Knowledge Story, Naga Vs Aghori Sadhu: अघोरी साधु अद्भुत और रहस्यमयी प्रथाओं के लिए जाने जाते हैं. वहीं, नागा साधुओं का जीवन बेहद जटिल होता है. दोनों शिव की आराधना करते हैं, लेकिन इनके तप- ध्यान के तरीके, जीवनशैली और आहार सब अलग होता हैं. चलिए जानते हैं इन दोनों में क्या फर्क होता है...
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Difference Between Naga And Aghori Sadhu: महाकुंभ 2025 का आयोजन प्रयागराज में गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम तट पर चल रहा है. दुनियाभर के श्रद्धालु और साधु-संत इस महापर्व में स्नान और दर्शन के लिए जुट रहे हैं. इस बार महाकुंभ में नागा साधु और अघोरी साधु सबसे ज्यादा चर्चा का विषय बने हुए हैं. इन दोनों का रहस्यमय जीवन और साधना शैली हमेशा से ही लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र रही है. आइए जानते हैं नागा और अघोरी साधुओं के बीच क्या अंतर है और उनकी पूजा और नियम कैसे एक-दूसरे से अलग होते हैं.
नागा साधु कौन होते हैं?
नागा साधु को सनातन धर्म का रक्षक माना जाता है. 'नागा' शब्द की उत्पत्ति के बारे में कुछ विद्वानों की मान्यता है कि यह शब्द संस्कृत के शब्द नागा से निकला है, जिसका अर्थ 'पहाड़' से होता है और वहां रहने वाले 'पहाड़ी' या 'नागा' कहलाते हैं. नागा का अर्थ नग्न रहने वालों से भी है. वे नग्न रहते हैं और अपने शरीर पर भभूत (हवन की राख) लगाते हैं. उनकी साधना शिवजी की आराधना पर आधारित होती है. नागा साधुओं का मुख्य उद्देश्य धर्म की रक्षा करना और शास्त्रों के ज्ञान में निपुण होना है. इन्हें कठोर तप और शारीरिक शक्ति के लिए जाना जाता है. महिला और पुरुष नागा साधु के नियम-कायदे एक से ही हैं. अंतर बस इतना ही है कि महिला नागा साधु को एक पीला वस्त्र लपेटकर रखना पड़ता है.
नागा बनने के बाद साधु गांव या शहर की भीड़भाड़ भरी जिंदगी को त्यागकर पहाड़ों या जंगलों में चले जाते हैं. वह ऐसी जगह पर ठिकाना बनाते हैं, जहां कोई भी आता जाता न हो. इन्हें रात-दिन मिलाकर केवल एक समय भोजन करना होता है. वो भोजन भी भिक्षा मांग कर लिया गया होता है.
अघोरी साधु कौन होते हैं?
वहीं, बात करें अघोरी साधुओं के बारे में, तो ये अपनी रहस्यमय और अद्वितीय साधना पद्धतियों के लिए जाने जाते हैं. वे शिव के उग्र और प्रचंड स्वरूप की पूजा करते हैं. अघोरी शब्द का संस्कृत भाषा में मतलब होता है 'उजाले की ओर'. इस शब्द को पवित्रता और सभी बुराइयों से मुक्त भी समझा जाता है, लेकिन इनका रहन-सहन और तरीके इसके बिल्कुल उलट दिखते हैं.
कई इंटरव्यूज और डाक्यूमेंट्रीज में इस बारे में खुद कई अघोरियों ने माना है कि वो इंसान का कच्चा मांस खाते हैं. ये श्मशान घाट की अधजली शवों का मांस और शरीर के द्रव्य भी प्रयोग करते हैं. इसके पीछे मान्यता है कि इससे तंत्र शक्ति प्रबल होती है. प्रचलित धारणा है कि अघोरी शव साधना के साथ ही उनसे शारीरिक संबंध बनाते हैं. इसका कारण ये बताया जाता है कि यह शिव-शक्ति की उपासना करने का तरीका है.
नागा साधु बनने की प्रक्रिया
नागा साधु बनने में 12 साल का समय लगता है.
शिक्षा और अनुशासन: शुरुआती 6 साल तक वे अनुशासन और जीवन शैली की शिक्षा लेते हैं.
संपूर्ण त्याग: कुंभ मेले में वे लंगोट का त्याग करते हैं और नग्न होकर जीवन जीते हैं.
प्राकृतिक जीवन: वे बिस्तर पर नहीं सोते और एकांत में तपस्या करते हैं.
अघोरी साधु की साधना और नियम
अघोरी साधुओं का जीवन नियमों से बंधा नहीं होता, बल्कि वे सांसारिक सीमाओं से परे होते हैं.
भोजन: वे किसी भी प्रकार का भोजन कर सकते हैं, जो उनके साधना पथ का हिस्सा होता है.
जीवन के प्रति दृष्टिकोण: उनका जीवन मृत्यु और परलोक को समझने और अनुभव करने के लिए समर्पित होता है.
नागा और अघोरियों की पूजा का केंद्र
दोनों साधु शिव की आराधना करते हैं. नागा साधु शिव को परमात्मा के रूप में पूजते हैं, जबकि अघोरी शिव के भैरव रूप की पूजा करते हैं.
महाकुंभ में इन साधुओं का महत्व
महाकुंभ में नागा और अघोरी साधुओं का दर्शन पुण्यदायक माना जाता है. ये साधु श्रद्धालुओं को शिव भक्ति और सनातन धर्म का मार्ग दिखाते हैं.