Second World War: वो 3 देश जो एक ही दिन हुए आजाद, वर्ल्ड वार में फूट गई किस्मत; झेला हिटलर-स्टालिन तक का जुल्म
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Second World War: वो 3 देश जो एक ही दिन हुए आजाद, वर्ल्ड वार में फूट गई किस्मत; झेला हिटलर-स्टालिन तक का जुल्म

Nazi-Soviet Pact: नाजी-सोवियत पैक्ट (Nazi-Soviet Pact) का अंजाम सबसे ज्यादा एस्टोनिया (Estonia), लातविया (Latvia) और लिथुआनिया (Lithuania) को झेलना पड़ा. आइए जानते हैं कि इन्हें फिर आजादी कैसे मिली?

Second World War: वो 3 देश जो एक ही दिन हुए आजाद, वर्ल्ड वार में फूट गई किस्मत; झेला हिटलर-स्टालिन तक का जुल्म

Baltic States Independence: एस्टोनिया (Estonia), लातविया (Latvia) और लिथुआनिया (Lithuania) ऐसे तीन बाल्टिक देश हैं जिन्हें 6 सितंबर 1991 को एक साथ एक ही दिन आजादी मिली थी. दिलचस्प ये भी है कि ये तीनों देश सोवियत रूस (USSR) में सबसे देर में शामिल हुए और सबसे पहले आजाद हुए. लेकिन इन तीनों देशों की किस्मत द्वितीय विश्वयुद्ध (World War II) के दौरान फूट गई थी. दरअसल, सोवियत रूस और जर्मनी के बीच हुआ समझौता इन तीनों देशों यानी एस्टोनिया, लातविया और लिथुआनिया पर भारी पड़ गया था. दरअसल पहले नाजी-सोवियत पैक्ट (Nazi-Soviet Pact) के चलते सोवियत रूस ने एस्टोनिया, लातविया और लिथुआनिया की आजादी छीन ली. फिर जब नाजी आर्मी ने हमला किया तो ये तीनों देश जर्मनी के कब्जे में आ गए. इसके बाद फिर 1944 में सोवियत रूस की रेड आर्मी एस्टोनिया, लातविया और लिथुआनिया को वापस जर्मनी से ले लिया. इसके बाद अगले 47 साल तक ये सोवियत रूस के कब्जे में रहे.

कैसे पूरा हुआ आजादी का सपना?

बता दें कि सियासी आजादी पाना बाल्टिक क्षेत्र के इन देशों का सपना बहुत लंबे समय देखा जा रहा था. लेकिन सोवियत शासन के अधीन इन देशों का सपना सोवियत रूस के तत्कालीन राष्ट्रपति गोर्बाचेव की ग्लासनोस्त की नीति के कारण संभव हो पाया. हालांकि, 1986 में रीगा में और 1987 में टालिन में हुए शुरुआती प्रदर्शन प्रदूषण के मुद्दे को लेकर थे. इन क्षेत्रों में तेजी से उद्योगों के विस्तार किया जा रहा था.fallback

क्या थी ग्लासनोस्त पॉलिसी?

फिर 1988 के दौरान जैसे ही ग्लासनोस्त ने अपनी जड़ें जमाईं, तीनों गणराज्यों यानी में एस्टोनिया, लातविया और लिथुआनिया कम्युनिस्ट पार्टियां कमजोर पड़ गईं और रिफॉर्म विंग में शामिल लोगों को राज्य और पार्टी लीडरशिप में प्रमुख पद मिल गए. बता दें कि ग्लास्नोस्त एक सोवियत पॉलिसी थी जिसका मकसद सोवियत रूस के सरकारी संस्थानों और अन्य कार्यों में खुलेपन व पारदर्शिता को लाना था. इस पॉलिसी को मिखाइल गोर्बाचेव 80 के दशक के अंत में लाए थे.fallback

आजादी की तरफ बढ़े कदम

फिर 1988 के बाद लिथुआनिया में साजुडिस (Sajudis), एस्टोनिया में पेरेस्त्रोइका (Perestroika) और लातविया में लातविया पॉपुलर फ्रंट मजबूत हुआ. इन संगठनों ने एस्टोनिया, लातविया और लिथुआनिया में पूर्व-सोवियत राष्ट्रीय प्रतीकों की बहाली, आर्थिक मामलों पर और ज्यादा रिपब्लिकन नियंत्रण, नाजी-सोवियत पैक्ट के सीक्रेट प्रोटोकॉल के पब्लिकेशन, अन्य सोवियत गणराज्यों से बसने के लिए आने पर प्रतिबंध और राजनीतिक आजादी पाने के लिए आंदोलन किए. उन्होंने आजादी से जुड़े कई पॉपुलर गाने बनाए, नारे लिखे और इतना ही नहीं 1989 में नाजी-सोवियत पैक्ट की 50वीं बरसी पर लंबी ह्यूमन चेन भी बनाई. तीनों देशों के वासियों में देशभक्ति की भावना उबाल मार रही थी.

सोवियत रूस आजाद करने को हुआ मजबूर

लेकिन 1991 आते-आते सोवियत रूस में आर्थिक और राजनीतिक ब्रेकडाउन से परेशान होकर गोर्बाचेव के पास ना तो बाल्टिक गणराज्यों यानी एस्टोनिया, लातविया और लिथुआनिया को टूटने से रोकने की ताकत थी और ना ही उन्होंने इच्छाशक्ति दिखाई. और आखिरकार 6 सितंबर, 1991 को सोवियत रूस ने एस्टोनिया, लातविया और लिथुआनिया को आजाद देश के रूप में मान्यता दे दी.

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