फूंक मारो तो उड़ जाएं इतने हल्के हैं ये ग्रह, सूर्य जैसे तारे की करते हैं परिक्रमा; JWST की नई खोज पर 5 अपडेट
Advertisement
trendingNow12545479

फूंक मारो तो उड़ जाएं इतने हल्के हैं ये ग्रह, सूर्य जैसे तारे की करते हैं परिक्रमा; JWST की नई खोज पर 5 अपडेट

James Webb Space Telescope Discovery: एस्ट्रोनॉमर्स ने जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप (JWST) की मदद से ब्रह्मांड के शायद सबसे हल्के ग्रहों के एक सिस्टम का पता लगाया है.

फूंक मारो तो उड़ जाएं इतने हल्के हैं ये ग्रह, सूर्य जैसे तारे की करते हैं परिक्रमा; JWST की नई खोज पर 5 अपडेट

Science News: पृथ्‍वी से लगभग 2,615 प्रकाश वर्ष दूर, सबसे हल्के ग्रहों का एक अनूठा सिस्टम मिला है. ये एक्सोप्लैनेट (बाह्य ग्रह) 'कॉटन कैंडी' जितने हल्के हैं और 'सिग्नस' तारामंडल में स्थित हैं. वैज्ञानिकों ने यहां के तीन बेहद हल्के ग्रहों का पता पहले ही लगा लिया था, अब जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप (JWST) के जरिए चौथे ग्रह की खोज हुई है. ये सभी सूर्य जैसे तारे Kepler-51 की परिक्रमा करते हैं. वैज्ञानिकों को लगता है कि यहां पर शायद ब्रह्मांड के सबसे हल्के ग्रहों का एक पूरा सिस्टम मौजूद हो सकता है. ऐसे ग्रहों को 'सुपर पफ' ग्रह कहा जाता है. आइए, इस नई खोज से जुड़ी 5 बड़ी बातें आपको बताते हैं:

  1. नए ग्रह की खोज कैसे हुई: नए खोजे गए एक्सोप्लैनेट को Kepler-51e नाम दिया गया है. इस अजीब प्लैनेट सिस्टम के चौथे ग्रह की खोज तब हुई जब पेन स्टेट और ओसाका यूनिवर्सिटी के रिसर्चर्स के नेतृत्व में एक टीम ने इसके हल्के वजन वाले भाई Kepler-51d की जांच शुरू की. टीम की रिसर्च के नतीजे 3 दिसंबर को Astronomical Journal में छपे हैं.
  2. क्यों इतने हल्के हैं ये ग्रह: पेंसिल्वेनिया स्टेट यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर एक्सोप्लेनेट्स एंड हैबिटेबल वर्ल्ड्स की टीम मेंबर जेसिका लिब्बी-रॉबर्ट्स ने एक बयान में कहा, 'सुपर पफ ग्रह बहुत असामान्य हैं क्योंकि उनका द्रव्यमान बहुत कम और घनत्व कम होता है.' उन्होंने बताया, 'केपलर-51 नामक तारे की परिक्रमा करने वाले जिन तीन ग्रहों के बारे में हमें पता था, वे शनि के आकार के हैं, लेकिन पृथ्वी के द्रव्यमान से कुछ ही गुना बड़े हैं, जिसके चलते उनका घनत्व कॉटन कपास कैंडी जैसा है.'
  3. कैसे होते हैं ये ग्रह: लिब्बी-रॉबर्ट्स ने कहा कि उनकी टीम का मानना है कि इन कॉटन कैंडी ग्रहों में छोटे-छोटे कोर और हाइड्रोजन या हीलियम से बने विशाल, फूले हुए वायुमंडल हैं. उन्होंने कहा, 'ये विचित्र ग्रह कैसे बने और कैसे उनके वायुमंडल उनके युवा तारे के तीव्र विकिरण से नष्ट नहीं हुए, यह एक रहस्य बना हुआ है.'
  4. ब्रह्मांड में बेहद दुर्लभ हैं ऐसे ग्रह: लिब्बी-रॉबर्ट्स के मुताबिक, 'ब्रह्मांड में सुपर पफ ग्रह काफी दुर्लभ हैं, और जब वे होते हैं, तो वे ग्रह सिस्टम में इकलौते होते हैं.' उन्होंने कहा, 'अगर यह समझाने की कोशिश करना कि एक प्रणाली में तीन सुपर पफ कैसे बने, काफी चुनौतीपूर्ण नहीं था, तो अब हमें चौथे ग्रह की व्याख्या करनी होगी, चाहे वह सुपर पफ हो या न हो. और हम सिस्टम में अतिरिक्त ग्रहों की संभावना को भी खारिज नहीं कर सकते.' 
  5. और रिसर्च की जरूरत: चूंकि Kepler-51e की कक्षा 264 दिनों की है, इसलिए रिसर्चर्स को अभी इस सिस्टम की लंबे समय तक निगरानी करनी होगी, ताकि वे यह सुनिश्चित कर सकें कि नए ग्रह का गुरुत्वाकर्षण उसके साथी ग्रहों पर किस तरह का असर डालता है.

Trending news