असंभव! हर 6.5 घंटे में रोटेट हो रही, ब्रह्मांड में ऐसी चीज तो होनी ही नहीं चाहिए; नई खोज से चौंक उठे वैज्ञानिक
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असंभव! हर 6.5 घंटे में रोटेट हो रही, ब्रह्मांड में ऐसी चीज तो होनी ही नहीं चाहिए; नई खोज से चौंक उठे वैज्ञानिक

Slow Spinning Neutron Star Discovery: वैज्ञानिकों ने बेहद धीमी गति से घूमने वाले न्यूट्रॉन तारे की खोज की है. यह एक पल्सर है जो हर 6.5 घंटे में एक बार घूमता है. यह खोज न्यूट्रॉन तारों के व्यवहार से जुड़ी हमारी समझ को चुनौती देती है.

असंभव! हर 6.5 घंटे में रोटेट हो रही, ब्रह्मांड में ऐसी चीज तो होनी ही नहीं चाहिए; नई खोज से चौंक उठे वैज्ञानिक

Science News in Hindi: बड़े तारे अपने जीवन के आखिर में पहुंचते हैं, तो सुपरनोवा के रूप में फट जाते हैं. और पीछे छोड़ जाते हैं बेहद घने न्यूट्रॉन तारे. कुछ न्यूट्रॉन तारे अपनी चुंबकीय ध्रुवों से शक्तिशाली रेडियो बीम उत्सर्जित करते हैं. जब ये तारे घूमते हैं, तो उनकी बीम पृथ्वी से होकर गुजरती है, जिससे रेडियो तरंगों की पल्स (pulses) बनती हैं. इसी वजह से इन्हें 'पल्सर' कहा जाता है. पल्सर आम तौर पर बहुत तेजी से घूमते हैं, कुछ तो हर सेकंड में एक या उससे अधिक रोटेशन पूरा कर लेते हैं. लेकिन हाल ही में वैज्ञानिकों ने ब्रह्मांड का सबसे धीमा 'लाइटहाउस' खोजा है. यह पल्सर हर 6.5 घंटे में एक बार घूमता है. Nature Astronomy जर्नल में छपी खोज न्यूट्रॉन तारे के व्यवहार की हमारी समझ को चुनौती देती है.

ASKAP J1839-0756: एक 'असंभव' की खोज

वैज्ञानिकों ने इस अजीब चीज को ASKAP J1839-0756 नाम दिया है. इसे CSIRO के ASKAP रेडियो टेलीस्कोप के जरिए खोजा गया. शुरुआती ऑब्जर्वेशन में यह चीज 'फेडिंग रेडियो बर्स्ट' जैसी नजर आई, जिसकी चमक सिर्फ 15 मिनट में 95% तक घट गई. तब तक, यह नहीं पता था कि यह स्रोत पीरियॉडिक रेडियो पल्स उत्सर्जित कर रहा है. डीटेल्ड ऑर्ब्वेशंस और CSIRO के Australia Telescope Compact Array, साथ ही दक्षिण अफ्रीका के MeerKAT रेडियो टेलीस्कोप का यूज करके, इस चीज के पल्स ड्यूरेशन को 6.5 घंटे कन्फर्म किया गया.

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ASKAP J1839-0756 की ऑप्टिकल और नियर-इन्फ्रारेड तस्वीरें (Yu Wing Joshua Lee)

'यह न्यूट्रॉन तारा संभव नहीं होना चाहिए'

न्यूट्रॉन तारे अपनी रोटेशन एनर्जी को रेडिएशन में बदलकर रेडियो पल्स उत्सर्जित करते हैं. जब वे धीरे-धीरे घूमने लगते हैं, तो उनकी ऊर्जा समाप्त हो जाती है और वे रेडियो पल्स छोड़ना बंद कर देते हैं. सिद्धांत के अनुसार, एक न्यूट्रॉन तारा जब प्रति मिनट एक बार से धीमे घूमता है, तो उसे रेडियो पल्स नहीं करना चाहिए. लेकिन ASKAP J1839-0756 इस नियम को तोड़ते हुए हर 6.5 घंटे में घूमते हुए रेडियो पल्स कर रहा है.

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अधिकतर पल्सर एक तरफ से रेडियो पल्स देते हैं क्योंकि उनके घूमने और चुंबकीय अक्ष एक-दूसरे के करीब होते हैं. लेकिन ASKAP J1839-0756 जैसे कुछ दुर्लभ पल्सर, जिनकी संख्या लगभग 3% है, अपने घूर्णन और चुंबकीय अक्ष के बीच 90 डिग्री का कोण बनाते हैं. इससे दोनों चुंबकीय ध्रुवों से पल्स देखे जा सकते हैं.

ASKAP J1839-0756 भी अपने दोनों ध्रुवों से रेडियो पल्स भेजता है. मुख्य पल्स के 3.2 घंटे बाद, यह एक कमजोर पल्स उत्सर्जित करता है, जो इसके दूसरे चुंबकीय ध्रुव से आता है. यह इसे अपनी श्रेणी में पहला ऐसा धीमा पल्सर बनाता है, जो इंटरपल्स (interpulses) देता है.

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क्या यह 'मैग्नेटार' हो सकता है?

ASKAP J1839-0756 का रहस्यमय व्यवहार वैज्ञानिकों को हैरान कर रहा है. एक संभावना यह है कि यह एक मैग्नेटार हो सकता है. मैग्नेटार एक प्रकार का न्यूट्रॉन तारा होता है, जिसमें अत्यंत शक्तिशाली चुंबकीय क्षेत्र होता है. यह रेडियो पल्स को अलग प्रक्रिया से पैदा करता है, जिससे यह धीमी गति पर भी चमक सकता है. लेकिन मैग्नेटार भी बेहद तेजी से रोटेशन करते हैं.

अब तक पाए गए मैग्नेटार आमतौर पर सेकंड के अंतराल में घूमते हैं, घंटों में नहीं. एकमात्र अपवाद मैग्नेटार 1E 161348-5055 है, जिसकी घूर्णन दर 6.67 घंटे है. लेकिन वह केवल X-ray पल्स उत्सर्जित करता है, रेडियो पल्स नहीं. ASKAP J1839-0756 के व्यवहार ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या यह वास्तव में एक मैग्नेटार है या कोई नए तरह की चीज?

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कहीं यह 'व्हाइट ड्वार्फ' तो नहीं?

कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि यह पिंड व्हाइट ड्वार्फ हो सकता है, जो कम द्रव्यमान वाले तारों के अवशेष होते हैं. व्हाइट ड्वार्फ न्यूट्रॉन तारों की तुलना में बहुत धीमी गति से घूमते हैं, लेकिन अब तक ऐसा कोई व्हाइट ड्वार्फ नहीं देखा गया है जो रेडियो पल्स उत्सर्जित करता हो. ASKAP J1839-0756 की जगह पर अन्य वेवलेंथ्‍स में देखने पर भी व्हाइट ड्वार्फ का कोई ठोस सबूत नहीं मिला है.

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