नई दिल्ली: पितृ पक्ष को लेकर लोगों के मन में कई सारी उलझनें रहती हैं. पिंडदान कहां करना चाहिए, श्राद्ध करने की विधि को लेकर भी कई सारे कन्फ्यूजन रहते हैं. आपको इस रिपोर्ट में समझाते हैं कि हिंदू पितरों का पिंडदान करने में किन-किन बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए.
पिंडदान कहां करें
भारत में गया वह स्थान है जहां दुनिया भर के हिंदू पितरों का पिंडदान करके उन्हें मोक्ष की प्राप्ति कराते हैं. कहा जाता है कि सर्वप्रथम सतयुग में ब्रह्मा जी ने गया में पिंडदान किया था, तभी से यहां परंपरा जारी है. पितृ पक्ष में पिंडदान का विशेष धार्मिक महत्व बताया जाता है.
वायु पुराण में दी गई गया महात्म्य कथा के अनुसार ब्रह्मा ने सृष्टि रचते समय गयासुर नामक दैत्य को उत्पन्न किया. उसने कोलाहल पर्वत पर घोर तपस्या की, जिससे प्रसन्न होकर श्री विष्णु ने वर मांगने को कहा. इस पर गयासुर ने वर मांगा, मेरे स्पर्श से सुर, असुर, कीट, पतंग, पापी, ऋषि-मुनी, प्रेत आदि पवित्र होकर मुक्ति प्राप्त करें. उसी दिन से गयासुर के दर्शन और स्पर्श से सभी जीव मुक्ति प्राप्त कर वैकुण्ठ जाने लगे.
गया में सीता जी द्वारा पिंडदान
कहा जाता है कि राम, लक्ष्मण और सीता जब पिता दशरथ का पिंडदान करने, गया में फलगू नदी के तट पर पहुंचे, तो वे सीता को छोड़कर पिंड सामग्री जुटाने चले गये. इस बीच आकाशवाणी होने से पता चला कि शुभ मुहूर्त निकला जा रहा है, अतः सीता हीं पिंडदान कर दें.
स्थिति को देखते हुए सीता ने गायों, फल्गु नदी, वटवृक्ष, केतकी पुष्पों और अग्नि को साक्षी मानकर श्वसुर दशरथ को बालू के पिंड बनाकर दान कर दिये. जब राम और लक्ष्मण लौटे तो सीता ने इस घटना को बताया, लेकिन उन्हें विश्वास नहीं हुआ. तब सीता ने सभी साक्षियों को इसकी पुष्टि करने को कहा तो वटवृक्ष के अलावा किसी ने साक्षी न दी.
इससे क्रोधित होकर सीता ने गायों को अपवित्र वस्तुएं खाने, फलगू नदी को ऊपर से सूखी किंतु धरातल के नीचे बहने, केतकी पुष्प को शुभ कार्य से वंचित रहने और अग्नि को संपर्क में आनेवाली सभी वस्तुओं को नष्ट करने का श्राप दे दिया तथा वटवृक्ष को हर ऋतु में हरा-भरा एवं दीर्घकाल तक रहने का वरदान दे दिया.
(Disclaimer: यहां दी गई सभी जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. Zee Hindustan इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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