कांग्रेस के सिद्धू और BJP के फडणवीस, संगठन बड़ा होता है...नेता नहीं, महाराष्ट्र से BJP का बड़ा संदेश

नवजोत सिंह सिद्धू और देवेंद्र फडणवीस को देखें तो कांग्रेस और बीजेपी की वर्किंग स्टाइल का अंतर साफ दिखता है. एकतरफ फडणवीस अपना कद कम करके विचारधारा को मजबूत करते दिख रहे हैं तो वही सिद्धू प्रकरण में बार-बार लोगों के बीच संदेश गया कि पंजाब कांग्रेस में लीडर खुद को पार्टी से ऊपर समझते हैं. इस नैरेटिव ने पंजाब चुनाव में कांग्रेस की 'लुटिया भी डुबो' दी थी.

Written by - Arun Tiwari | Last Updated : Jul 6, 2022, 06:00 PM IST
  • महाराष्ट्र सरकार गठन में BJP का बड़ा संदेश.
  • सिद्धू और फडणवीस प्रकरण से समझें अंतर.
कांग्रेस के सिद्धू और BJP के फडणवीस, संगठन बड़ा होता है...नेता नहीं, महाराष्ट्र से BJP का बड़ा संदेश

नई दिल्ली. महाराष्ट्र की हालिया राजनीति को देखते हुए इसे 'अप्रत्याशित राजनीतिक निर्णयों' का राज्य का कहा जा सकता है. साल 2019 में शिवसेना के 'हठ' के बाद एक ऐसा गठबंधन राज्य की राजनीति में देखने को मिला जिसके ओर-छोर एक-दूसरे से दूर-दूर तक नहीं मिलते थे. यानी 'राजनीतिक पद स्वीकार न करने वाले' ठाकरे परिवार के उत्तराधिकारी उद्धव ठाकरे कांग्रेस और एनसीपी के सहयोग से राज्य के मुख्यमंत्री बने. इस 'बेमेल गठबंधन' का सबसे ज्यादा खामियाजा शिवसेना को ही उठाना पड़ा. जो शिवसेना दशकों से हिंदुत्व के मुद्दे पर चुनाव जीतती रही, वह उसी मुद्दे पर चौतरफा घिर गई. विपक्ष की तरफ से आरोप लगे कि शिवसेना गठबंधन बनाए रखने के लिए अपनी मूल विचारधारा के साथ समझौता कर रही है.

उद्धव ठाकरे बमुश्किल ढाई साल सरकार चला पाए और लावे के रूप में पनप रहा 'हिंदुत्व के साथ समझौते का आरोप' एक ज्वालामुखी बनकर फूटा. राज्य विधानसभा में शिवसेना विधानमंडल दल के नेता और शिवसेना के दिग्गज सिपहसालार एकनाथ शिंदे ने बड़ी बगावत कर दी. इस बगावत के साथ ही शुरू हुआ कयासबाजियों का दौर. लेकिन आखिरकार इस पूरी बगावत का अंत भी बेहद अप्रत्याशित निर्णय के साथ खत्म हुआ. जिन एकनाथ शिंदे को लेकर कई तरह की चर्चाएं महाराष्ट्र से लेकर दिल्ली तक फैली हुई थीं वो राज्य के मुख्यमंत्री बनकर उभरे. बीजेपी की तरफ से मुख्यमंत्री पद के प्रत्याशित चेहरे देवेंद्र फडणवीस डिप्टी सीएम बनाए गए. 

फडणवीस के 'डिमोशन' की राजनीतिक पहेली बुझा रहे विश्लेषक
फडणवीस को डिप्टी सीएम का पद दिए जाने की राजनीतिक पहेली अब भी देशभर के राजनीतिक विश्लेषक सुलझा ही रहे हैं. हालांकि अब फडणवीस खुद साफ कर चुके हैं कि उन्होंने ही शिंदे को सीएम बनाने की पैरोकारी की थी. लेकिन फिर बीजेपी का यह निर्णय एक बड़े वर्ग के गले नहीं उतर पा रहा है. बीजेपी के इस निर्णय के लोगों के गले न उतर पाने की वजह भी माकूल है. लेकिन अगर बीजेपी के इस निर्णय को देश की मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस के एक निर्णय से तुलनात्मक रूप में देखें तब राजनीतिक बारीकियों की परतें खुलती नजर आती हैं. आखिर अपने निर्णयों से राजनीतिक पार्टियां कैसे हारती और जीतती हैं, इसके नमूने रूप में हमारे पास फडणवीस प्रकरण और पंजाब में कांग्रेस का सिद्धू प्रकरण है.

बीजेपी ने एक साथ साधे हैं कई निशाने
दरअसल फडणवीस को डिप्टी सीएम बनाकर बीजेपी एकसाथ कई निशाने साधती दिख रही है. पहला, मुख्यमंत्री बनाए जाने की स्थिति में शिवसेना के सभी बागी विधायक किसी नए दल में जाने की बजाए सीधे बीजेपी का रुख सकते हैं. इससे अगले ढाई साल तक बीजेपी पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता पर काबिज रहेगी और उसमें टूट-फूट का कोई डर नहीं रहेगा. शिंदे मराठा समुदाय से आते हैं और आगामी चुनाव में पार्टी की पैठ और मजबूत होगी. 

तीसरा, देवेंद्र फडणवीस को सीएम की जगह डिप्टी सीएम बनाकर पार्टी टॉप लीडरशिप ने अपनी वकत भी साबित की है. यानी वक्त पड़ने पर विचारधारा के प्रसार के लिए पार्टी के बड़े नेता को भी किसी छोटे पद पर बिठाया जा सकता है. चौथा, तरफ देवेंद्र फडणवीस ने भी यह पद स्वीकार कर पार्टी कार्यकर्ताओं में बड़ा संदेश दिया है कि वो पार्टी के हित में टॉप लीडरशिप के फैसले को स्वीकार करेंगे. पांचवा, फडणवीस प्रकरण दूसरी राजनीतिक पार्टियों के लिए संदेश की तरह है. यानी बीजेपी ने अपने पार्टी नेताओं पर पकड़ का सीधा प्रदर्शन कर दिया है. यानी दूसरी पार्टियां भी यह देखें कि बीजेपी के नेता पार्टी और विचारधारा के हित में 'कुछ कम' भी स्वीकार कर सकते हैं.

सिद्धू की बातें मानना कांग्रेस को बहुत महंगा पड़ा
लेकिन इसके ठीक उलट अगर हम पंजाब में नवजोत सिंह सिद्धू के साथ कांग्रेस के बर्ताव को देखें तो बिल्कुल अलग कहानी दिखाई देगी. पंजाब में 2017 में कैप्टन अमरिंदर सिंह के चेहरे पर प्रचंड बहुमत से सरकार बनाने वाली कांग्रेस साल 2022 में बुरी तरह जमीन से उखड़ गई. इस ऐतिहासिक पराजय में कांग्रेस लीडरशिप द्वारा एक के बाद लिए गए कई निर्णय जिम्मेदार थे. पंजाब कांग्रेस में कैप्टन अमरिंदर सिंह के बरअक्स नवजोत सिंह सिद्धू खुद को खड़ा करना चाहते थे.

कैप्टन अमरिंदर जैसे दिग्गज नेता को छोड़नी पड़ी पार्टी, कांग्रेस ने भुगता खामियाजा
दोनों नेताओं के बीच विवाद बार-बार दिल्ली आकर सुलझते रहे और आखिरकार कैप्टन अमरिंदर सिंह जैसे बड़े नेता को भारी मन से अपनी कुर्सी छोड़नी पड़ी. कैप्टन अमरिंदर के बारे में कहा जाता है कि वो देश के ऐसे मुख्यमंत्री थे जिन्हें अंतरराष्ट्रीय मुद्दों की जबरदस्त समझ है. उन्होंने अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर हमेशा राष्ट्रवादी स्टैंड लिया. लेकिन उन्हें अपना पद छोड़ना पड़ा. कैप्टन को पसंद करने वाला एक बड़ा कांग्रेसी वर्ग टॉप लीडरशिप के इस निर्णय से क्षुब्ध हो गया. साथ ही आम लोगों के बीच यह संदेश भी गया कि पार्टी लीडरशिप अपने विवादों को सुलझा पाने में नाकामयाब रह रही है. कैप्टन का ही प्रभाव रहा है कि बीते समय में कई सिख नेताओं ने बीजेपी का दामन थामा है जबकि पंजाब ऐसा राज्य रहा है जहां पर बीजेपी की पैठ कम रही है. 

सिद्धू का चन्नी से भी हुआ विवाद
फिर चरनजीत सिंह चन्नी से विवाद में भी नवजोत सिंह सिद्धू ने इस्तीफा दे दिया था. यानी हर बार कांग्रेस की अंदरूनी कलह की खबर लोगों के बीच गई. पार्टी पंजाब की जनता को यह संदेश दे पाने में नाकाम रही कि वह अपने पार्टी के भीतर पूरा कंट्रोल रखती है. 

सिद्धू और फडणवीस को देखें तो कांग्रेस और बीजेपी की वर्किंग स्टाइल का अंतर भी साफ दिखता है. एकतरफ फडणवीस अपना कद कम करके विचारधारा को मजबूत करते दिख रहे हैं तो वहीं सिद्धू प्रकरण में बार-बार लोगों के बीच संदेश गया कि पंजाब कांग्रेस में लीडर खुद को पार्टी से ऊपर समझते हैं. इस नैरेटिव ने पंजाब चुनाव में कांग्रेस की 'लुटिया भी डुबो' दी थी.

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