PM मोदी ने किस नेता के कहने पर वाराणसी सीट से लड़ा था चुनाव, जीतकर भी क्यों छोड़ा वडोदरा?

नई दिल्ली. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल में एक तमिल मीडिया हाउस Thanthi TV को इंटरव्यू दिया है. इस इंटरव्यू की चर्चा कई अहम बातों को लेकर हो रही है. इस इंटरव्यू में एक सवाल पीएम मोदी से यह भी पूछा गया की क्या वह इस बार तमिलनाडु की रामनाथपुरम लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने जा रहे हैं?

Written by - Arun Tiwari | Last Updated : Apr 2, 2024, 05:11 PM IST
  • किसने बनाई थी 'वाराणसी संदेश' की रणनीति?
  • वडोदरा सीट जीतकर भी पीएम मोदी ने छोड़ी थी.
PM मोदी ने किस नेता के कहने पर वाराणसी सीट से लड़ा था चुनाव, जीतकर भी क्यों छोड़ा वडोदरा?

नई दिल्ली. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल में एक तमिल मीडिया हाउस Thanthi TV को इंटरव्यू दिया है. इस इंटरव्यू की चर्चा कई अहम बातों को लेकर हो रही है. इस इंटरव्यू में एक सवाल पीएम मोदी से यह भी पूछा गया की क्या वह इस बार तमिलनाडु की रामनाथपुरम लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने जा रहे हैं? इस पर प्रधानमंत्री मोदी ने जवाब दिया कि उन्हें किसी जगह से चुनाव लड़ने की कोई इच्छा नहीं होती है यानी यह कोई व्यक्तिगत इच्छा नहीं है, पार्टी जहां से कहती है वह वहां से चुनाव लड़ते हैं.

पीएम मोदी ने इस जवाब से केवल इस बात का उत्तर नहीं दिया कि रामनाथपुरम या किसी अन्य जगह से चुनाव लड़ने का फैसला पार्टी करेगी बल्कि संकेतों में इस बात का भी उत्तर दिया कि साल 2014 में जब वह गुजरात से वाराणसी चुनाव लड़ने पहुंचे थे तब इसका फैसला भी पार्टी ने ही किया था. दरअसल इस बात की चर्चा अक्सर होती है कि पीएम मोदी ने अपने गृह राज्य गुजरात से हटकर वाराणसी को अपने लोकसभा क्षेत्र के रूप में क्यों चुना? हालांकि 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी ने वडोदरा लोकसभा सीट से भी चुनाव लड़ा था और प्रचंड वोटों से जीत हासिल की थी. मोदी ने इस सीट पर कांग्रेस के मधुसूदन मिस्त्री को 5 लाख 70 हजार वोटों से चुनाव हरा दिया था. जबकि वाराणसी में मोदी ने तीन लाख 70 हजार वोटों से जीत हासिल की थी. लेकिन इसके बावजूद बाद में उन्होंने वडोदरा सीट खाली कर दी थी और वाराणसी की सीट बनाए रखी. निश्चित तौर पर यह एक बड़ा प्रतीकात्मक संदेश था. वाराणसी और बाबा विश्वनाथ की नगरी से दिया गया हिंदुत्व का संदेश.

किसने मोदी को चुनाव लड़ने के लिए मनाया?
मोदी के वाराणसी सीट चुनने के पीछे यह सवाल भी पूछे जाते हैं कि इसके पीछे कौन था जिसने पार्टी के पीएम कैंडिडेट को चुनाव लड़ने के लिए मनाया. या फिर पार्टी की क्या रणनीति थी जिसके तहत मोदी को 2014 के बेहद अहम चुनाव में वाराणसी से चुनावी दंगल में उतरने की योजना बनाई गई थी. इस सवाल का जवाब इस सवाल का जवाब केंद्रीय मंत्री अमित शाह की बायोग्राफी 'अमित शाह और भाजपा की यात्रा' में मिलता है. इस किताब को अनिर्बान गांगुली और शिवानंद द्विवेदी ने लिखा है. अनिर्बान गांगुली को इस बार बीजेपी ने पश्चिम बंगाल से लोकसभा का कैंडिडेट भी बनाया है.

अमित शाह की बायोग्राफी में है जिक्र
किताब के एक चैप्टर 'अमित शाह का मिशन यूपी' में यह जिक्र है कि नरेंद्र मोदी को बनारस से चुनाव लड़ने के लिए अमित शाह ने ही राजी किया था. यह शाह की रणनीति थी कि नरेंद्र मोदी को बनारस से चुनाव लड़ाया जाए और उत्तर प्रदेश में एक बड़ी लहर पैदा की जाए. कारण साफ था कि उत्तर प्रदेश में 80 लोकसभा सीटें हैं और यहां पर बीजेपी की लहर पार्टी को संसद में पूर्ण बहुमत दिलाने में बेहद अहम साबित होने वाली थी. किताब में जिक्र है कि उस वक्त बीजेपी के यूपी प्रभारी अमित शाह राज्य में पार्टी की विजय के लिए जबरदस्त रणनीतियां बना रहे थे. उन्होंने गैर यादव ओबीसी जातियां के समूहों को जोड़ने के लिए सोशल इंजीनियरिंग के विभिन्न फॉर्मूले इस्तेमाल किए थे.

क्या थी अमित शाह की रणनीति?
इसी क्रम में अमित शाह ने नरेंद्र मोदी से बात कर उन्हें बनारस से लड़ने के लिए राजी किया. दरअसल अमित शाह का विजन साफ था कि अगर दिल्ली जीतना है तो उत्तर प्रदेश को जीतना ही होगा. उत्तर प्रदेश के पूर्वी हिस्से में तो बीजेपी पूरी तरह कमजोर हो चुकी थी. अमित शाह की रणनीति थी कि जाति धर्म की राजनीति के ऊपर एक मोदी लहर पैदा की जाए. रणनीति थी कि मोदी बनारस से लड़ें और 'मां गंगा और बाबा विश्वनाथ' के जरिए हिंदुत्व की एक नई लहर पैदा की जाए जिसका विस्तार पूर्वी और मध्य उत्तर प्रदेश में आसानी से किया जा सके.

यूपी में 71 सीटें जीत गई थी बीजेपी
अमित शाह ने फॉर्मूला बनाया था- मोदी की लोकप्रियता, खुद की प्रबंधन शैली, संघ का संगठनात्मक ढांचा और खुद के पास फैसले लेने की इकलौती कमान. इन सभी बातों के फ्यूजन से तैयार टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल. 'हर हर मोदी' के जरिए हिंदुत्व के एजेंट को एक-एक वोटर तक पहुंचाने की रणनीति बनाई गई थी. इसी रणनीति में 2014 में उत्तर प्रदेश की चुनावी नतीजों में भूचाल ला दिया था. पहली बार किसी पार्टी को 80 में से 71 लोकसभा सीट जीतने में कामयाबी मिली थी. बीजेपी की सहयोगी अपना दल को भी दो सीट मिली थीं. इस तरह से एनडीए का आंकड़ा 73 हो गया था. यह ऐतिहासिक कामयाबी थी.

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