दिवाली पर छूटने वाले पटाखों का बड़ा पुराना है इतिहास, महाभारत काल में भी हो चुका है प्रयोग?

पटाखों को लेकर कई कहानियां प्रसिद्ध है. कुछ लोगों का कहना है कि इसकी शुरुआत चीन में छठी सदी के दौरान हुई थी. वहीं कुछ लोग कहते हैं कि गलती से इसका आविष्कार हुआ था.

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Oct 23, 2022, 10:40 PM IST
  • दिवाली पर छूटने वाले पटाखों का बड़ा पुराना है इतिहास
  • जानें सबसे पहले कब शुरू हुआ था इनका इस्तेमाल
दिवाली पर छूटने वाले पटाखों का बड़ा पुराना है इतिहास, महाभारत काल में भी हो चुका है प्रयोग?

नई दिल्ली: दिवाली पर कई सारे लोग पटाखे फोड़ कर अपनी खुशियों का इजहार करते हैं. सिर्फ दिवाली ही नहीं बल्की भारत सहित पूरी दुनिया में अलग अलग अलग मौकों पर पटाखे फोड़कर खुशियों का इजहार किया जाता है. लेकिन काफी कम लोगों को पटाखों के बारे में जानकारी होती है. जैसे कि पटाखों की शुरुआत कब और कैसे हुई. इसका नाम पटाखा कैसे पड़ा? 

पटाखों को लेकर कई कहानियां हैं प्रसिद्ध

पटाखों को लेकर कई कहानियां प्रसिद्ध है. कुछ लोगों का कहना है कि इसकी शुरुआत चीन में छठी सदी के दौरान हुई थी. वहीं कुछ लोग कहते हैं कि गलती से इसका आविष्कार हुआ था. प्रचलित कहानी एक रसोइए की है जो खाना बनाते समय गलती से पोटैशियम नाइट्रेट को आग में फेंक दिया था. इससे एक जोरदार धमाका हुआ था. यही से पटाखे की शुरुआत  हुई.

किसने किया था पटाखों का आविष्कार

कई सारे इतिहासकारों का यह मानना है कि पटाखे या आतिशबाजी मूल रूप से दूसरी शताब्दी में प्राचीन लिउ यांग चीन में विकसित की गई थी. ऐसा माना जाता है कि पहले प्राकृतिक पटाखे पटाखे बांस के डंठल थे जो आग में फेंकने के बाद खोखला होने के कारण धमाके के साथ फटते थे. बारूद से सबसे पहले पटाखा बनाने का प्रमाण चीनी सैनिकों के इतिहास में मिलता है. चीनी सैनिकों ने बारूद को बांस में भरकर पटाखे बनाए थे.  वहीं भारत में इसकी शुरुआत 15वीं सदी में हुई थी.

भारत में कब हुई शुरुआत कैसे नाम पड़ा पटाखा

भारत में पटाखों की शुरुआत काफी पहले हो गयी थी. महाभारत काल में पटाखों के बारे में सुनने को मिलता है. जिसमें रुक्मिणी और भगवान कृष्ण के विवाह में आतिशबाजी का उल्लेख है. भारत में 15वीं की कई पेंटिंग और मूर्ति में आतिशबाजी और फुलझड़ियां देखने को मिलते हैं.19वीं सदी में एक मिट्टी की छोटी मटकी में बारूद भरकर पटाखा बनाने का ट्रेंड था. बारूद भरने के बाद उस मटकी को जमीन पर पटक कर फोड़ा जाता था, जिससे रोशनी और आवाज होती थी. इसी ‘पटकने’ के कारण इसका नाम ‘पटाखा’ पड़ा.

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