Global Warming 1.5C Limit: पहली बार ग्लोबल वार्मिंग ने साल भर में 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा पार की है. ताजा आंकड़ों को वैज्ञानिक 'मानवता के लिए चेतावनी' बता रहे हैं.
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Global Warming 2024: पिछले 12 महीनों में दुनिया का सर्वाधिक औसत तापमान दर्ज किया गया. यह पहली बार है जब ग्लोबल वार्मिंग ने 1.5 डिग्री सेल्सियस वाली लिमिट पार की है. यूरोपियन यूनियन (EU) के कोपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस (C3S) ने गुरुवार को आंकड़े जारी किए. इसके मुताबिक, 2023 पृथ्वी के लिए सबसे गर्म साल साबित हुआ है. यूरोप के जलवायु वैज्ञानिकों ने इसे 'मानवता के लिए चेतावनी' करार दिया है. 2015 में दुनियाभर के नेताओं ने वादा किया था कि लॉन्ग-टर्म टेम्प्रेचर में इजाफे को 1.5 डिग्री से ऊपर नहीं जाने देंगे. पहली बार यह लिमिट पार होने से पेरिस समझौते का उल्लंघन तो नहीं हुआ, मगर दुनिया उसके काफी करीब पहुंच गई है. वैज्ञानिकों का कहना है कि कार्बन उत्सर्जन कम करने के लिए तत्काल कदम उठाने होंगे.
साइंटिस्ट्स ने चेताया है कि सिर्फ 1.5C वाले साल में ही दुनिया ने बाढ़, सूखे, लू से लेकर जंगलों में आग तक देख ली है. C3S ने कहा कि एक्स्ट्रीम मौसमी घटनाएं 2024 में भी जारी रही हैं. EU के C3S के अनुसार, फरवरी 2024 से जनवरी 2024 के बीच दुनिया औसत से 1.52 डिग्री ज्यादा गर्म रही.
'जनवरी में गर्मी ने तोड़े सब रिकॉर्ड'
C3S के मुताबिक, पूरी दुनिया में जनवरी के महीने ने गर्मी के सब रिकॉर्ड तोड़ दिए. इससे पहले की सबसे गर्म जनवरी 2020 में पड़ी थी. C3S की डिप्टी डायरेक्टर सामन्था बर्गेस ने कहा, 'ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में तेजी से कमी वैश्विक तापमान में वृद्धि को रोकने का एकमात्र तरीका है.'
समुद्र की सतह का तापमान भी अब तक के सर्वोच्च स्तर पर है. 2023 की दूसरी छमाही में, जब अल नीनो ने दस्तक देना शुरू किया, वैश्विक औसत हवा का तापमान लगभग दैनिक आधार पर 1.5C से अधिक होना शुरू हो गया और यह 2024 तक जारी रहा.
...तो पूरे नहीं हो पाएंगे पेरिस एग्रीमेंट के टारगेट?
2015 में, लगभग 200 सरकारों ने पेरिस जलवायु समझौते पर हस्ताक्षर किए थे. इसका लक्ष्य रिन्यूएबल एनर्जी के पक्ष में जीवाश्म ईंधन (Fossil Fuels) को चरणबद्ध तरीके से खत्म करना है. पिछले साल, संयुक्त राष्ट्र (UN) ने कहा था कि दुनिया उस समझौते के लॉन्ग-टर्म लक्ष्यों को पूरा करने की राह पर नहीं है. इसमें ग्लोबल वार्मिंग को 1.5C पर सीमित करना भी शामिल है.
कुछ वैज्ञानिकों का कहना है कि पेरिस समझौते के लक्ष्य को अब वास्तविक रूप से पूरा नहीं किया जा सकता है. फिर भी वे सरकारों से कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) उत्सर्जन में कटौती के लिए तेजी से कदम उठाने की गुहार लगा रहे हैं.