आजाद भारत कैसा होगा? भारत का संविधान बनाने वाले 299 सदस्यों में थीं ये 15 महिलाएं, जानें इनके बारे में

15 women of Constituent Assembly: संविधान सभा में शामिल ज्यादातर महिलाएं उच्च जाति और उच्च वर्ग से थीं और पढ़ी-लिखी थीं. 15 महिलाओं में से सिर्फ एक मुस्लिम और दूसरी दलित थी. तत्कालीन संयुक्त प्रांत ने चार महिलाओं को संविधान सभा में भेजा, जो महिलाओं की सबसे ज्यादा संख्या थी.

Written by - Nitin Arora | Last Updated : Jan 27, 2025, 12:58 PM IST
  • संविधान को आकार देने के लिए कई लड़ाइयां लड़ीं
  • 15 महिला सदस्यों द्वारा दिया गया उल्लेखनीय योगदान
आजाद भारत कैसा होगा? भारत का संविधान बनाने वाले 299 सदस्यों में थीं ये 15 महिलाएं, जानें इनके बारे में

Constituent assembly of india: भारतीय संविधान सबसे महत्वपूर्ण इतिहास में से एक है. यह न्याय, स्वतंत्रता, समानता, बंधुत्व और धर्मनिरपेक्षता के मूल्यों को दर्शाता है. यह दुनिया के सबसे गतिशील और विकसित संविधानों में से एक है. भारत में बीते दिन ही 76वें गणतंत्र दिवस का जश्न मनाया, लेकिन क्या आपको पता है कि आजादी के बाद नया भारत, आजाद भारत कैसा होगा, इसके लिए जो संविधान बना था, उस सभा में 15 महिलाएं भी थीं.

संविधान सभा बनाई, जो भारत का संविधान लिखती. इसमें 299 सदस्य थे. इनमें मात्र 15 महिलाएं थीं, जिनकी सभा में भूमिका थी. ये महिलाएं देश के अलग-अलग हिस्सों से थीं. आज हम इन महिलाओं के बारे में बताएंगे जिन्होंने स्त्रियों को जकड़ने वाली रीति-रिवाजों को चुनौती दी.

संविधान सभा की महिला सदस्य
उन 299 सदस्यों ने दुनिया के सबसे प्रगतिशील संविधानों में से एक का मसौदा तैयार करने के लिए 2 साल 11 महीने और 17 दिनों तक अथक परिश्रम किया. इनमें एक राष्ट्र के रूप में, संविधान सभा (विधानसभा) की 15 महिला सदस्यों द्वारा किए गए उल्लेखनीय योगदान को निश्चित रूप से लोग भूल गए हैं. महिलाएं विविध पृष्ठभूमि से थीं और उन्होंने भारतीय संविधान को आकार देने के लिए कई लड़ाइयां लड़ीं. हालांकि, इनमें से कोई भी महिला सभा की मसौदा समिति का हिस्सा नहीं थी.

विधानसभा की महिला सदस्य अम्मू स्वामीनाथन, दक्षयानी वेलायुधन, बेगम ऐजाज रसूल, दुर्गाबाई देशमुख, हंसा जीवराज मेहता, कमला चौधरी, लीला रॉय, मालती चौधरी, पूर्णिमा बनर्जी, राजकुमारी अमृत कौर, रेणुका रे, सरोजिनी नायडू, सुचेता कृपलानी, विजया लक्ष्मी पंडित और एनी मस्कारेन थीं. वे वकील, सुधारवादी और स्वतंत्रता सेनानी थीं और उनमें से अधिकांश नारीवादी आंदोलन का हिस्सा थीं.

PRS लेजिस्लेटिव रिसर्च के विश्लेषण के अनुसार, संविधान सभा में शामिल ज्यादातर महिलाएं उच्च जाति और उच्च वर्ग से थीं और पढ़ी-लिखी थीं. 15 महिलाओं में से सिर्फ एक मुस्लिम और दूसरी दलित थी. तत्कालीन संयुक्त प्रांत ने चार महिलाओं को संविधान सभा में भेजा, जो महिलाओं की सबसे ज्यादा संख्या थी. जी दुर्गाबाई (मद्रास), बेगम ऐजाज रसूल (संयुक्त प्रांत) और रेणुका रे (पश्चिम बंगाल) ने विधानसभा की बहसों में सबसे ज़्यादा भाषण दिए.

आरक्षण से लेकर समान नागरिक संहिता तक के मुद्दों पर चर्चा और बहस में विधानसभा की महिला सदस्यों का उत्साह और योगदान बेमिसाल था. लैंगिक समानता, व्यक्तिगत स्वतंत्रता, विकेंद्रीकरण और सामाजिक न्याय जैसे कई मुद्दों पर उनके योगदान का महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा.

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