे तोड़ा था अंग्रेजों का गुरूर

Civil Service Exam Satyendranath Tagore: भारत में आज सर्वश्रेष्ठ नौकरी की बात करें तो IAS और IPS के नाम ही सबसे पहले आते हैं. देश के लाखों स्टूडेंट्स का सपना सिविल सर्विस का एग्जाम (Civil Service Exam) पास करना होता है. हर साल हजारों छात्र परीक्षा में बैठते हैं और इनमें से कुछ ही इसे पास कर पाते हैं. क्या आप जानते हैं कि आखिर वो पहला भारतीय शख्स (Who was first IAS officer in India) कौन था, जिसने इस मुश्किल परीक्षा को पास किया था. आखिर क्यों सरकार में नौकरी के लिए इस परीक्षा की जरूरत पड़ी और इसकी शुरुआत कैसे हुई. चलिए हम आपको इनके जवाब देते हैं.

भारत में सिविल सर्विस एग्जाम की शुरुआत साल 1854 में हुई. अंग्रेजों ने इसकी शुरुआत की थी. ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए काम करने वाले सिविल सर्वेंट को पहले कंपनी के निदेशकों द्वारा नामित किया जाता था. इसके बाद लंदन के हेलीबरी कॉलेज में इन्हें ट्रेनिंग के लिए भेजा जाता. यहां से ट्रेनिंग पूरी करने के बाद ही भारत में तैनात किया जाता था.

ईस्ट इंडिया कंपनी की इस प्रक्रिया पर सवाल उठने लगे. इसके बाद ब्रिटिश संसद की सेलेक्ट कमेटी की लॉर्ड मैकाउले रिपोर्ट में एक प्रस्ताव पेश किया गया. इसके तहत भारत में सिविल सर्विस के चयन के लिए एक मेरिट पर आधारित परीक्षा कराई जाए. एक प्रतिस्पर्धी परीक्षा हो और उसी के आधार पर सही उम्मीदवार का चयन हो. इस तरह से एक निष्पक्ष प्रक्रिया की शुरुआत की जा सकेगी. इस उद्देश्य के लिए 1854 में लंदन में सिविल सर्विस कमीशन का गठन किया गया. इसके अगले साल परीक्षा की शुरुआत हो गई.

अंग्रेजों ने खुद को महान साबित करने के लिए कमीशन का गठन तो कर दिया. मगर वो नहीं चाहते थे कि कोई भारतीय इस प्रतिष्ठित पद तक पहुंचे. शुरुआत में यह परीक्षा सिर्फ लंदन में ही होती थी. इसके लिए न्यूनतम आयु 18 साल और अधिकतम आयु महज 23 साल ही थी. भारतीयों को फेल करने के लिए खासतौर से सिलेबस को तैयार किया गया और उसमें यूरोपीय क्लासिक के लिए ज्यादा नंबर रखे गए. अंग्रेज नहीं चाहते थे कि भारतीय ये परीक्षा पास करें.

शुरुआती दशक में तो अंग्रेजों को लगा कि वो अपनी चाल में कामयाब हो गए हैं. मगर उन्होंने भारतीयों को कम आंककर बड़ी भूल कर दी थी. 1864 में पहली बार किसी भारतीय ने इस परीक्षा में सफलता हासिल की. सत्येंद्रनाथ टैगोर (Satyendranath Tagore) इस परीक्षा को पास करने वाले पहले भारतीय थे. वह महान रबिंद्रनाथ टैगोर (Rabindaranath Tagore) के भाई थे. इसके बाद कामयाबी का सिलसिला चल निकला. तीन साल के बाद 4 भारतीयों ने एक साथ यह परीक्षा पास की.

यही नहीं भारतीयों को 50 साल से ज्यादा समय तक इस बात के संघर्ष करना पड़ा कि यह परीक्षा लंदन के बजाय भारत में हो. ब्रिटिश सरकार नहीं चाहती थी कि ज्यादा भारतीय सिविल सर्विस परीक्षा में सफलता हासिल करें. मगर भारतीयों के लगातार प्रयास और याचिकाओं के बाद आखिरकार उन्हें झुकना पड़ा. प्रथम विश्व युद्ध के बाद 1922 से यह परीक्षा भारत में होनी शुरू हुई.

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