Henry Kissinger: अमेरिका का सबसे बड़ा चाणक्य, 50 साल पहले पाकिस्तान का..फिर कैसे भारत का समर्थक बन गया?
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Henry Kissinger: अमेरिका का सबसे बड़ा चाणक्य, 50 साल पहले पाकिस्तान का..फिर कैसे भारत का समर्थक बन गया?

Henry Kissinger: उन्हें वियतनाम युद्ध में अमेरिकी सैन्य भागीदारी को समाप्त करने की व्यवस्था करने में मदद करने के लिए नोबेल शांति पुरस्कार मिला और उन्हें गुप्त कूटनीति का श्रेय दिया जाता है, जिसने तत्कालीन राष्ट्रपति निक्सन को अमेरिका और पश्चिम के लिए कम्युनिस्ट चीन खोलने में मदद की.

Henry Kissinger: अमेरिका का सबसे बड़ा चाणक्य, 50 साल पहले पाकिस्तान का..फिर कैसे भारत का समर्थक बन गया?

Kissinger at 100: अमेरिका के सबसे बड़े चाणक्य कहे जाने वाले वहां के पूर्व विदेश मंत्री हेनरी किसिंजर का बुधवार को निधन हो गया, वे 100 साल के थे. किसिंजर के लिए यह माना जाता रहा कि उनका झुकाव पहले पाकिस्तान के पक्ष में रहा फिर बाद में उनका झुकाव भारत की तरफ हो गया.1923 में जर्मनी में जन्मे किसिगर अपने पीछे पत्नी, नैन्सी मैगिनेस किसिंगर, उनकी पहली शादी से दो बच्चे, डेविड और एलिजाबेथ और पांच पोते-पोतियां छोड़ गए हैं. द्वितीय विश्व युद्ध में सेवा देने से पहले किसिंगर 1943 में अमेरिकी नागरिक बन गए थे. किसिंगर ने पूर्व राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (जनवरी 1969-नवंबर 1975) और तत्कालीन राज्य सचिव (सितंबर 1973-जनवरी 1977) के रूप में कार्य करने से पहले राष्ट्रीय सुरक्षा मामलों पर विदेश विभाग और पेंटागन के साथ कार्य किया.

कभी भारत पर पाकिस्तान को तरजीह दी
खास बात यह रही कि किसिंजर ने कभी भारत पर पाकिस्तान को तरजीह दी थी. असल में उन्हें 1970 के दशक में भारतीय नेतृत्व के प्रति उनकी उपेक्षा के लिए जाना जाता है, लेकिन वह पिछले एक दशक से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में अमेरिका और भारत के मजबूत संबंधों की वकालत कर रहे थे. साल 2014 में मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद पूर्व अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार किसिंजर भारत के साथ मजबूत संबंधों की वकालत कर रहे थे. कुछ लोग तो यह भी कहते हैं कि वह पिछले कुछ साल में प्रधानमंत्री मोदी के बड़े प्रशंसक बन गए थे. जब मोदी इस साल जून में आधिकारिक राजकीय यात्रा पर अमेरिका पहुंचे थे तो किसिंजर अच्छी सेहत नहीं होने के बावजूद उप राष्ट्रपति कमला हैरिस और विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन की संयुक्त मेजबानी में विदेश विभाग में आयोजित समारोह में मोदी का भाषण सुनने के लिए वाशिंगटन तक आए थे.

फिर भारत-अमेरिका संबंधों की वकालत की
किसिंजर को तब विदेश विभाग के फॉगी बॉटम मुख्यालय में सातवीं मंजिल पर स्थित ऐतिहासिक बेंजामिन फ्रेंकलिन रूम तक व्हीलचेयर पर लाया गया था. भारत में अमेरिकी राजदूत एरिक गार्सेटी ने लिफ्ट में उनका अभिवादन किया. दोपहर के भोज पर आयोजित इस कार्यक्रम में बुजुर्ग अमेरिकी राजनेता ने प्रधानमंत्री मोदी के भाषण को पूरे धैर्य के साथ सुना और उनसे बातचीत भी की. अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा और विदेश नीति पर किसिंजर का अत्यधिक प्रभाव माना जाता है. उन्होंने जून 2018 में ‘यूएस इंडिया स्ट्रेटेजिक एंड पार्टनरशिप फोरम’ (यूएसआईएसपीएफ) के पहले स्थापना दिवस के मौके पर संस्थान से जुड़े जॉन चैंबर्स के साथ उपस्थित होकर भारत को लेकर अपने रुख को सार्वजनिक किया. उनकी बातचीत में मीडिया आमंत्रित नहीं था, लेकिन वहां उपस्थित अन्य लोग याद करते हुए बताते हैं कि किस तरह किसिंजर ने पुरजोर तरीके से भारत-अमेरिका संबंधों की वकालत की थी.

भारत की रणनीति की प्रशंसा करता
किसिंजर ने जून 2018 में यूएसआईएसपीएफ के पहले वार्षिक नेतृत्व सम्मेलन में अपनी दुर्लभ उपस्थिति के दौरान कहा था, ‘‘जब मैं भारत के बारे में सोचता हूं तो मैं उनकी रणनीति की प्रशंसा करता हूं.’’ भारत के साथ उनके संबंध 1970 के दशक में तनावपूर्ण हो गए थे जब वह राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और विदेश मंत्री के रूप में तत्कालीन अमेरिकी प्रशासन में थे. लेकिन चीन की ओर रुख करने से पहले उनकी पहली प्राथमिकता भारत को लेकर थी. उन्हीं के परामर्श पर यूएस चैंबर्स ऑफ कॉमर्स ने 70 के दशक में अमेरिका भारत व्यापार परिषद (यूएसआईबीसी) की स्थापना की थी. 

इंदिरा गांधी के साथ सौहार्दपूर्ण रिश्ते नहीं
किसिंजर के 1972 के आसपास के एक कूटनीतिक संवाद के अभिलेखों से पता चलता है कि उन्होंने भारत और जापान को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बनाने का समर्थन किया था. इतिहासकार बताते हैं कि किसिंजर और तत्कालीन राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के साथ सौहार्दपूर्ण रिश्ते नहीं रख पाए थे और उनका ध्यान चीन की ओर था. कई जानकार कहते हैं कि इसके बाद का बाकी सब इतिहास है ही. शीत युद्ध के समापन के बाद और पिछले 10 दशक में भारत के मजबूती से उभरने के साथ भारत को लेकर किसिंजर के विचार बदल गए थे और बाद की सरकारों के संदर्भ में वह भारत के साथ मजबूत संबंधों की वकालत करते रहे. 

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी अमेरिका यात्रा के दौरान उनसे मुलाकात की थी. किसिंजर ने करीब चार साल पहले यूएसआईएसपीएफ के एक और कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा था कि बांग्लादेश संकट ने दोनों देशों को ‘टकराव की कगार’ पर पहुंचा दिया था. किसिंजर ने इसके बाद नयी दिल्ली में कहा था, ‘‘भारत एक ऐतिहासिक विकासक्रम की शुरुआत में था और संबंधित सारी समस्याएं भारत के लिए समान महत्व की नहीं थीं. भारत अपने खुद के विकास क्रम में और तटस्थता की नीति में पूरी तरह शामिल था.’’ अमेरिकी विदेश विभाग द्वारा अब गोपनीयता के दायरे से बाहर किए जा चुके कुछ दस्तावेजों के अनुसार 16 दिसंबर, 1971 को बांग्लादेश के अलग देश बनने के बाद तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन को किसिंजर ने बताया था कि उन्होंने ‘पश्चिम पाकिस्तान को बचा लिया है’.

किसिंजर ने भारत के पहले परमाणु परीक्षण के कुछ महीने बाद अक्टूबर 1974 में इंदिरा गांधी के साथ अपनी बैठक का विवरण तत्कालीन राष्ट्रपति गेराल्ड फोर्ड को दिया था. एक बार उन्होंने कहा था कि पूर्ववर्ती अमेरिकी रिपब्लिकन प्रशासन हमेशा कहता था कि काश! उसके पास गांधी जैसा मजबूत व्यक्ति होता. व्हाइट हाउस के एक दस्तावेज के अनुसार किसिंजर की एक रिकॉर्डिंग में वह कहते सुने जा सकते हैं, ‘‘भारत के साथ हमारे संबंध मित्रवत और विलक्षण हैं. सौभाग्य की बात है कि भारतीय अमन पसंद लोग हैं, अन्यथा उनके पड़ोसी चिंतित रहते. जब हम पहली बार भारत में थे तो उन्होंने मुझे बताया कि काबुल भी भारत से जुड़ा था.

किसिंगर की मौत पर कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने गुरुवार को हेनरी किसिंगर को याद किया. उन्होंने कहा कि वह बेहद परिणामी और बेहद विवादास्पद थे और 1971 में उन्होंने और अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन ने भारत के लिए सिरदर्द पैदा किया, जिसे पूर्व प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी और पी.एन. हक्सर ने दूर किया. कांग्रेस नेता ने कहा, "पिछले तीन दशकों से, उन्होंने खुद को भारत के एक महान मित्र और समर्थक के रूप में स्थापित किया और वास्तव में वह थे भी. लेकिन यह हमेशा ऐसा नहीं था और विशेष रूप से 1971 में, राष्ट्रपति निक्सन और उन्होंने भारत के लिए बड़ा सिरदर्द पैदा किया और सोचा कि उन्होंने हमें घेर लिया है." एजेंसी इनपुट

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